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पुरी साहब, अच्छी एक्टिंग के लिए कौन-कौन सी चीजें जरूरी होती हैं?

दुबले भाई’ यानी मैं, और ‘लेनिन जूनियर’ नाम पड़ा बीबीसी एफएम के प्रेजेंटर विदित मेहरा का। विदित का खल्वाट और ठुड्डी पर लेनिन-नुमा दाढ़ी देखकर ओमपुरी छूटते ही बोले – ये तो लेनिन जूनियर है और मेरी दुबली पतली काया को उन्होंने नाम दिया ‘दुबले भाई’। दुनिया भर में मशहूर कद्दावर फिल्म एक्टर ओम पुरी का पहली ही मुलाकात में हमसे इस कदर बेतकल्लुफ हो जाना उम्मीद से परे की बात थी।
हमारे लिए तो वो तार की तरह तने रहने वाला ‘अर्धसत्य’ का सब इंस्पेक्टर अनंत वेलणकर थे, जो आखिर में रामा शेट्टी को गला दबाकर मार देता है। या ‘आक्रोश’ का आदिवासी लाहण्या, जो पूरी फिल्म में सिर्फ चुप रहता है और आखिर में कुल्हाड़ी से अपनी बहन की गरदन काट देता है।
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या फिर सत्यजीत रे की फिल्म ‘सद्गति’ का दुखिया, जो आखिरकार भूख की ज्वाला में भस्म हो जाता है। उत्तरी बंगाल के सिलिगुड़ी शहर में ओमपुरी के साथ गुजारे दो दिन इतना अंदाजा लगाने के लिए काफी थे कि इस मंझे हुए कलाकार ने अपनी शोहरत को व्यक्तित्व पर सवार नहीं होने दिया है।
बीबीसी हिंदी और रेडियो मिष्टी के सालाना कार्यक्रम में इस बार खास मेहमान के तौर पर ओम पुरी को आमंत्रित किया गया था। होटल के कमरे में दोपहर के भोजन से पहले गपशप के दौरान एक्टिंग का जिक्र हुआ और ओम पुरी के भीतर का एक्टर उनके सेलेब्रिटी स्टेटस को तुरंत किनारे धकेलकर सामने आ गया। सवाल मैंने ही किया था: “पुरी साहब, अच्छी एक्टिंग के लिए कौन-कौन सी चीजें जरूरी होती हैं?”
जवाब में ओम पुरी कुर्सी से उठ खड़े हुए और होटल के कमरे में ही एक्टिंग की क्लास शुरू हो गई। एक्टिंग की ट्रेनिंग लेने के लिए 1970 में पंजाब के एक छोटे से गाँव से निकल कर दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा पहुँचने वाले इस इंसान ने अपने भीतर आज भी एक्टिंग के छात्र को जीवित रखा है।

“अगर आपके सामने मय्यत या अर्थी पड़ी हो तो आप क्या करते हैं? आप सीधे उसके पास पहुँचकर रोने नहीं लगते। आप अपनी गाड़ी खड़ी करते हैं या ड्राइवर को बताते हैं कि गाड़ी कहाँ खड़ी करनी है, अपने आसपास का जायजा लेते हैं और तब आगे बढ़ते हैं,” ओमपुरी बोले और अपने खाली कमरे में चले गए।

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