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नगर निगम विकास कार्यो के लिए जुटायेगा 180 करोड़

lko nnलखनऊ। नगर निगम लखनऊ के बढ़े हुए क्षेत्रफल में निवास कर रही जनता को मूलभूत सुविधाएं यथा सड़क, सफाई, कूड़ा परिवहन (आर.आर.), मार्ग प्रकाश, पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा, जल निकासी आदि से सम्बन्धित विकास कार्यो पर विगत वर्षो की देनदारी बढ़कर रु. 180 करोड़ हो गयी है। जिसके लिए धनराशि की व्यवस्था भी की जानी है। वर्तमान में 110 वार्डो में वार्डवार पार्षद संस्तुत विकास कार्यो के लिए लगभग 150 करोड़ रुपये की व्यवस्था नगर निगम द्वारा अपने निजी संसाधनो से की जानी है। नगर निगम सीमा में बढ़े हुए प्रकाश बिन्दुओं पर विद्युत पर होने वाले व्यय में निरन्तर बढ़ोत्तरी हो रही है। इसी प्रकार कूड़ा निस्तारण में डीजल, पेट्रोल आदि की दरों में बढ़ोत्तरी होने के कारण निगम पर व्यय भार बढ़ रहा है। नगर निगम के अधिकारियो, कर्मचारियों के वर्ष में दो बार दो महंगाई भत्ते एवं वार्षिक वेतन वृद्धि होने के कारण वेतन मद में निरन्तर वृद्धि हो रही है। राज्य वित्त आयोग के अंतर्गत प्राप्त धनराशि निगम के अधिकारियों, कर्मचारियों के वेतन, पेंशन एवं अवशेष आदि पर ही व्यय हो जाता है। जबकि राज्य वित्त आयोग से नगर निगम को प्राप्त होने वाली धनराशि में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की जा रही है, बल्कि राज्य वित्त आयोग से प्राप्त धनराशि से एस.टी.पी. के संचालन एवं रखरखाव हेतु कटौती कर जल निगम को उपलब्ध कराया जा रहा है। इसी प्रकार नगर निगम के संविदा कर्मियों की दैनिक दरों में शासन द्वारा वृद्धि कर दी गयी है जिसके कारण भी नगर निगम पर अधिक व्ययभार पड़ रहा है। नगर निगम के अधिकारियों, कर्मचारियों के वेतन, पेंशन एवं अवशेष तथा विकास कार्यो के बढ़े हुए दायित्वों का समय से भुगतान करने में तथा नागरिकों को आवश्यक सेवाओं को समुचित स्तर तक बनाये रखने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि निजी स्रोतों से नगर निगम की आय का मुख्य स्रोत गृहकर कर है। इसलिए उपरोक्त वर्णित परिस्थितियों में नगर निगम के दायित्वों का निर्वहन करने हेतु गृहकर से आय में वृद्धि का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जा गया है। उ.प्र. नगर निगम अधिनियम 1959 की धारा 174(2)(ख) तथा उ.प्र. नगर निगम (सम्पत्ति कर) नियमावली 2000 यथा संशोधित 2002 एवं 2013 के नियम 4(ख) में यह व्यवस्था दी गयी है कि भवन या भूमि के वार्षिक मूल्य की गणना के लिए नगर आयुक्त द्वारा प्रत्येक दो वर्ष में एक बार भवन व भूमि की अवस्थिति, भवन के निर्माण की प्रकृति, भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 के प्रयोजन के लिए कलेक्टर द्वारा निर्धारित सर्किल दर और ऐसे भवन, भूमि के लिए उस क्षेत्र में किराये की वर्तमान न्यूनतम दर और ऐसे अन्य कारणों के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है।

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