टॉप न्यूज़फीचर्डराज्य

पुरुष निभाते है महिला किरदार की भूमिका

l_1-1466835152एजेंसी/ जैसलमेर. इंटरनेट व संचार क्रांति में समय के साथ जहां विचार धारा बदली है, वहीं जीवनशैली में भी बदलाव आया है। पाक सीमा से सटे सरहदी जैसलमेर जिले में वर्षों पुरानी रम्मत कला को लोकप्रिय बनाने व जनजन का इस सिमटती कला के प्रति रुझान बढ़ाने की कवायद शुरू हो गई है। वर्षों पहले जब स्थानीय लोगों के लिए मनोरंजन के कोई साधन नहीं है थे, तब से शुरू हुआ रम्मत कला का दौर परवान चढ़ा। समय के साथ लुप्त प्राय: हो चुकी, इस ऐतिहासिक कला को पुन:जीवित करने के लिए स्थानीय कलाकारों ने फिर से प्रयास शुरू किएहैं।

कला एक नाम अनेक

रम्मत कला को अलगअलग स्थानों पर अलगअलग नामों से जाना जाता है। इसको रम्मत, ख्याल, तमाशा व नाटक के नामक से ही संबोधित किया जाता है। परंपरागत रुप से होने वाली रम्मत में पुरुष ही सभी किरदार निभाते है। ख्याल में महिला पात्र को भी पुरुष ही निभाते है।

इनका होता है मंचन

जैसलमेर जिले में वर्तमान में तेज कवि की ओर लिखित राजा भृतहरि,मोतीलाल सुगनलाल व्यास की ओर से लिखित सतीसावित्री ख्याल का मंचन प्रचलन में है। प्रदेश भर में राजा भृतहरी, सतीसावित्री,भगत पूरणमल, पतिव्रता, सुल्तान व राजा अमरसिंह रम्मत का मंचन अब भी हो रहा है। जैसलमेर में भक्त पूरणमल पर आधारित रम्मत के मंचन को लेकर पूर्वाभ्यास इन दिनों किया जा रहा है।

ये हुई लुप्त

प्रदेश में आधा दर्जन रम्मतों के अलावा और भी ख्याल व तमाशें होते थे, जो अब लुप्त होने की कगार पर है। जानकारों के अनुसार विगत तीन दशकों से राजा हरिशचन्द्र, राजा मोरध्वज, छैलातबोलन, सशापणियारी की रम्मते अब नहीं खेली जाती। ये रम्मते लुप्त हो चुकी है।

Related Articles

Back to top button