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नेपाल या बांग्लादेश में हैं जस्टिस कर्णन, राष्ट्रपति से मिलने की रखी मांग!

कोलकाता हाइकोर्ट के जस्टिस सीएस कर्णन की गिरफ्तारी पर गरमा-गरमी लगातार जारी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कर्णन देश छोड़कर नेपाल या बांग्लादेश पहुंच गए हैं। इंडियन एक्स्प्रेस की खबर के मुताबिक उनके सहयोगी और कानूनी सलाहकार ने ये दावा किया है। उन्होंने कहा कि जब तक राष्ट्रपति उनसे मुलाकात नहीं करेंगे वे देश नहीं लौटेंगे।
नेपाल या बांग्लादेश में हैं जस्टिस कर्णन, राष्ट्रपति से मिलने की रखी मांग!
इससे पहले कर्णन को गिरफ्तार करने के लिए कोलकाता पुलिस बुधवार को चेन्नई पहुंची। अवमानना के आरोप में सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को छह माह जेल की सजा सुनाई है। मंगलवार को आंध्र प्रदेश के पास श्रीकलाष्ठी में पहुंचने के बाद वह एक गेस्ट हाउस में रुके थे। फैसला आने के बाद उन्होंने अपने कमरे में मीडिया से बातचीत भी की।

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हालांकि सात जजों की खंडपीठ की अध्यक्षता कर रहे मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर ने मीडिया से जस्टिस कर्णन के किसी भी बयान या इंटरव्यू को प्रकाशित करने से मना किया है। तमिलनाडु पुलिस के मुताबिक कोलकाता पुलिस अधिकारियों ने उनसे जस्टिस कर्णन की गिरफ्तारी के संबंध में बातचीत की है। अदालत के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि सुप्रीम कोर्ट ने किसी हाईकोर्ट के मौजूदा जज को न्यायालय की अवमानना के आरोप में छह माह जेल की सजा सुनाई है।

इस पूरे विवाद से अनजान है जस्टिस कर्णन का गांव

कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस सीएस कर्णन भले ही राष्ट्रीय विवाद का केंद्र बन गए हैं और वह सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी मोल ले चुके हैं लेकिन उनके पैतृक गांव में इस मामले पर कोई चर्चा तक नहीं हो रही है। वृद्धाचलम के पास कर्णाथम पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष वी.आदिकेशवन बताते हैं, ‘यहां भी कुछ खबरें आई हैं और तभी हम जान पाए कि कुछ गड़बड़ है। लेकिन मुझे पूरी जानकारी नहीं है।’ दलित परिवार में जन्मे और हाई स्कूल के हेडमास्टर के बेटे जस्टिस कर्णन हाई स्कूल की शिक्षा तक इसी गांव में रहे। लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए पहले वृद्धाचलम और फिर चेन्नई चले गए। 

जस्टिस कर्णन का घर अब भी कर्णाथम में मौजूद है लेकिन ग्रामीणों के बीच उनका नाम बहुत ज्यादा चर्चित नहीं है। हालांकि कुछ दलितों को जरूर गर्व है कि वह हाईकोर्ट के जज बन गए हैं। कर्णाथम आम गांवों की तरह नहीं है जहां दलित हिंदू की अन्य जातियों से अलग बस्तियों में रहते हैं। यहां करीब 500 परिवार हैं जिनमें से 40 प्रतिशत दलित हैं और ये सभी परिवार एक-दूसरे के पड़ोसी हैं। यहां लगे पानी के नल सभी समुदाय इस्तेमाल कर सकते हैं। 

जस्टिस कर्णन अपने आठ भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर हैं। कर्णाथम में ही रह रहे उनके 87 वर्षीय चाचा सी. काशीलिंगम ने बताया कि उनके बड़े भाई चिन्नास्वामी स्वामीनाथ सरकारी हाई स्कूल के हेडमास्टर थे और उस समय के दक्षिणी अरकोट जिले के शिक्षक संघ के अध्यक्ष भी थे। उनका निधन दो साल पहले ही हुआ है। उन्होंने बताया, ‘जज के पिता अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे और उन्होंने अपनी आठों संतानों को अच्छी शिक्षा दी।’

गांव वालों से मेलजोल नहीं
कर्णन ने मंगलमपेटई हाई स्कूल से पढ़ाई की और वृद्धाचलम आर्ट्स कॉलेज से स्नातक किया। उनके दो भाई वकील हैं जबकि एक भाई तमिलनाडु स्पेशल पुलिस में हैं। गांववाले बताते हैं कि जस्टिस कर्णन सात महीने पहले ही गांव आए थे। वह गांव के लोगों से मिलते-जुलते नहीं थे। लेकिन अपने परिवार की कुलदेवी से उनका लगाव था। उन्होंने कर्णाथम में ही वैरावर देवी के लिए एक मंदिर बनाने की व्यवस्था की।

15 साल पहले अन्नाद्रमुक के बूथ एजेंट थे 
तमिलनाडु में एक विनम्र दलित वकील से वह 2002 में एक राजनीतिक दल के बूथ एजेंट बन गए। इसके बाद उन्हें 2009 में एक शीर्ष संवैधानिक पद पर नियुक्त किया गया। जस्टिस कर्णन के जीवन में पिछले 15 साल के दौरान कई उतार-चढ़ाव आए जिस पर किसी बॉलीवुड फिल्म की पटकथा बन सकती है। मद्रास हाईकोर्ट में उनके पूर्व सहयोगियों ने उनकी उत्पीड़न करने वाली मानसिकता का खुलासा किया है।

मार्च 2009 में मद्रास हाईकोर्ट के जज की शपथ लेने के तत्काल बाद ही उन्होंने हाईकोर्ट के जजों और एक के बाद एक कई मुख्य न्यायाधीशों पर गंभीर आरोप मढ़े। वह राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) तथा सुप्रीम कोर्ट आयोग को नियमित रूप से पत्र लिखकर आरोप लगाते रहे कि अन्य जज उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करते हैं। दो साल पहले ही उन्होंने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजय किशन कौल के खिलाफ अवमानना का मुकदमा चलाने की धमकी दी थी। मद्रास हाईकोर्ट की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन के आदेश पर रोक लगा दी थी। इस तरह के झंझटों से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट तत्कालीन सीजेआ

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