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धीमी कार्रवाई के चलते नहीं लौट रहे दंगा पीड़ित

mujनई दिल्ली। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) के प्रमुख वजाहत हबीबुल्ला का कहना है कि आगजनी करने वालों और दुष्कर्मियों के खिलाफ धीमी कानूनी कार्रवाई मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ितों के राहत कैंपों में रुके रहने की सबसे बड़ी वजह है क्योंकि पीड़ितों को डर है कि कहीं उन्हें फिर से निशाना न बनाया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार पीड़ितों को बेहतर सुविधाएं देने में ‘धीमी’ रही और जीवन दशा सुधारने की दिशा में तभी सक्रिय हुई जब ठंड से मौत होने की खबर मीडिया में सामने आई। हबीबुल्ला ने साक्षात्कार में कहा ‘‘जब तक दोषियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज नहीं हो जाते किस तरह वे वापस जाएंगे? 3००० से ज्यादा मामले हैं और 2०० से ज्यादा गिरफ्तारियां ही हो पाई हैं। प्रक्रिया अत्यंत धीमी है।’’ उत्तर प्रदेश पुलिस ने हत्या दंगा और आगजनी से संबंधित 566 मामले दर्ज किए हैं। पिछले कई वर्षों में ये सबसे खराब दंगे हुए जिसमें 6००० लोग नामजद आरोपी बनाए गए हैं। लेकिन दंगों के मामलों की जांच कर रही विशेष जांच टीम के आंकड़ों के मुताबिक अभी तक केवल 294 लोगों को ही गिरफ्तार किया गया है। राजनीतिक नेताओं पर हिंसा भड़काने के आरोप हैं। ऐसे नेताओं में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के मुजफ्फरनगर से सांसद कादिर राणा उनके भाई और बसपा विधायक नूर सलीम राणा एक अन्य बसपा विधायक जमील अहमद पूर्व कांग्रेस मंत्री और विधायक सईद-उज-जमां और उनके बेटे सलमान सईद और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक संगीत सोम और सुरेश राणा शामिल हैं।
मुख्य सूचना आयुक्त रह चुके हबीबुल्ला ने कहा ‘‘हमारे आयोग ने दुष्कर्म के छह मामले पाए लेकिन एक भी गिरफ्तारी नहीं हुई। यह जानते हुए कि परिवार के हत्यारे खुलेआम घूम रहे हैं तो फिर वे कैसे वापस जाएंगे? उनके भीतर विश्वास बहाल किया जाना चाहिए।’’ मुजफ्फरनगर शामली बागपत मेरठ और सहारनपुर जिलों में हिंसा भड़कने और 4० से ज्यादा लोगों की जान जाने के बाद हजारों लोगों को अपना घरबार छोड़ना पड़ा। प्रशासन और इस्लामिक संस्थओं द्वारा स्थापित 28 राहत शिविरों में अभी भी हजारों लोग रह रहे हैं। हबीबुल्ला अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाए जाने से पहले जम्मू एवं कश्मीर में आरटीआई की देखरेख कर रहे थे। वे जुलाई 2०1० में आयोग के अध्यक्ष बनाए गए।

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