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नोटबंदी में छत्तीसगढ़ सहकारी बैंकों में जमा 247 करोड़ आखिर किसके हैं?

छत्तीसगढ़ के सहकारी बैंकों में नोटबंदी के दौरान के सिर्फ पांच दिनों में 247 करोड़ रूपये विभिन्न खातों में जमा हुए, ये रकम किसकी थी ? कहां से आई और किसके खाते में ट्रांसफर हुई इसका खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है. बैंक ने RTI के तहत लगभग डेढ़ साल बाद जमा रकम का ब्यौरा दिया, लेकिन गोपनीयता का हवाला देकर खातेदारों के नाम और पता ठिकाना देने से इंकार कर दिया.

बैंक द्वारा RTI से जो जमा रकम की जानकारी मिली वो काफी संदेहास्पद है. कांग्रेस ने सहकारी बैंक के लेनदेन की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है. उसका आरोप है कि यह ब्लैक मनी है, जो सफेद होकर रसूखदारों की तिजोरी में चली गई.

RTI से यह खुलासा हुआ है कि नोटबंदी के दौरान दस नवंबर 2016 से 14 नवंबर 2016 के बीच अर्थात सिर्फ पांच दिनों में रायपुर, धमतरी, राजनांदगांव, दुर्ग, बिलासपुर, अंबिकापुर और जगदलपुर में स्थित सहकारी बैंको की शाखाओं में 247 करोड़ रूपये जमा किए गए. गौरतलब है कि आठ नवंबर 2016 की रात नोटबंदी लागू की गई थी. इस दौरान बैंकों में पुराने नोट जमा कराने वालों का तांता लगा हुआ था. सहकारी बैंकों के ग्राहक आमतौर पर किसान होते हैं. किसानों के पास सूखे के हालात के चलते इतनी बड़ी रकम नहीं थी कि वे मात्र पांच दिनों के भीतर 247 करोड़ रूपये जमा कर पाते.

RTI से इस बात का भी खुलासा हुआ है कि दस नवंबर 2016 से 31 दिसंबर 2016 के बीच राज्य के सहकारी बैंक की शाखाओं में 32 करोड़ 52 लाख रूपये के पुराने नोट जमा हुए. अचानक सहकारी बैंकों में इतनी अधिक रकम कहां से आ गई यह आज भी सोचने का विषय बना हुआ है. जबकि सहकारी बैंक अपनी खराब माली हालात के चलते किसानों से ऋण की वसूली के लिए दबाव बना रहे हैं. बैंक में 247 करोड़ की रकम किस माध्यम से पहुंची, यह रकम किसकी है और इनके खाते कब खोले गए? इन तमाम सवालों को लेकर कांग्रेस जांच की मांग कर रही है.

मात्र पांच दिनों में सहकारी बैंकों की शाखाओं में जो रकम जमा की गई है उसका ब्यौरा इस प्रकार है. बिलासपुर में 50 करोड़ 29 लाख, दुर्ग में 56 करोड़ 96 लाख, अंबिकापुर में 10 करोड़ 88 लाख, जगदलपुर में 29 करोड़ 35 लाख, रायपुर में 60 करोड़ 64 लाख और राजनांदगांव में 48 करोड़ 77 लाख रूपये जमा किए गए.

विपक्ष बैंक की भूमिका पर सवालिया निशान लगा रहा है. उसका आरोप है कि सरकारी संरक्षण मिलने के चलते सहकारी बैंक ब्लैक मनी को वाइट मनी में तब्दील करने के कारखाने बन गए हैं. नियम-कायदों के तहत इनके ग्राहकों की जांच भी नहीं हो रही है. कांग्रेस के नेता और छत्तीसगढ़ प्रभारी पी.एल.पुनिया ने एलान किया है कि कांग्रेस सत्ता में आई तो ब्लैक मनी खपाने वालों को जेल भेजेगी.

छत्तीसगढ़ में सहकारी बैंक खेती किसानी से जुड़े लोगों के लिए रीढ़ की हड्डी की तरह है. आमतौर पर किसानों को कृषि ऋण, खाद्य बीज, और कृषि उपकरणों के लिए इनसे बड़ी सहायता मिलती है. केंद्र और राज्य सरकार की कई कृषि योजनाएं इन्ही बैंकों के जरिए संचालित होती है. राज्य भर में 80 लाख से ज्यादा किसानों के सहकारी बैंको में खाते हैं. सहकारी बैंक भी RBI की पॉलिसी के तहत संचालित होती है.

गंभीर बात यह है कि सहकारी बैंकों ने नोटबंदी के दौरान जमा रकम का ब्योरा देने से इंकार कर दिया था. इस मामले में गोपनीयता का हवाला देकर RTI के तमाम आवेदन सहकारी बैंकों ने खारिज भी कर दिए थे, लेकिन शिकायतकर्ताओं ने जब सूचना आयोग में अपील की तब जा कर सहकारी बैंकों ने नोटबंदी के दौरान जमा रकम के बारे जानकारी तो दी लेकिन बेहद सीमित. उसने खातेदारों के पते ठिकाने और जमा रकम का ब्योरा छिपा लिया.

फिलहाल इस मामले ने तूल पकड़ लिया है. खातेदारों की पहचान और बैंक की कार्यप्रणाली को लेकर कांग्रेस सरकार को घेरने में जुटी हुई है. इसके लिए उसने कई जिलों में धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया है. उसका आरोप साफ़ है कि यह रकम राज्य के सत्ताधारी नेताओं की है. इसीलिए बैंक RTI ऐक्ट तक को बंधक बना रखी है.

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