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पृथ्वी शॉ के खेल में वक्त के साथ आता गया निखार

अंडर-19 विश्व कप का खिताब पृथ्वी शॉ के ताज में एक और नगीने की तरह है। इस टूर्नमेंट के 6 मैचों में उन्होंने 261 रन बनाए। 18 वर्षीय इस युवा क्रिकेटर के लिए यह कामयाबी की एक और सीढ़ी की तरह है। शॉ की कहानी मुंबई के मैदानों से शुरू होती है। तमाम मुश्किलों के बावजूद अपनी प्रतिभा और जुनून के दम पर वह आज यहां तक पहुंचे हैं। छोटी सी उम्र में मां का साया उनके सिर से उठ गया।पृथ्वी शॉ के खेल में वक्त के साथ आता गया निखार

रिजवी स्प्रिंगफील्ड में उनके कोच रहे राजू पाठक को आज भी वह दिन याद है जब एक पतला सा लड़का बांद्रा रिक्लेमेशन ग्राउंड पर उनके पास आया था। पाठक कहते हैं, ‘अपने पिता के साथ वह विरार से ट्रायल देने आए थे। मैंने उन्हें बच्चों के लिए बने नेट्स में भेजा। हालांकि सिर्फ तीन-चार गेंद खेलने के बाद ही मैंने उन्हें सीनियस स्कूल टीम के लिए बने नेट्स में बुला लिया। वह अद्भुत प्रतिभा का धनी हैं।’ 

इसके बाद शॉ का सफर शुरू होता है। वह सुबह 3:30 बजे उठते और तैयार होकर फास्ट लोकल पकड़कर 7 बजे तक बांद्रा प्रैक्टिस करने पहुंचते। करीब दो साल तक ऐसा ही चलता रहा। इसके बाद शिवसेना के सांसद संजय पोटनिस ने उन्हें सांता क्रूज के वकोला में एक फ्लैट ऑफर किया। सफर, जो शॉ की बड़ी चिंता थी, का अब ख्याल रख लिया गया था। शॉ ने मुंबई के इंटरस्कूल क्रिकेट में बड़ी पारियां खेलनी शुरू कर दीं। अब उन्हें नजरअंदाज करना मुमकिन न था। 

अप्रैल 2012 में शॉ को इंग्लैंड के मैनचेस्टर स्थित चीडल हल्म स्कूल में खेलने के लिए बुलाया गया। दो महीने के इस टूर में उन्होंने 1146 रन बनाए। इसके बाद अपने खेल को निखारने के लिए शॉ कुछ और बार इंग्लैंड गए। 

इस बीच हैरिस शील्ड मैच का विश्व रेकॉर्ड भी वक्त भी आया। शॉ ने 330 गेंदों पर 546 रनों की पारी खेली। उन्होंने सचिन तेंडुलकर का सबसे कम उम्र में क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया की ओर से खेलने का रेकॉर्ड भी तोड़ा। तेंडुलकर सिर्फ 15 साल के थे जब उन्होंने टीम में शामिल करने के लिए नियमों में ढील बरती गई, शॉ जब सीसीआई में खेले तो वह सिर्फ 14 साल के थे। 

शॉ ने मुंबई के लिए रणजी ट्रोफी के अपने पहले ही मैच में सेमीफाइनल मुकाबले में शानदार शतक लगाया। इसके बाद दलीप ट्रोफी के अपने पहले मुकाबले में उन्होंने दोहरा शतक जड़ा। 

अपने पहले फर्स्ट क्लास मैच से लेकर अब तक शॉ के शॉट सिलेक्शन और खेल की समझ में परिपक्वता नजर आती है। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी फील्डिंग और फिटनेस पर भी काफी काम किया है। पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफाइनल में गली में पकड़े कैच इस बात की तस्दीक करते हैं। 
 

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