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पैरों से नाकाम लेकिन ऑटो चालकों का मसीहा है निर्मल, मोदी कर चुके हैं तारीफ

बचपन से ही पोलियो के शिकार रहे निर्मल कुमार की कहानी कोई आम कहानी नहीं है। संघर्षों से भरी उनकी जिंदगी सभी के लिए प्रेरणा है। कैसे सभी से अलग होना उन्होंने अपने लिए कमजोरी नहीं बनने दिया और कैसे बने एक बड़ी कंपनी के मालिक, जानिए

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बिहार के सीवान जिले के एक छोटे से गांव में जन्में निर्मल जब तीन साल के थे तभी पोलियो जैसी बीमारी ने उन्हें जकड़ लिया। माता-पिता ने डॉक्टर्स से लेकर नीम-हकीमों से इलाज करवाया, मगर सब बेअसर रहा।

बावजूद इसके निर्मल और उनके माता-पिता ने हार नहीं मानी। यह जानते हुए कि वह बाकि बच्चों से अलग हैं, उन्होंने पढ़ने की अपनी लगन को कम नहीं होने दिया। निर्मल ने खूब मेहनत से बारहवीं तक पढ़ाई की और हर क्लास में अव्वल आए। डॉक्टर बनने के सपने के साथ वह पटना चले गए ताकि वहां रहकर मेडिकल की तैयारी कर सकें।

लेकिन पटना में जिंदगी आसान नहीं थी। घर में माता-पिता का साथ था, लेकिन पटना में उन्हें सबकुछ खुद करना पड़ता था। पटना में वह 14 से 15 किलोमीटर तक का सफर पैदल ही तय किया करते थे। उन्होंने मेडिकल के लिए जीतोड़ मेहनत की लेकिन मेडिकल में दाखिला नहीं मिल सका। निर्मल ने तब हैदराबाद के आचार्य एन.जी.रंगा कृषि विश्वविद्यालय से बीटेक(कृषि विज्ञान) करने की सोची। वह इतने होनहार छात्र थे कि इसके लिए उन्हें राष्ट्रीय प्रतिभा छात्रवृत्ति भी मिली थी और हर महीने भारत सरकार की ओर से 800 रूपये की छात्रवृत्ति मिलने लगी। लेकिन यह राशि जरूरतों के हिसाब से कम थी इसलिए वह बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे।

बिहार के ज्यादातर बच्चों की तरह वह भी आईएएस या आईपीएस बनने के सपने देखने लगे। लेकिन उन्होंने इस सपने को किसी और कारण से छोड़ दिया। हुआ यूं कि एक दिन एक कॉलेज सीनियर ने उन्हें आईआईएम के बारे में बताया और कहा कि वहां के बच्चों की सलाना आय 50 लाख तक होती है। तभी उन्होंने सोचा कि वह भी आईआईएम में दाखिला लेंगे।

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