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मुंबई, राज्य ब्यूरो। महाराष्ट्र की फड़नवीस सरकार ने बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त को जेल से रिहाई में दी गई रियायत से पल्ला झाड़ लिया है। समय से पहले रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने कहा कि यदि रिहाई में नियमों का उल्लंघन हुआ हो तो अदालत उन्हें फिर से जेल भेजने का निर्देश दे सकती है।
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संजय दत्त को निर्धारित अवधि से करीब आठ महीने 16 दिन पहले (256 दिन) रिहा कर दिया गया था। सरकार के इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। सरकार ने 17 जुलाई को संजय दत्त के अच्छे चरित्र को देखते हुए उन्हें समय पूर्व रिहा करने की बात कही थी। गुरुवार को जस्टिस आरएम सावंत और जस्टिस साधना जाधव की खंडपीठ ने सरकार से अच्छे चरित्र के आकलन के पैमाने के बारे में जानकारी मांगी। पीठ ने पाया कि मई, 2013 में आत्मसमर्पण करने वाले संजय दत्त ने जुलाई में फरलो और पैरोल के लिए आवेदन किया था।
जस्टिस साधना जाधव ने कहा, ‘अभिनेता ने 8 जुलाई, 2013 को फरलो और 25 जुलाई को पैरोल का आवेदन दिया था। दोनों अर्जियों को एक साथ स्वीकार कर लिया गया था। दोषी के समर्पण करने के दो महीने के अंदर ही जेल अधिकारियों ने उनके अच्छे व्यवहार को कैसे सुनिश्चित कर लिया? सामान्य तौर पर जेल अधीक्षक ऐसे आवेदनों को आगे भी नहीं बढ़ाते हैं।’ कोर्ट ने टिप्पणी की कि कई मामलों में दोषी के मां के मृत्यु शैय्या पर होने की स्थिति में भी पैरोल और फरलो नहीं दिया जाता है। जस्टिस जाधव ने कहा कि संजय दत्त को पहले पत्नी की बीमारी के आधार पर फरलो और फिर बेटी की बीमारी पर पैरोल दिया गया था।
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पीठ ने स्थिति को स्पष्ट करने के लिए राज्य सरकार को दो सप्ताह के अंदर विस्तृत हलफनामा दाखिल करने को कहा है। इस बीच, महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनि ने कहा कि हालांकि संजय दत्त को पैरोल या फरलो देने में किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया, लेकिन यदि अदालत को लगता है कि ऐसा हुआ है तो वह संजय दत्त को फिर से जेल भेजने का निर्देश दे सकती है। सरकार को इससे कोई आपत्ति नहीं होगी। इस पर जस्टिस सावंत ने कहा कि हमारा इरादा घड़ी को पीछे ले जाने का नहीं है। कोर्ट बस ऐसे मुद्दों को व्यवस्थित करना चाहता है, ताकि भविष्य में ऐसे सवाल न उठें।
संजय दत्त को 12 मार्च, 1993 के मुंबई बम धमाका मामले में वर्ष 2007 में टाडा अदालत ने उन्हें छह साल की कैद एवं 25000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी सजा को घटाकर पांच साल कर दिया था।