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फिर नहीं होगा दूसरा सचिन

chhiनई दिल्ली (एजेंसी)। क्रिकेट के भविष्य में और भी बेहतरीन बल्लेबाज आ सकते हैं  लेकिन सचिन तेंदुलकर कोई नहीं बन सकेगा। उनके कीर्तिमानों को भविष्य में भले ही हासिल किया जा सके  लेकिन क्रिकेट को पिछले 24 वर्षों से जिस गरिमा  विनम्रता और विश्वसनीयता के साथ सचिन ने निबाहा है  फिर क्रिकेट को इतनी शिद्दत से चाहने वाला खिलाड़ी शायद ही मिले। अगर कोई तेंदुलकर की ख्याति के करीब पहुंच भी पाता है तो  वह एक थका हुआ क्रिकेटर भर रह जाएगा। तेंदुलकर अपने पीछे क्रिकेट को एक निष्कलंकित  कीर्तिमानों और क्रिकेट की सुनहरी यादों से सजी विरासत देकर गए। शनिवार को वानखेड़े स्टेडियम में तेंदुलकर का विदाई संबोधन क्रिकेट के प्रति उनके लगाव से लबरेज और भावनाओं से ओत प्रोत रहा। तेंदुलकर के मर्मस्पर्शी संबोधन को सुनते हुए स्टेडियम में एक भी आंख ऐसी नहीं थी  जो नम न हुई हो। तेंदुलकर ने 15 नवंबर  1989 को जब 16 वर्ष की आयु में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया तो क्रिकेट के  धुरंधरों को तेंदुलकर के रूप में एक महान खिलाड़ी को पहचानने में जरा भी देर नहीं लगी। 24 वर्ष पहले तेंदुलकर ने महानतम क्रिकेटर बनने की ओर अपने कदम बढ़ा दिए  एक ऐसा खिलाड़ी बनने की ओर जिसे दुनिया ने पहले कभी न देखा हो। पांच फुट पांच इंच के तेंदुलकर ने बड़े से बड़े बल्लेबाजी रिकॉर्ड को बौना साबित कर दिया। उन्होंने 2०० टेस्ट मैचों में 53.78 के औसत से 15 921 रन बनाए  और टेस्ट के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय एकदिवसीय के लगभग सभी कीर्तिमान स्थापित किए  जिनमें से अधिकांश आज भी उनके नाम हैं।
टेस्ट और एकदिवसीय दोनों श्रेणियों में तेंदुलकर के नाम सर्वाधिक मैच खेलने  सर्वाधिक रन बनाने और सर्वाधिक शतक लगाने का कीर्तिमान है। तेंदुलकर ने छह विश्वकप प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया  और 2००3 के अपने पहले ही विश्वकप में देश को खिताबी मुकाबले तक लेकर गए। अंतत: क्रिकेट को अलविदा कहने से पहले उन्होंने 2०11 में देश को विश्वकप का तोहफा दिया  जिसकी कमी वह खुद भी बहुत शिद्दत से महसूस कर रहे थे। मास्टर ब्लास्टर ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में शतकों का शतक बनाया और एकदिवसीय मैच में वह 2०० रन का आकड़ा छूने वाले विश्व के पहले बल्लेबाज भी बने। तेंदुलकर ने अपनी बल्लेबाजी के दम पर अनेक गेंदबाजों को परेशान किया और कुछ का तो करियर ही समाप्त कर दिया। लेकिन उन्होंने विश्व के सार्वकालिक महान स्पिन गेंदबाज के साथ जो किया वह तो क्रिकेट इतिहास के लिए यादगार बन गया। तेंदुलकर ने शरजाह में आस्ट्रेलियाई स्पिन गेंदबाज शेन वार्न को अपने बल्ले से जमकर सबक सिखाया। इसके बाद वार्न द्वारा स्वीकार किया जाना कि ‘तेंदुलकर सपने में भी उनकी गेंदों की धुनाई करते नजर आते हैं’  तेंदुलकर के लिए सबसे बड़ी सराहना बन गई। तेंदुलकर द्वारा अपने बल्लेबाजी अंदाज में लगातार सुधार करते रहना और गैरपांरपरिक शॉट्स जैसे पैडल स्वीप का इजाद करना उनकी पहचान बनी। अपने इसी बल्लेबाजी अंदाज के कारण सचिन बढ़ती उम्र को धता बताते हुए लगातार रनों का अंबार खड़े करते गए। देश के एक और दिग्गज क्रिकेटर सुनील गावस्कर के शब्दों में  ‘‘पूरी दुनिया में तेंदुलकर जैसे किसी खिलाड़ी की कल्पना भी नहीं की जा सकती  जिसमें तकनीकी रूप से सर्वोच्च कुशलता के साथ-साथ अनगढ़ आक्रामकता के साथ भी खेलने की क्षमता हो।’’ 1999 में ब्रीस्टल में हुए विश्वकप में तेंदुलकर की क्रिकेटर के रूप में एक और महान छवि तब देखने को मिली जब वह प्रतियोगिता के बीच में अपने पिता की मृत्यु की सूचना मिलने पर स्वदेश आए और अंतिम संस्कार बाद वापस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने लौटे  और शतकीय पारी खेली। तेंदुलकर ने पिता के अंतिम संस्कार के बाद विश्वकप के लिए वापस लौटकर केन्या के खिलाफ 1०1 गेंदों पर 14० रनों की अद्भुत पारी खेली  और अपनी उस पारी को पिता  रमेश तेंदुलकर को समर्पित किया। शतक पूरा करने के बाद तेंदुलकर ने आकाश की ओर निगाह उठाई और अपने पिता के लिए प्रार्थना की। उसके बाद से सचिन ने अपने करियर की हर अहम उपलब्धि को इसी तरह अपने पिता को समर्पित किया। भारतीय टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने कभी कहा था  ‘‘मेरे करियर के ये कुछ ऐसे पल थे जो सदैव स्मरणीय रह गए। सचिन के साथ अंतर्राष्ट्रीय एकदिवसीय में सलामी जोड़ी के रूप में बल्लेबाजी करना मेरे लिए सबसे अधिक अनुभव प्रदान करने वाला साबित हुआ।’’ तेंदुलकर के लिए लेकिन सबसे बड़ी सराहना उनकी महानतम बल्लेबाज सर डॉन ब्रैडमैन से तुलना रही। ब्रैडमैन ने एक बार अपनी पत्नी से सचिन को खेलते देखकर कहा था कि उन्हें सचिन को खेलते देखकर लगता है कि जैसे वही खेल रहे हों। ब्रैडमैन पर ‘डॉन्स बेस्ट’ पुस्तक लिखने वाले रोलांड पेरी के मुताबिक यह तेंदुलकर की बल्लेबाजी तकनीक  संपूर्णता और शॉट लगाने का अंदाज ही था जिसके कारण वह तमाम आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को पछाड़ते हुए ब्रैडमैन के प्रिय बन गए। सचिन की महानता और लोकप्रियता को इसी बात से समझा जा सकता है कि जब भी वह आउट होते क्रिकेट प्रशंसक टीवी बंद कर देते। लोगों में अमूमन यह धारणा बन गई थी कि उनके योगदान के बिना भारतीय टीम जीत ही नहीं सकती। तेंदुलकर देश में खेल के सबसे बड़े आदर्शपुरुष बनकर उभरे और उन्होंने दो दशकों से भी ज्यादा समय तक देश के एक अरब से ज्यादा प्रशंसकों की उम्मीदों पर खरा उतरकर अपनी महानता भी साबित की। तेंदुलकर को देश के हर कोने से प्रशंसकों का प्यार मिला और आयोजकों  प्रायोजकों के तो वह सबसे पसंददीदा रहे ही  युवा खिलाड़ियों ने भी उनमें अपना आदर्श देखा। बड़े भाई अजित तेंदुलकर से क्रिकेट का ककहरा सीखने के बाद सचिन ने रमाकांत आचरेकर के मार्गदर्शन में क्रिकेट की बारीकियां सीखीं। तेंदुलकर में क्रिकेट प्रतिभा बाल्यकाल से ही कूट-कूट कर भरी हुई थी  और 1988 में लॉर्ड हैरिस शील्ड स्कूल में अपने बाल्यकाल के साथी विनोद कांबली के साथ की गई 664 रनों की साझेदारी के जरिए उन्होंने पहली बार इसे साबित किया। तेंदुलकर के लिए देश तब एक बार और गौरवान्वित हो उठा जब उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने राज्यसभा सदस्य नामित किया। खेल के क्षेत्र से राज्यसभा सदस्य चुने जाने वाले सचिन देश के पहले सांसद हैं।
अपार ख्याति  अरबों प्रशंसकों का प्यार और उपलब्धियों का अंबार लगाने के बावजूद सचिन की सबसे बड़ी पहचान बनी उनकी विवाद से दूर रहने वाली छवि। असीम सफलताओं के बीच भी सचिन हमेशा जमीनी हकीकत से जुड़े रहे और सज्जनों का खेल माने जाने वाले क्रिकेट को पूरी खेल भावना के साथ ताजिंदगी निबाहा।

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