दस्तक-विशेष

पंचायत चुनावों के परचम तले मिशन-2017

Captureप्रणय विक्रम सिंह
कतंत्र के प्रथम पायदान त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों की खुमारी गांवों में अब धीरे-धीरे महसूस होने लगी है। जनता की सीधे भागेदारी का साक्षी ग्राम सभा समाज फिर से अपने नये नुमाइंदे की तलाश में जाग्रत हो गया है। बाग और खेत की मेढ़ों पर बैठ कर गोलबंदी शुरू हो गई है तो बरसों पुरानी शिकायतें फिर से पिटारों से बाहर आने लगी हैं। जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत के पदों के हेतु मतदान की तिथियां करीब आ चुकी हैं लेकिन अधिकांश को प्रधान और पंच पद के आरक्षण ने दुविधा में रखा हुआ है कि कहीं आरक्षण अरमानों पर पानी न फेर दे, तो वहीं कुछ संभाावित प्रत्याशी जनहित कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों द्वारा जातीय और सामाजिक स्तर पर नए-नए समीकरणों के निर्माण करने की कोशिशें भी हो रही हैं। वर्तमान में गांव-गांव आधार कार्ड बन रहे हैं, कहीं स्वयं प्रधान तो कहीं संभावित उम्मीदवार बाकायदा अपनी ओर से कैंप लगवा कर लोगों का आधार कार्ड बनवा रहे हैं, इससे पहले राशन कार्ड बनवाने में ऐसे लोगों की बड़ी तेज दिखी। इसके अतिरिक्त बीमार मरीजों को बोलेरो आदि की व्यवस्था कराकर उनके साथ अस्पताल तकजाने की की होड़ लगती दिखाई पड़ रही है। वर्तमान प्रधानों के लिए सबसे बड़ी चिंता समाजवादी पेंशन एवं विरोधी साथियों द्वारा शिकायती पत्रों से हैं। पेंशन में जिन पात्रों का नाम नहीं है, उसे मुद्दा बनाया जा रहा है, तो छोटी-छोटी शिकायतों के अलावा जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगी जाने वाली सूचनाओं में काफी वृद्धि देखी जा रही है। वहीं संभावित (आरक्षण कई लोगों के अरमानों पर वज्रपात करेगा।) प्रत्याशी दारु-मुर्गा, साड़ी, सहित तमाम तरह के प्रलोकान मतदाताओं को दे रहे हैं। एक जमाना था, जब जिला पंचायत और ग्राम पंचायत के चुनाव बिना किसी शोर-शराबे के पूरे हो जाते थे। लेकिन अब बिना ‘शोर’ और ‘शराब’ के पूरे नहीं होते दिख रहे हैं। ‘कच्ची दारू कच्चा वोट, पक्की दारू पक्का वोट, मुर्गा-दारू खुला वोट’ का सूत्र सरबुलंद चल रहा है। आबकारी विभाग का कहना है कि जितना राजस्व तीन महीने में आता है, पंचायत चुनावों में एक महीने में ही आ जाता है। विडंबना है कि कभी लोकमंगल का अधिष्ठान कहलाने वाली हमारी पंचायतें भ्रष्टाचार का केंद्र बन कर रह गई हैं। सन 2015 में विश्व की सबसे अधिक पंचायतों वाला उत्तर प्रदेश एक बार फिर गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को पूरा करने के लिये मतदान को तैयार हो रहा है। किंतु कुछ सवाल हैं, जब तक वो बे-जवाब रहेंगे तब तक चुनाव लाजवाब नहीं हो पायेंगे। फिलहाल बढ़ते हैं सवालों और अंदेशों की तरफ। क्या आपको लगता नहीं है कि दारू की भट्ठी पर पक रहा कच्चा जहर इस बार फिर गांधी के सपने को अकाल मौत का कफन पहनाने में कामयाब हो जायेगा! पंचायत चुनाव की ‘रणभूमि’ में उतरने से पहले प्रत्याशी विरोधियों पर दहशत फैलाने के लिए ‘फॉयर पॉवर’ की तैयारी में जुट गए हैं। जी, हां अद्धी और तमंचा की डिमांड बढ़ने से अवैध असलहों का काम काफी तेज हो गया है। यहां यह बताना जरूरी है कि हाल के दिनों में ही अनेक जनपदों कानपुर, कन्नौज, उरई, औरैया, फर्रुखाबाद समेत कई जनपदों की पुलिस अवैध असलहा बनाने वालों को दबोच चुकी है। ज्ञात हो कि पंचायत चुनाव की ‘रणभूमि’ में उतरने से पहले प्रत्याशी विरोधियों को पटकनी देने की हर कोशिश करता है। ‘फॉयर पॉवर’ के जरिए कई प्रत्याशी तो चुनाव को ही रक्तरंजित कर देते हैं। सवाल है कि क्या पंचायत चुनावों को रक्तरंजित करने के लिये भिंड, मुरैना और बीहड़ की तरफ से आने वाली अवैध असलहों की खेप को क्या सूबे की पुलिस रोक पायेगी या बिहार के रास्ते से आने वाली ‘बुलेट’ फिर ग्राम स्वराज के ‘बैलेट’ का मुकद्दर तय करेगी? और काले धन की कालिमा से पंचायतों के भविष्य को अंधकारमय बनाने की क्षमता और दुस्साहस रखने वाले प्रत्याशियों के दागदार चेहरों को चिन्हित कर फैसलाकुन और संदेशमूलक कार्यवाहियों की चाह काले धन के सामने दम तोड़ती नजर आयेगी या समाजवादी हुकूमत में लोहिया के सपने को साकार करने के लिये एक नये सवेरे का आगाज होगा? पुलिस चौकी और थाने में 2-3 वर्षों से लगातार तैनात सिपाही और दरोगाओं को रसूखदार प्रत्याशियों की एजेंटगिरी करने का मौका मिलेगा या फिर एकनीति के द्वारा पुलिस को निष्पक्ष करने की, चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन द्वारा कामयाब और गंभीर कोशिशें की जायेंगी। एक समस्या और है जिसने एकाएक सभी समीकरणों को ही बदल दिया है। दरअसल शहरों से लगे गावों में पैसे की एकाएक भरमार हो गई है। इन गांवों की जमीन अनाज उगलती हो या नहीं, लेकिन बढ़ती आवास समस्या और एक्सप्रेस हाइवे के निर्माण की वजह से जमीनें सोना अवश्य उगल रही हैं। पैसा आया है तो महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के सभी रास्ते सही और संभव लगने लगे हैं। दीगर है कि पंचायत चुनाव में वोटरों की संख्या कम होने के कारण प्रधान पद के प्रत्याशियों द्वारा अपने वोटरों को नकद पैसे और मुफ्त की दावतें देने का चलन बढ़ गया है। पैसे बांटने के इस खेल को अब इतना बढ़ावा मिल चुका है कि हर प्रधान पद के प्रत्याशी से उसके वोटरों को पैसे और दावत की अपेक्षा एक सामान्य बात हो गई है। विचारणीय बात यह है कि संभावित प्रत्याशी वोटरों की नकद पैसे और मुफ्त दावत की अपेक्षा को पूरी करने की कोशिशो की होड़ दिखाई पड़ने लगी है। अब तो सियासी दल भी पंचायत चुनावों में अपने प्रत्याशी उतारने जा रहे हैं। मतलब लोकसभा ओर विधान सभा चुनावों की जटिलता अब पंचायत के चुनावों में काफी दिखाई देगी।

दिखेगा राजनीतिक दलों का दमखम
पंचायत चुनाव पर सभी राजनीतिक पार्टियों की नजरें हैं। प्रदेश की हर छोटी-बड़ी पार्टी इस चुनाव को मिशन 2017 के विधानसभा चुनाव का एक महत्वपूर्ण पड़ाव मान रही हैं। सपा और भाजपा ने तो अपनी कमर कस ली है। पंचायत चुनाव से ही विधानसभा 2017 का चुनावी बिगुल बज चुका है, क्योंकि छोटे चुनावों से ही बड़े चुनावों की रणनीति बनायी जाती है। पंचायत चुनावों को लेकर सपा भी बहुत गंभीर है। जनेश्वर मिश्र की जयंती के मौके पर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने बातों-बातों में अपने कार्यकर्ताओं को और खुद मुख्यमंत्री को सख्त हिदायत दी कि पंचायत चुनाव में कड़ी मेहनत करें। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि पंचायतों के बल पर माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने बंगाल पर 34 साल तक राज किया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पंचायत चुनावों की तैयारी जल्द से जल्द शुरू करनी चाहिए। पार्टी के कद्दावर नेता शिवपाल सिंह ने कहा है कि समाजवादी पार्टी जिला पंचायत का चुनाव पार्टी सिंबल पर लड़ेगी लेकिन ग्राम पंचायत चुनाव में नहीं होगा पार्टी का सिंबल। वहीं दूसरी ओर मुम्बई में सिलसिलेवार धमाकों के आरोपी याकूब मेमन की फांसी की सजा पर सवाल खड़ा करने वाले ओवैसी की पार्टी (एआईएमआईएम) पंचायत चुनाव के जरिये अपनी ताकत परखेगी और उसके आधार पर राज्य में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति तैयार करेगी। उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने का मंसूबा पालने वाली एआईएमआईएम की बढ़ रही सक्रियता से सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) के परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक पर खासा प्रभाव पड़ना तय माना जा रहा है। राज्य में करीब तीन करोड़ साठ लाख मुसलमान हैं। अस्सी में से करीब 34 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां इनका खासा प्रभाव माना जाता है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले अपनी दावेदारी मजबूत करने की कोशिश में आम आदमी पार्टी पंचायत चुनाव में हिस्सा लेगी। पंचायत चुनाव के बहाने ‘आप’ उत्तर प्रदेश में अपना आधार मजबूत करेगी। पार्टी पंचायत चुनाव में बिना सिंबल प्रत्याशी उतारेगी।

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में युवा मतदाता होंगे अहम
प्रदेश में पंचायत चुनाव का बिगुल बज चुका है, आरक्षण और परिसीमन हो चुका है। राज्य निर्वाचन आयोग ने प्रदेश भर के मतदाताओं की संख्या को अंतिम रूप दे दिया है। मतदाता गिनती में इस बार राज्य में फर्जी मतदाताओं को पकड़ने के लिए डिजिटल तकनीकका प्रयोग किया हैं। 2.13 करोड़ नए मतदाता सूची में जुड़े भी हैं। खास बात यह कुल मतदाताओं में 51.5 फीसद 18 से 35 वर्ष के युवा ही हैं। इनमें 28.02 फीसद पुरुष तथा 23.49 फीसद महिला मतदाता हैं। इसी तरह 36 से 80 वर्ष की आयु वर्ग वाले 38.5 फीसद मतदाताओं में 20.39 फीसदी पुरुष तथा 18.15 फीसदी महिला वोटर हैं। मतदाता सूची में 60 वर्ष से ज्यादा उम्र वाले मात्र 10 फीसद हैं जिसमें से 4.92 फीसद पुरुष व महिला मतदाताओं की हिस्सेदारी 5.04 फीसद है। इस प्रकार स्पष्ट रूप से यह चुनाव युवाओं के कन्धों पर टिका है। अगर आकंड़ों पर गौर की जाए तो 51.5 फीसदी के साथ युवा इन चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। यह चुनाव आगामी विधानसभा चुनाव का रिहर्सल कहे जा रहे हैं तो इस प्रकार आगामी विधानसभा चुनाव में भी युवा शक्ति का जोर रहेगा। ल्ल

विश्व की सबसे अधिक पंचायतों वाला उत्तर प्रदेश एक बार फिर गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को पूरा करने के लिये मतदान को तैयार हो रहा है। किंतु कुछ सवाल हैं, जब तक वो बे-जवाब रहेंगे तब तकचुनाव लाजवाब नहीं हो पायेंगे। फिलहाल अनेक सवालों और अंदेशों के दरम्यान पंचायत चुनावों का शंखनाद हो गया है।

जो पंचायत चुनाव कभी गांवों की सामाजिक समरसता को मजबूत करने की एक सीढ़ी थे वही आज कानून और व्यवस्था के लिए चुनौती बन चुके हैं। पहले ग्राम पंचायतों के चुनाव इतने हिंसक नहीं होते थे लेकिन अब ज्यादातर जगहों पर चुनाव के काफी पहले से ही विरोधियों को निपटाने का खूनी दौर शुरू हो जाता है।

पंचायत चुनाव एमपी और एमएलए चुनाव से ज्यादा संवेदनशील होते हैं। जिलों के अधिकारियों को इस मुद्दे पर प्रभावी कार्रवाई के निर्देश दिये गये हैं। अब तक जेल से हो रहे अपराधों पर लगाम लगाने में एक कानूनी बाध्यता थी जिसे अब दूर कर लिया गया है। अब ऐसे अपराधियों को दूर की जेलों में स्थानान्तरित किया जा सकेगा। इसके अलावा न सुधरने वाले अपराधियों को जेल की तन्हा बैरकों में शिफ्ट करवाया जा सकता है।
-जगमोहन यादव, पुलिस महानिदेशक, उ.प्र

सभी जिलों के जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को निर्देशित किया गया है कि वे खुद मौके पर जाएं और अपने अधीनस्थ अधिकारियों से आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के बारे में न सिर्फ पता करें बल्कि उन लोगों को चिन्हित करें जो चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे लोगों के विरुद्ध गुण्डा एक्ट, गैंगस्टर, एनएसए और 107/16 की कार्रवाई करें ताकि चुनाव के समय किसी किस्म की दिक्कतें न आएं।
-देवाशीष पण्डा, प्रमुख सचिव गृह, उ.प्र

मंत्री से लेकर अधिकारी तक शिक्षामित्रों के संगठनों से बातचीत कर उनसे दूसरे फॉर्मूलों पर सुझाव मांग रहे हैं। कुछ लोगों ने त्रिपुरा मॉडल का सुझाव दिया है। वहां शिक्षामित्रों की तर्ज पर सर्व शिक्षा अभियान में भर्तियां की गई थीं। इनको कॉट्रेक्ट शिक्षक का नाम देते हुए शिक्षकों के बराबर वेतन और अन्य सुविधाएं दी जा रही हैं।

उ. प्र में सरकारी नौकरी पाने की इच्छा रखने वालों को लगातार एक के बाद एक झटका लग रहा है। पहले पुलिस भर्ती, फिर शिक्षा मित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन और अब ग्राम पंचायत अधिकारी के 3587 पदों की भर्ती प्रक्रिया पर उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। इन सारी घटनाओं से जहां बेरोजगारों की सपनों पर गाज गिरी है तो वहीं राज्य सरकार को भी तगड़ा झटका लगा है। हालांकि न्यायालय द्वारा दिए विभिन्न भर्तियों को लेकर दिए गए निर्णयों को लेकर राजनेता खुलकर बोलने से कतरा रहे हैं। एक लाख 75 हजार शिक्षा मित्रों की नियुक्तियां रद होने के बाद सूबे के लगभग हर जिले में शिक्षा मित्र सड़कों पर आ गए और कानून अपने हाथ में लेने लगे। कई शिक्षा मित्र इस सदमे का बर्दाश्त नहीं कर पाए तो कुछ के परिजनों के इस आघात से प्राण पखेरू ही उड़ गए। दरअसल, सरकार चाहे उप्र की हो या फिर मप्र की अथवा किसी अन्य प्रदेश की, स्थिति कमोवेश हर प्रांत में एक जैसी है।
जब पार्टियां विपक्ष में होती हैं और चुनाव नजदीक होते हैं तो कुछ ऐसे वायदे-इरादे कर लिए जाते हैं जो बाद में उसी के गले की हड्डी बन जाते हैं। चूंकि वोट बैंक और सत्ता में आने के लिए साम, दाम, दंड व भेद समेत सभी हथकंडे अपनाने पड़ते हैं, सो राजनैतिक दल वायदा करने से पहले गंभीरता से विचार कम ही कर पाते हैं। अब जबकि उच्च न्यायालय का फैसला आ गया है और शिक्षा मित्र आन्दोलित, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी व स्वयं प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें धैर्य रखने तथा समस्या का समाधान निकालने का आश्वासन दिया है। दरअसल, केंद्र की तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने शिक्षा मित्रों की अवधारणा को जन्म दिया था। विश्व बैंक के सहयोग से चलने वाली इस योजना का उद्देश्य यह था कि देश के सभी बच्चों, विशेषकर सुदूर ग्रामीण व गांवों में रहने वालों को प्राथमिक शिक्षा सुलभ हो सके। शिक्षा मित्रों को इसके एवज में मानदेय दिए जाने एवं उनकी नियुक्ति संविदा के आधार पर किए जाने की व्यवस्था की गयी थी। हालांकि इस योजना को लेकर विश्व बैंक द्वारा रखी गई शर्तों को तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने खारिज कर दिया था, लेकिन इस सोच को वाजपेयी सरकार ने आगे बढ़ाया। बाद में नियमों में कुछ संशोधन कर बेसिक टीचिंग सर्टिफिकेट यानि बीटीसी करने के बाद शिक्षा मित्रों को शिक्षण कार्य से जोड़ा गया। यूपी में मायावती सरकार के कार्यकाल के दौरान ही शिक्षा मित्रों की नियुक्तियों को हरी झंडी दी थी। बाद में 2012 का उप्र विधानसभा का चुनाव घोषित हो गया। इन चुनावों में समाजवादी पार्टी ने शिक्षा मित्रों का वोट हासिल करने के लिए दांव खेला और वायदा किया कि शिक्षा मित्रों को सरकारी प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापक पद पर समायोजित किया जाएगा।
सरकार बनने के बाद बिना विचार किए चुनावी घोषणा को अमली जामा पहनाया जाने लगा। इसी बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को बड़ा झटका देते हुए एक लाख 75 हजार शिक्षामित्रों को प्राथमिक विद्यालयों का अध्यापक बनाए जाने के आदेश को रद कर दिया। कोर्ट ने निर्धारित योग्यता नहीं होने तथा बिना संस्तुति वाले पदों के आधार पर इन नियुक्तियों को रद्द कर दिया। अधिवक्ता हिमांशु राघव तथा अन्य की याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा और दिलीप गुप्ता की तीन सदस्यीय पीठ ने एक लाख 75 हजार शिक्षामित्रों के समायोजन को निरस्त करते हुए अपने आदेश में कहा कि नियमों में किया गया संशोधन असंवैधानिक था। पीठ ने कहा कि राज्य सरकार को समायोजन करने का अधिकार नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यह भी कहा कि शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) में कोई भी ढील देने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले साल 19 जून को शिक्षक नियमावली 1981 में संशोधन कर शिक्षामित्रों को समयवद्ध तरीके से समायोजित करने का शासनादेश जारी किया था। सरकार ने शित्रामित्रों की नियुक्ति सहायक शिक्षक के पद पर की थी। जबकि नियमों के तहत सहायक शिक्षक को कम से कम स्नातक तथा बीटीसी होना आवश्यक है, लेकिन शिक्षामित्र 12वीं पास हैं। अब जबकि उच्च न्यायालय ने शिक्षा मित्रों के समायोजन को असंवैधानिक करार दिया है तो राज्य सरकार विकल्पों की तलाश में जुट गयी है। राज्य सरकार समायोजन रद होने के बाद भी शिक्षामित्रों की हरसंभव मदद करना चाहती है। वह चाहती है कि यदि इन्हें स्थायी शिक्षक नहीं बनाया जा सकता है, तो शिक्षा सहायक या अन्य किसी नाम से शिक्षकों के बराबर वेतन व अन्य भत्ते दिए जाएं। सरकार इस बार कोई चूक नहीं चाहती, इसलिए सभी पहलुओं पर गंभीरतापूर्वक विचार-विमर्श किया जा रहा है। मंत्री से लेकर अधिकारी तक शिक्षामित्रों के संगठनों से बातचीत कर उनसे दूसरे फॉर्मूलों पर सुझाव मांग रहे हैं। कुछ लोगों ने त्रिपुरा मॉडल का सुझाव दिया है। वहां शिक्षामित्रों की तर्ज पर सर्व शिक्षा अभियान में भर्तियां की गई थीं। इनको कॉट्रेक्ट शिक्षक का नाम देते हुए शिक्षकों के बराबर वेतन और अन्य सुविधाएं दी जा रही हैं।
टीईटी कराने या इससे छूट देने का अधिकार भले ही राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के पास है, लेकिन शिक्षकों की सेवा शर्तें तय करने का अधिकार तो राज्य सरकार के पास है। इसलिए सरकार अपने हिसाब से वेतनमान व भत्ते तय करते हुए शिक्षामित्रों को लाभ पहुंचा सकती है। इसी सोच के तहत मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यह कहा कि राज्य सरकार शिक्षामित्रों के साथ है। उनके लिए दूसरे विकल्पों पर भी विचार किया जा सकता है। बेसिक शिक्षा मंत्री रामगोविंद चौधरी ने इस दिशा में काम शुरू भी कर दिया है। उधर, बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री योगेश प्रताप सिंह ने शिक्षामित्रों से मुलाकात की। इस दौरान महाराष्ट्र के फॉर्मूले पर चर्चा हुई। प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के मंत्री कौशल कुमार सिंह के मुताबिक बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री ने महाराष्ट्र के एमएलसी कपिल पाटिल से बातचीत की। उनकी अगुवाई में ही वहां शिक्षामित्रों को शिक्षाशास्त्र में दो साल का डिप्लोमा देते हुए बिना टीईटी के समायोजित किया गया है।
उधर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के दौरे के समय शिक्षा मित्रों के प्रतिनिधिमंडल को दिलासा दी। मोदी ने शिक्षामित्रों से कहा कि हताश होने की जरूरत नहीं है। इस बारे में यूपी सरकार से भी बातचीत हुई है। सरकार को भी सभी बातें मौखिक ही पता चली हैं। अभी तक कोर्ट के आदेश की कापी नहीं मिली है। कोर्ट का आदेश मिलते ही इस पर चर्चा की जाएगी। उन्होंने कहा कि हम अपने जीवन को संकट में डालेंगे तो समस्या का समाधान नहीं होगा। शिक्षामित्र तो चला जाएगा उसके परिवार का और उसके बच्चों का क्या होगा। शिक्षामित्रों से अनुरोध है कि लड़ाई छोड़नी नहीं चाहिए, हौसला हारना नहीं चाहिए। आत्महत्या का मार्ग नहीं होना चाहिए। इसके लिए क्या-क्या समाधान हो सकता है उसका भी रास्ता खोजा जाएगा। यूपी सरकार भी आपके साथ अन्याय नहीं करना चाहेगी। प्रधानमंत्री मोदी से पहले केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने भी शिक्षामित्रों को आश्वासन दिया था कि उनके साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। फिलहाल शिक्षा मित्र अपने भविष्य को लेकर सशंकित हैं और उन्हें तथा सरकारों को भी कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। ल्ल

जब पार्टियां विपक्ष में होती हैं और चुनाव नजदीक होते हैं तो कुछ ऐसे वायदे-इरादे कर लिए जाते हैं जो बाद में उसी के गले की हड्डी बन जाते हैं। चूंकि वोट बैंक और सत्ता में आने के लिए साम, दाम, दंड व भेद समेत सभी हथकंडे अपनाने पड़ते हैं, सो राजनैतिक दल वायदा करने से पहले गंभीरता से विचार कम ही कर पाते हैं।

बढ़ सकती हैं माया की मुश्किलें

देवव्रत
यूपी के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले में सीबीआई पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती से जल्द ही पूछताछ करेगी। स्वयं मायावती ने इसकी तस्दीक भी की है। हालांकि मायावती ने केन्द्र पर हमलावर होते हुए कहा है कि मोदी सरकार सीबीआई का दुरुपयोग कर रही है। उधर, सीबीआई मायावती नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस प्राधिकरण के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह के मामले में भी पूछताछ की तैयारी चल रही है। यह पूछताछ इन दोनों बहुचर्चित मामले के राजनैतिक और अफसरशाही षड्यंत्र से संबंधित होगी। घोटाला करीब 5500 करोड़ रुपये का था। वर्ष 2012 में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने घोटाले के लिए मायावती सरकार को खुले तौर पर दोषी ठहराया था।
एनआरएचएम ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने की केंद्र की योजना है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना (एनआरएचएम) के तहत हुआ घोटाला, यहां सीबीआई की अब तक की सबसे बड़ी जांच बनी हुई है। इसमें बसपा सरकार के काबीना मंत्रियों से लेकर उच्च प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत सामने आ चुकी है। खुलेआम नियमों की अनदेखी और मनमाना काम किया गया। इतना ही नहीं बगैर काम भुगतान भी दिया गया। अपने लोगों को ठेके दिए और काम करने के लिए अग्रिम भुगतान भी। चुनिंदा फर्मों व कंपनियों से अधोमानक दवाएं और उपकरण खरीदे गए और बाजार दर से आठ गुना अधिक भुगतान किया गया। हर काम हुआ, मगर कमीशन के साथ। शिकायत हुई तो जांच भी लेकिन जो तथ्य सामने आए, उसने सिर्फ सियासी ही नहीं प्रशासनिक हलके में सबको सकते में ला दिया। घोटाले की जांच कर रहे अधिकारियों ने माना था कि घोटाला कई वर्षों से चल रहा था। पर, वर्ष 2010 व 11 में बड़े पैमाने पर धांधली हुई थी। एनआरएचएम घोटाला मामले में लखनऊ में परिवार कल्याण विभाग के सीएमओ डॉ. विनोद आर्य को अक्तूबर 2010 में व डॉ बीपी सिंह को अप्रैल 2011 में सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। यही नहीं घोटाले के आरोप में जेल भेजे गए डिप्टी सीएमओ डॉ. वाईएस सचान की जून 2011 में की लखनऊ जिला जेल में हत्या कर दी गई। अफसरों ने इसे आत्महत्या बताने की कोशिश की थी। वहीं, सीबीआई जांच के दौरान खीरी में तैनात चिकित्सा विभाग के एक वरिष्ठ लिपिक महेंद्र शर्मा की हत्या कर दी गई थी। इसे भी आत्महत्या बताया गया। एक परियोजना प्रबंधक समेत दो ने आत्महत्या भी की तो एक ठेकेदार ने ट्रेन के सामने आकर जान देने का प्रयास किया।
सीबीआई ने अपनी जांच में बसपा सरकार के तत्कालीन काबीना मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा व विधायक आरपी जायसवाल को मार्च 2012 में गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य प्रदीप शुक्ला को उसी साल मई में गिरफ्तार किया गया। इससे पहले जनवरी 2012 में पूर्व डीजी हेल्थ एसपी राम, यूपीएसआईसी के एमडी एके वाजपेयी, दवा के बड़े व्यापारी सौरभ जैन गिरफ्तार किए गए थे। इसके अलावा सीबीआई ने कई इंजीनियर, परियोजना प्रबंधक, चिकित्सा अधिकारी आदि को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। बाबू सिंह कुशवाहा आज भी जेल में हैं, जबकि प्रमुख सचिव व पृूर्व विधायक व कई अन्य को जमानत मिल चुकी है। महाघोटाले में सीबीआई अब तक 76 से अधिक एफआईआर दर्ज कर चुकी है। वहीं, यादव सिंह मामले में भी मायावती पर शिकंजा कस सकता है। इस मामले में दो एफआईआर दर्ज कर चुकी सीबीआई उनसे पूछताछ कर सकती है। सीबीआई जांच के मुताबिक यादव सिंह राजनीतिक सरपरस्ती में बड़े वित्तीय फैसले करता था। सिंह के जरिए राजनीतिक व अफसरशाही तबके में पैसे भेजे जाते थे। सीबीआई के मुताबिक यादव सिंह इस संबंध में खुल कर जानकारी नहीं दे रहा है। माया से पूछताछ के बाद आगे की जांच में सहायता मिलेगी। ल्ल
यूं ही साकार होगा मेक इन यूपी का सपना

इन्वेस्टर्स कॉनक्लेव में मुख्यमंत्री ने सूबे की खूबियां गिनाते हुए उद्यमियों से ‘मेक इन यूपी’ का आह्वान किया। आबादी के लिहाज से सबसे बड़ा राज्य होने के साथ उत्तर प्रदेश का बाजार भी सबसे बड़ा है, इसलिए उद्यमियों के लिए अपार संभावनाएं हैं। मुख्यमंत्री ने उद्यमियों को विश्वास दिलाया कि उप्र आने वालों को किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी।

जितेन्द्र शुक्ला
म्मीदों के प्रदेश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का ‘मेक इन यूपी’ का नारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ नारे से पहले ही फलीभूत होने जा रहा है। राज्य सरकार ने आगरा के बाद अब मुंबई में निजी पूंजी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए इन्वेस्टर्स कॉनक्लेव किया। मुम्बई जाने से पहले विपक्षी दलों द्वारा तमाम सवाल उठाये गए लेकिन जब इन्वेस्टर्स कॉनक्लेव में 51,098 करोड़ रुपये के निवेश का करार हुआ तो सभी के बोल बंद पड़ गए। इन्वेस्टर्स कॉनक्लेव में सूत्र वाक्य के जरिए उप्र को ‘द लैंड आफ अनलिमिटेड पोटेंशियल’ यानि असीमित संभावनाओं की भूमि बताकर निवेशकों को आकर्षित करने का प्रयास किया गया और फिर कामयाबी भी हासिल हुई। अब जहां सूबे में 51,098 करोड़ के निवेश होगा तो इसके जरिए करीब डेढ़ लाख बेरोजगारों को प्रत्यक्ष तथा लाखों लोगों को परोक्ष रूप से रोजगार मिलेगा।
अखिलेश यादव के नेतृत्व में बनी समाजवादी पार्टी की सरकार ने पहली बार इन्वेस्टर्स कॉनक्लेव किया, जहां अवस्थापना, ऊर्जा, आईटी, इलेक्ट्रानिक्स, मैन्यूफैक्चरिंग, बायोमास, एग्रो प्रोसेसिंग और सोलर आदि क्षेत्र की 50 कंपनियों ने उत्तर प्रदेश सरकार के साथ समझौता किया। कॉनक्लेव में कई बड़ी कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों और उद्यमियों ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व राज्य के अधिकारियों से मिलकर उ.प्र. के विभिन्न क्षेत्रों में निवेश की इच्छा जताई।
प्रमुख सचिव अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास महेश गुप्ता के मुताबिक जिन बड़ी कंपनियों ने उत्तर प्रदेश में निवेश करने पर सहमति जताई उनमें एलजी, रिलायंस जियो, कनोडिया ग्रुप, आइडिया सेल्यूलर, सेरस बायो सिस्टम, अमूल, आईटीसी, गोदरेज एग्रोवेट, इंडोगल्फ फर्टिलाइजर, तोशीबा पावर, ईकोरिको, ऑल इंडिया प्लास्टिक्स मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन प्रमुख हैं। सबसे ज्यादा 13405 करोड़ रुपये का निवेश उप्र के इन्फ्रास्ट्रक्चर में होगा। इसी तरह 6630 करोड़ रुपये फूड एवं एग्रो प्रोसेसिंग, 6150 करोड़ मैन्युफैक्चरिंग, 3400 करोड़ ऊर्जा, 1578 करोड़ इलेक्ट्रानिक्स, 1000 करोड़ बायोमास, 700 करोड़ सोलर तथा 100 करोड़ रुपये आईटी क्षेत्र में निवेश होंगे। इन्वेस्टर्स कॉनक्लेव में उत्तर प्रदेश को विकास के रास्ते पर ले जाने के लिए मुख्यमंत्री ने सूबे की तमाम खूबियां गिनाते हुए उद्यमियों से ‘मेक इन यूपी’ का आह्वान किया। मुख्यमंत्री ने उद्यमियों को विश्वास दिलाया कि उप्र आने वालों को किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी। मुख्यमंत्री ने मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ का जिक्र करते हुए कहा कि ‘मेक इन यूपी’ क्यों न हो। आबादी के लिहाज से सबसे बड़ा राज्य होने के साथ उत्तर प्रदेश का बाजार भी सबसे बड़ा है, इसलिए उद्यमियों के लिए अपार संभावनाएं हैं। मुख्यमंत्री ने सहज रूप से यह स्वीकार भी किया कि मुंबई देर से आए, पहले आना चाहिए था। साथ ही उप्र सरकार की अब तक की उपलब्धियों व संकल्पों से भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने निवेशकों को अवगत कराया और कहा कि किसी भी सुझाव को सरकार स्वीकार करेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि 60 फीसद इनकम टैक्स देने वाले मुंबई के उद्यमियों के 90 फीसद उद्योग उत्तर प्रदेश में ही लगे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि 326 किलोमीटर लम्बे आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे के लिए बिना किसी विरोध के जमीन की व्यवस्था की गई। उन्होंने बताया कि दूध, गेहूं, चीनी उत्पादन के मामले में प्रदेश अग्रणी है। महाराष्ट्र में बाहर की रा शुगर भी होती, लेकिन यूपी में ऐसा नहीं है। सूबे की ग्रोथ रेट, देश के औसत से ज्यादा है। प्रदेश में भगवानों ने तो जन्म लिया ही है, प्रधानमंत्री भी उत्तर प्रदेश के बिना नहीं बन सकते। उद्यमियों को मुख्यमंत्री ने योजनाओं के बारे में जानकारी दी कि राज्य सरकार वाराणसी, इलाहाबाद, मेरठ व कानपुर में मेट्रो चलाने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी है और राजधानी लखनऊ में मेट्रो का काम आरम्भ हो चुका है। ल्ल

विश्व बैंक की रिपोर्ट : यूपी दसवें स्थान पर

विश्व बैंक द्वारा जारी ताजा रिपोर्ट के अनुसार कारोबारी प्रक्रिया सरल बनाने को केंद्र और राज्य सरकारों को जो सुधार करने थे, कई सूबे अब तक उन्हें पूरी तरह लागू करने में नाकाम रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान ने 98 सूत्री कार्ययोजना में से 50 प्रतिशत से अधिक को लागू कर दिया है। हालांकि किसी भी राज्य ने 75 प्रतिशत से अधिक उपायों को लागू नहीं किया है। रिपोर्ट में राज्यों की ओर से लागू किए गए सुधारों को रेखांकित भी किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक कारोबार की राह सुगम बनाने के मामले में बिहार 21वें नंबर पर है, जबकि इस सूची में गुजरात टॉप पर है। इस मामले में बिहार का प्रदर्शन ओडिशा और तेलंगाना से भी खराब है। कारोबार शुरू करने की सहूलियत के हिसाब से देश में शीर्ष 10 राज्यों में से छह प्रदेश भाजपा शासित राज्य हैं। सूची में उत्तर प्रदेश का 10वां स्थान, जबकि दिल्ली 15वें नंबर पर है। रिपोर्ट में राज्यों का आकलन इस आधार पर किया गया है कि उन्होंने कारोबार की राह सुगम बनाने को एक जनवरी से 30 जून, 2015 के बीच 98 सूत्री कार्ययोजना में से कितने सुधारों को लागू किया है। मेक इन इंडिया कार्यक्रम के लांच होने के बाद केंद्र सरकार के औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग तथा राज्य सरकारों के बीच 29 दिसंबर, 2014 को इस 98 सूत्री कार्य योजना को लागू करने पर सहमति बनी थी।

भेल की आलोचना और तोशीबा की तारीफ

मुख्यमंत्री ने जापान की तोशीबा कंपनी की तारीफ करते हुए कहा कि इनके द्वारा 20-25 वर्ष पहले बनाए गए पावर प्लांट आज भी चल रहे हैं। किसी का नाम लिये बिना उन्होंने कहा कि वह भेल को दोषी नहीं ठहराते हैं, लेकिन उसके प्लांट नहीं चले। गौरतलब है कि भेल द्वारा बनाए गए अनपरा-डी परियोजना के लोकार्पण के महीनों बाद भी उससे बिजली का उत्पादन नहीं हो सका। विदित हो कि तोशीबा हरदुआगंज तापीय विस्तार परियोजना में 660 मेगावाट का प्लांट लगाने जा रही है। इस संबंध में गुरुवार को यहां एमओयू भी हुआ है।
निवेशक सम्मेलन में विभिन्न क्षेत्रों के निवेशकों में कुछ उत्साह तो नजर आया, लेकिन आशंकाएं भी दिखाई दीं। हालांकि राज्य सरकार की ओर से सभी को आश्वस्त किया गया कि यदि वे सूबे में निवेश करते हैं तो उन्हें हर प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। सम्मेलन के दौरान बैंकिंग क्षेत्र के लोगों के साथ चली मुख्यमंत्री की बैठक में ज्यादातर बड़े बैंकों ने हिस्सा लिया और अपनी जिज्ञासाओं को शांत किया। सिने उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई नीतियों एवं मुख्यमंत्री के आश्वासनों से सबसे ज्यादा प्रभावित फिल्म निर्माता ही दिखे। अपने पुत्र जायद खान के साथ आए फिल्म निर्माता संजय खान ने प्रदेश सरकार द्वारा मनोरंजन उद्योग के लिए बनाई गई नीतियों की जमकर तारीफ करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश देश के मुकुट का मुख्यरत्न है। संजय आगरा में थीम पार्क का निर्माण कर रहे हैं। उनका कहना है कि इसमें उन्हें सरकार की ओर से अपेक्षित सहयोग मिल रहा है। फिल्म निर्माता बोनी कपूर और अनुराग कश्यप भी उत्तर प्रदेश की बदलती नीतियों से प्रभावित दिखे। बोनी कपूर ने बताया कि उन्होंने एक फिल्म बनाने के लिए सरकार के पास जिस दिन आवेदन भेजा, उन्हें अगले दिन ही उसका उत्तर प्राप्त हो गया। इससे पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में सिनेमा निर्माण के लिए माहौल बदल रहा है। वरिष्ठ फिल्म निर्माता मुजफ्फर अली ने भी कहा कि सरकार जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में फिल्म बनाने के लिए निर्माताओं को प्रोत्साहित कर रही है, यह काफी सराहनीय है। साथ ही उन्होंने सुझाव भी दिया कि फिल्म बनने के बाद उसके वितरण में भी सरकार को आर्थिक मदद देनी चाहिए। इससे निर्माताओं का उत्साह और बढ़ेगा। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में फिल्म निर्माण के लिए ‘सिंगल विंडो क्लियरेंस पोर्टल’ का शुभारंभ करते हुए बॉलीवुड को उप्र में ज्यादा से ज्यादा फिल्म बनाने का न्योता भी दिया। पोर्टल के शुरू होने से फिल्म निर्माताओं को उत्तर प्रदेश में फिल्मों के निर्माण में बहुत सुविधा रहेगी। पोर्टल के माध्यम से फिल्म निर्माता सब्सिडी तथा अन्य क्लियरेंस के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे। शूटिंग से संबंधित सभी क्लियरेंस तय अवधि में प्राप्त होंगे। फिल्म उद्योग से जुड़ी हस्तियों ने उत्तर प्रदेश सरकार की फिल्म नीति व फिल्म निर्माण के लिए उपलब्ध करायी जा रहीं सुविधाओं की तारीफ की। इस मौके पर फिल्म प्रोड्यूसर व सीईओ वेव सिनेमा राहुल मित्र, मुजफ्फर अली, सुधीर मिश्र, केतन मेहता, पूजा भट्ट, अनूप जलोटा, संजय कपूर, जायद खान, मनोज वाजपेयी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, रवि किशन, दिव्या दत्ता, विम्पा के महासचिव संग्राम शिरके, फिल्म मेकर्स कम्बाइन के धरम मेहरा, कनायत अरोड़ा, एंजल तेतारबे सहित फिल्म जगत की तमाम हस्तियां मौजूद रहीं।

किसने कितना किया निवेश

कंपनी निवेश(करोड़ में)
आईटीसी 1450
इंडोगल्फ फर्टिलाइजर 3800
तोशीबा पॉवर 3400
एलजी 1328
रिलायंस जियो 1200
कनोडिया ग्रुप 1100
वेल्सपन 600
एमएसके टेक्नोलॉजी 700
एमएसके टेक्सटाइल्स 550
आइडिया सेल्युलर 500
उसर ईको पॉवर 500
एचएन सिंह एग्रो 500
इंडो-यूरोपियन चैंबर्स 500
वर्सेटाइल इन्फ्राडेवलपर्स 375
ईकोप्रो एग्रो इंडस्ट्रीज 375
राह पेमेंट सॉल्युशन 250
सेरस बायो सिस्टम 300
अमूल संचय 300
वीरेन्द्र ईको गार्डन 300
अवध इंडस्ट्रियल एस्टेट 270
इकोरिको 250
प्रभात ग्रुप 250
ईकोदेव इंडस्ट्रीज 225
गोदरेज एग्रोवेट 105
प्रगति आयल 200
एचपीसीएल 200
हाई राइज हॉस्पिटेलिटी 500
हॉल एंड एंडरसन 360
अंबा इन्फ्रा प्रोजेक्ट 700
फिल्म सिटी 7000
रमईपुर लेदर कलस्टर 3000
टेक्सटाइल क्लस्टर 200
इकराम अख्तर फिल्म 180
आइडियल इंडस्ट्रियल पाक्स 150
विजन कारपोरेशन 100
श्री साइन सिस्टेक 100
सारा एक्सपोर्ट 100
मॉडर्न लेमिनेटर्स 100
एशियन मिनरल मार्केट्स 6200
ग्लोबल टेक एलईडी इंडिया 6000
गोल्डेन आर्क इंटरनेशनल लि. 400
एमईएसपीएल 950

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