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स्मृति शेष : कांग्रेस को हाथ का पंजा सिंबल दिलाने वाला सितारा अस्त

स्मृति शेष : कांग्रेस को हाथ का पंजा सिंबल दिलाने वाला सितारा अस्त

लखनऊ : देश के पूर्व गृहमंत्री बूटा सिंह का शनिवार सुबह दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। बूटा सिंह कांग्रेस के ऐसे नेता रहे, जिन्होंने देश के चार प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया। इनमें से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय बूटा सिंह खेल मंत्री रहे तो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें पहले कृषि मंत्री और फिर देश का गृहमंत्री बनाया।

राष्ट्रीय एससी कमीशन का चेयरमैन बने 

इसके बाद वे पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के समय खाद्य मंत्री बने जबकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल में उन्हें राष्ट्रीय एससी कमीशन का चेयरमैन बनाया गया था। इससे पहले वे साल 2004 से साल 2006 तक बिहार के गवर्नर रहे।

चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी हुआ करता

आजादी के बाद कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी हुआ करता था, लेकिन जब कांग्रेस में टूट हुई और इंदिरा गांधी का समर्थित धड़ा कांग्रेस आई के रूप में देखा जाने लगा तो कांग्रेस आई का चुनाव चिन्ह गाय और बछड़े की जोड़ी बना, लेकिन गाय और बछड़े की जोड़ी को इंदिरा गांधी और संजय गांधी के साथ में जोड़कर हंसी उड़ाई गई तो यह चुनाव चिन्ह कांग्रेस पार्टी ने बदलने का निर्णय किया।

पार्टी का जब चुनाव चिन्ह बदला जाना था तो कांग्रेस पार्टी के इंचार्ज जनरल सेक्रेटरी बूटा सिंह ही थे और उस समय हाथ, हाथी और साइकिल के चुनाव चिन्ह का विकल्प बूटा सिंह ने इंदिरा गांधी के सामने रखा था। इनमें से इंदिरा गांधी ने हाथ का निशान फाइनल किया था।

सरदार बूटा सिंह का जन्म 21 मार्च 1934 को पंजाब के जालंधर जिले के मुस्तफापुर में हुआ। राजनीति में आने से पहले उन्होंने एक पत्रकार के रूप में काम किया। उन्होंने अपना पहला चुनाव अकाली दल के सदस्य के रूप में लड़ा। बूटा सिंह पहली बार साधना निर्वाचन क्षेत्र से सांसद बने। वे देश की तीसरी, चौथी, 5वीं, 6ठीं, 8वीं, 10वीं, 12वीं और 13वीं लोकसभा के सदस्य रहे। बूटा सिंह कुल मिलाकर देश के 8 बार सांसद रहे।

सरदार बूटा सिंह पहली बार 1984 में जालोर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े तो जालोर को एक नई पहचान मिली। इसके बाद साल 1989 में वे जालोर लोकसभा सीट से चुनाव हार गए, लेकिन फिर 1991 में वे जालोर लोकसभा सीट से सांसद का चुनाव जीते और दोबारा लोकसभा में जालोर का प्रतिनिधित्व किया। साल 1998 में उन्होंने दोबारा जालोर लोकसभा से चुनाव जीता। उसके बाद 1999 में भी वे जालोर से जीत गए।

कांग्रेस से बागी होकर लड़ा था चुनाव

वर्ष 2004 में जालोर से लोकसभा सीट से चुनाव हारने के बाद सरदार बूटा सिंह को बिहार का राज्यपाल बना दिया गया। इसके बाद उनकी राजनीति का अंत माना गया। सरदार बूटा सिंह ने 2009 में कांग्रेस पार्टी से जालोर लोकसभा का टिकट मांगा, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया। तो वे कांग्रेस पार्टी से बागी होकर निर्दलीय जालोर-लोकसभा से चुनाव लड़े और चुनाव हार गए, लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार से उनके वोट ज्यादा आए। इसके बाद 2014 में भी उन्होंने निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा और हार गए। साल 2014 का चुनाव उनका अंतिम चुनाव था। बूटा सिंह ने जहां से चुनाव लड़ा वहीं से अपनी राजनीतिक पारी का अंत भी कर दिया।

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कई विवादों से भी जुड़ा सरदार बूटा सिंह का नाम

सरदार बूटा सिंह का नाम कई विवादों के साथ भी जुड़ा रहा। साल 1998 में टेलीकॉम मंत्री रहते हुए उन्हें झामुमो रिश्वत मामले में दोषी ठहराया गया, जिसके चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। बिहार के राज्यपाल के रूप में 2005 में बिहार विधान सभा के विघटन की सिफारिश करने के बूटा सिंह के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने तीखी आलोचना की थी।

उस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बूटा सिंह ने जल्दबाजी में काम किया और संघीय मंत्रिमंडल को गुमराह किया, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि सत्ता में आने के लिए एक पार्टी विशेष सरकार बनाने का दावा करे। हालांकि सिंह ने दावा किया था कि पार्टी सरकार बनाने के लिए समर्थन हासिल करने के लिए अनुचित साधनों का सहारा ले रही थी, लेकिन 26 जनवरी 2006 को बूटा सिंह को तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने राज्यपाल पद से इस्तीफा देने को कहा। इसके अगले दिन ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

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