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फॉक्सवैगन की धांधली का भंडाफोड़

दस्तक टाइम्स/एजेंसी
downloadनई दिल्ली: जर्मन कार मेकर  ने मंगलवार को मान लिया कि उसने दुनियाभर में 1 करोड़ 10 लाख डीजल कारों की इमिशन टेस्टिंग (प्रदूषण जांच) में गड़बड़ी कराई थी। कार में ऐसा सॉफ्टवेयर डाला गया, जिसके जरिए इमिशन टेस्ट के सही नतीजे सामने ही नहीं आते थे। खास बात यह है कि अमेरिका में कंपनी की इस धोखाधड़ी को पकड़ने वाले रिसर्चरों में एक भारतीय मेकैनिकल इंजीनियर अरविंद थिरूवेंगड़म भी शामिल हैं।32 साल के अरविंद थिरूवेंगड़म वेस्ट वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर अल्टरनेटिव फ्यूल्स, इंजन्स एंड इमिशंस के रिसर्च इंजीनियर हैं। 2004 में यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास से ग्रैजुएट अरविंद पीएचडी के लिए अमेरिका गए थे।अरविंद खाली वक्त में एआर रहमान का म्यूजिक सुनना पसंद करते हैं। उन्होंने कहा, ”मैं हमेशा से इंजनों को लेकर कुछ नया करना चाहता था।” गड़बड़ी को पकड़ने वाले तीनों इंजीनियरों के वेस्ट वर्जीनिया यूनिवर्सिटी में पीएचडी करने के दौरान सुपरवाइजर रह चुके मृदुल गौतम ने उन्हें अपनी फील्ड में बेस्ट करार दिया। मृदुल भी भारतीय मेकैनिकल इंजीनियर हैं। उन्होंने ग्रैजुएशन आईआईटी दिल्ली से किया था।>अरविंद और उनके बाकी दो साथियों डेनियल कार्डर और मार्क बेश्च का मानना है कि उन्होंने वही किया, जिसके लिए उन्हें ट्रेंड किया गया था। उनका काम डीजल इंजन से होने वाले प्रदूषण के बारे में पता लगाना था। दो साल पहले उनके द्वारा लॉस एंजिलिस और कैलिफोर्निया में किए गए टेस्ट के नतीजों के बाद हुए डेवलपमेंट के कारण ही अमेरिकी इन्वायरन्मेंट रेग्युलरिटी बॉडीज फॉक्सवॉगन की इस धोखाधड़ी को पकड़ सकीं।धोखे को पकड़ा। वे यह जानकर हैरान रह गए कि फॉक्सवैगन की जेटा कार लैब के टेस्ट से 15 से 35 गुना ज्यादा नाइट्रोजन ऑक्साइड पैदा कर रही है। वहीं, पीसैट ने लैब की सीमा से 5 से 20 पर्सेंट ज्यादा प्रदूषण किया।> इस रिपोर्ट के आधार पर मई 2014 में कैलिफोर्निया एयर पल्यूशन रेगुलेटर और ईपीए ने फॉक्सवैगन को इसकी जांच कर प्रॉब्लम सॉल्व करने का आदेश दिया था। इसपर कंपनी ने प्रॉब्लम को सॉल्व कर ली गई है। कुछ महीनों बाद जब दोबारा कंपनी के नए मॉडल की लैब रिपोर्ट और रोड परफॉर्मेंस की जांच हुई तो स्थिति पहले जैसे ही पाई गई। इसके बाद ईपीए अपने स्तर पर जांच शुरू की और 18 सितंबर 2015 को ईपीए ने कंपनी को लेटर जारी कर नियमों के उल्लंघन का दोषी करार दिया।’ अमेरिकी मैगजीन ‘कार एंड ड्राइवर’ से बातचीत में इस टीम के अन्य रिसर्चर कार्डर ने कहा, ”अगर किसी कार के लैब और फील्ड में इमिशन के नतीजों में फर्क हो तो यह साफ है कि किसी सॉफ्टवेयर का सहारा लिया जा रहा है।”साल 2009 में हुई यूएन क्लाइमेट मीट में अमेरिका, चीन, यूरोप सहित कई बड़े देशों ने ग्लोबल वार्मिंग को कम करने पर सहमति जताई। इसके लिए इमीशिन(प्रदूषण) कम करने की प्लानिंग हुई। ट्रांसपोर्ट से सबसे ज्यादा एयर पल्यूशन होता है। ऐसे में नई गाड़ियों को लेकर, अमेरिका सहित कई देशों ने इससे जुड़े नियम सख्त कर दिए। साथ ही नियमों को ना मानने वाली कंपनियों पर भारी पेनल्टी का प्रावधान भी रखा। इसी सख्ती के बाद साल 2009 के अंत में फॉक्सवैगन ने अपनी कार में एईसीडी(ऑक्सीलरी ईमीशन कंट्रोल) नाम का सॉफ्टवेयर लगाकर ईपीए के पास टेस्टिंग के लिए भेजना शुरू किया।

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