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नरेंद्र मोदी देंगे प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा!

narendra-modi12एजेन्सी/ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने और अपनी सरकार के 22 माह के कार्यकाल से बेहद निराश हैं. पिछले कुछ दिनों से वे इस बात पर विचार मंथन कर रहे थे कि इस अवधि में उनकी क्या उपलब्धियां रही हैं, उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों का प्रदर्शन कैसा रहा है? इस विचार मंथन का जो नतीजा उन्हें देखने को मिला, इससे वे काफी निराश और दुखी हैं. उन्होंने पाया कि उनकी सरकार न तो जनता से किए गए वादों पर खरी उतर पाई है और न ही देश के आम गरीब आदमी की जिंदगी आसान हो, इस दिशा में कुछ कर पाई है. ऐसी स्थिति में उन्होंने मन बनाया है कि वे प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे. अगली स्लाइड में पढ़ें, किन मुद्दों पर खुद को फेल मानते हैं नरेंद्र मोदी…

नरेंद्र मोदी जिस बात से सबसे ज्यादा दु:खी हैं, वो है विदेशों से काला धन वापस लाकर हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपए जमा करवाने का वादा. अपनी लाख कोशिशों के बावजूद वे अब तक किसी भी भारतीय के खाते में विदेश से काला धन वापस लाकर एक रुपया तक जमा नहीं करवा सके हैं, जबकि उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान जनता से ये वादा बड़े जोर-शोर से किया था. यही बात उन्हें कचोट रही है. इसके अलावा ‘अच्छे दिन आएंगे’ के साथ ही ऐसे और भी कई मुद्दे हैं, जो चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने और उनकी पार्टी ने जनता से किए थे, लेकिन उन्हें पूरा करने की दिशा में अब तक एक भी कदम नहीं उठाया जा सका है. इसके साथ ही वे अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के प्रदर्शन से भी निराश हैं. आगे की स्लाइडों में पढ़ें, किस साथी का कैसा प्रदर्शन….

प्रधानमंत्री के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में सबसे महत्वपूर्ण पद होता है गृहमंत्री का, लेकिन मोदी मानते हैं कि उनके सहयोगी राजनाथ सिंह इस पद की जिम्मेदारियों को ठीक से नहीं निभा पा रहे हैं. पिछले कुछ समय में देश के विभिन्‍न हिस्सों में हुई हिंसा की घटनाओं- मालदा, हरियाणा आदि- को न रोक पाने और हिंसा के बाद उसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई न हो पाने को मोदी सीधे-सीधे गृहमंत्री की विफलता मानते हैं. आईबी और रॉ जैसी खुफिया एजेंसियों के होते हुए आतंकवादियों की घुसपैठ की जानकारी पाकिस्‍तान से मिलना भी मोदी को नागवार गुजरा है. पुख्‍ता सूचनाओं के बावजूद पठानकोट हमले को नहीं रोका जा सकना भी उन्हें राजनाथ सिंह की अकुशलता लगता है. अगली स्लाइड में पढ़ें रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की विफलताएं…

मनोहर पर्रिकर को मोदी ने बड़ी अपेक्षाओं के साथ रक्षा मंत्री की जिम्‍मेदारी सौंपी थी, लेकिन पर्रिकर उनकी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाए. भारतीय जवानों के पाक सैनिकों के सिर काटे जाने के जवाब अब तक किसी पाकिस्‍तानी जवान का सिर न काटा जाना मोदी को मन ही मन कचोट रहा है, जबकि उनकी पार्टी ने घोषणा की थी कि एक भारतीय जवान के बदले 10 पाकिस्‍तानी जवानों के सिर काटे जाएंगे. रक्षा मंत्री पाक और चीन को वैसा करारा जवाब नहीं दे पा रहे हैं, जैसा दिया जाना चाहिए था. मजबूरी में मोदी को इन देशों के प्रमुखों की ओर दोस्‍ती का हाथ बढ़ाना पड़ा. आगे पढ़ें विदेश मंत्री की विफलता….

नरेंद्र मोदी ने पार्टी में उन्हें नापसंद करने वाले वरिष्‍ठ नेता लालकृष्‍ण आडवाणी के खेमे में रहीं सुषमा स्वराज को मजबूरी में विदेश मंत्री बना तो दिया, लेकिन उनके रवैये से मोदी खुश नहीं हैं. सुषमा स्वराज के विदेश मंत्री रहते हुए उनकी जिम्मेदारियां खुद मोदी को उठाना पड़ रही हैं. उन्हें ही तमाम देशों से संबंध सुधारने, उनसे व्यापार बढ़ाने, विभिन्न स्‍तरों पर उनकी मदद लेने के लिए वहां की यात्राओं पर जाना पड़ रहा है, जबकि ये काम सुषमा स्वराज को करना था. मोदी को लगता है कि विरोधी खेमे की होने के कारण सुषमा जान-बूझकर ऐसा कर रही हैं. वित्त मंत्री कैसे रहे फेल, आगे पढ़ें….

देश का गरीब से गरीब आदमी भी दो वक्त की रोटी खा सके, जो कुछ आय उसे होती है, उससे अपनी न्यूनतम आवश्‍यकताओं की पूर्ति कर सके, इसकी जिम्मेदारी वित्त मंत्री अरुण जेटली की है, लेकिन मोदी को लगता है कि जिस तरह की नीतियां जेटली अपना रहे हैं, उससे तो देश के आम आदमी का जीना दूभर हो जाएगा. जेटली बजट भले ही ऐसा बनाएं, जो देखने में अच्छा लगे, लेकिन वे पिछले दरवाजे से ऐसी नीतियां ला रहे हैं, जो आम आदमी की जेब पर डाका डालने और पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने वाली है. ऐसे में तो अगले चुनाव में वोट मिलने से रहे और जेटली की कारगुजारियों का का ठीकरा फूटेगा उनके सिर. इन प्रमुख मंत्रियों के अलावा सभी मंत्री अपने-अपने दायित्वों को पूरा करने में फेल रहे हैं. आगे पड़ें, मोदी क्या सोचते हैं अपनी पार्टी के सांसदों को लेकर….

नरेंद्र मोदी ने पाया कि मंत्री तो ठीक, पार्टी के सभी सांसद भी उनके निर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं. उन्होंने सांसदों को एक-एक ग्राम गोद लेकर उसका विकास करने सहित कई जिम्मेदारियां सौंपी थीं, लेकिन अधिकांश सांसद इस ओर से उदासीन बने हुए हैं और उन बेकार के कामों और बयानबाजीद में लगे हुए हैं, जिनसे पार्टी की छवि धूमिल हो रही है. उनका मन तो करता है कि वे राष्‍ट्रपति को अपनी सरकार का इस्तीफा सौंपकर मध्‍यावधि चुनाव की सिफारिश कर दें, लेकिन वे देश को एक और चुनाव में धकेलना नहीं चाहते, लिहाजा केवल उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देने का मन बनाया है, ताकि एनडीए गठबंधन का कोई और नेता उनकी जगह ले सके. (हमारे पोलिटिकल रिपोर्टर ने शिवबूटी की तरंग में ये रिपोर्ट प्रेषित की है, बुरा न मानो होली है!)

 

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