उत्तर प्रदेशलखनऊ

बच्चों को केवल ‘स्कूल भरोसे’ मत छोड़िये!

पण्डित हरि ओम शर्मा

अभी हाल ही में गुरुग्राम के रेयान इन्टरनेशनल स्कूल में एक मासूम बच्चे के साथ घटित भीषण दृष्कृत्य ने समूचे देश को झंझोड़कर रख दिया। इस घटना ने अनेक सवालों को एक साथ ही जन्म दे दिया है। निश्चित रूप से ऐसी घटनाओं को सुनकर और इसे महसूस कर प्रत्येक देशवासी का दिल दहल जाता है। इस प्रकार की घटनाएं बार-बार यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या बच्चों को ‘स्कूल भरोसे’ छोड़ना उचित है? यदि नहीं, तो फिर अभिभावक क्या करें, स्कूल क्या करें और समाज व सरकार की क्या जिम्मेदारी है?बच्चों को केवल स्कूल भरोसे छोड़ देना बच्चों के साथ अन्याय है, फिर भी जाने अनजाने में अधिकाँश अभिभावक ऐसा कर रहे हैं। अभिभावकों की जाने अनजाने में की गई इस गलती से बच्चों का भविष्य और अभिभावकों का बुढ़ापा अन्धकारमय हो रहा है। इस विषय पर कुछ बुद्धिजीवी अभिभावकों से हुई बातचीत ने मुझे चौंका दिया। इन अभिभावकों से मुझे जो सुनने व देखने को मिला, वह बच्चों के लिए शुभ संकेत नहीं है। इनमें से कुछ अभिभावकों से हुई बातचीत इस प्रकार है।

एक अभिभावक दम्पति हैं श्रीमती एवं श्री ‘क’ महोदय। यह ‘क’ महोदय, वरिष्ठ आई0ए0एस0 अधिकारी है व शासन में उच्च पद पर आसीन हैं। जब इनसे इस विषय में बातचीत की तो बोले, जब यह सब हमारी ही जिम्मेदारी है तो फिर विद्यालय की क्या जिम्मेदारी है? अच्छे स्कूल में प्रवेश दिला दिया, ट्यूशन लगा दिया, आने-जाने की अच्छी व्यवस्था भी कर दी है। हमारे पास इतना समय कहाँ है कि हम बच्चों को बैठकर ए बी सी डी पढ़ायें। यही सब करें तो अपनी जिम्मेदारी कब निभायें? श्रीमान ‘क’ महोदय से बातचीत के बीच में ही श्रीमती ‘क’ महोदया बोल पड़ी, देखिये भाई साहब! बच्चों की जिम्मेदारी तो स्कूल की ही है, हम अभिभावकों के पास समय कहाँ है जो कि बच्चों के साथ ही लगे रहें। मैने सोचा, जरा इनके बच्चों के बारे में जानकारी ली जाये। ऐसा सोचकर मैंने श्रीमती ‘क’ महोदया से पूछा कि भाभी जी बच्चे तो अब बड़े हो गये होंगे, क्या कर रहे हैं आज कल? श्रीमती ‘क’ महोदया तपाक से बोली, बेटी सुलक्षणा की शादी कर दी है, पी0सी0एस0 है। मैं चौंका, बीच में ही बोला कि किस जिले में पोस्टिंग है बेटी की? अरे बेटी की नहीं मेरे दामाद की! मेरा दामाद पी0सी0एस0 है, बेटी सुलक्षणा तो घर ही सभाँलती है। इसके बाद मैने बेटों के बारे में जानकारी चाही तो बोलीं कि बड़े बेटे सुयश को विज्ञापन ऐजेन्सी खुलवा दी है और छोटा बेटा ‘अभिनय’ मुम्बई में अपने मामा के यहाँ रहकर वालीवुड में अपनी किस्मत आजमा रहा है।

ऐसे सुधन्य माता-पिता को मैं प्रणाम कर आगे बढ़ा और पहुँच गया श्रीमती एवं श्री ‘ख’ महोदय के घर! कालबेल बजाते ही दरवाजा खुला, मुझे देखते ही बोली, आइये, आइये, शर्माजी! मैंने हाथ जोकर नमस्ते करते हुए पूछा कि डाक्टर साहब नहीं है क्या? हा, हाँ, क्यों नहीं, अभी बुलाती हूँ, वह मरीजों को देख रहे हैं। मैने पूछा कि डाक्टर साहब तो किसी सरकारी अस्पताल में डाक्टर हैं। अरे भइया शर्मा जी! कहीं सरकारी वेतन से घर चलते हैं? ये तो सुबह शाम दोनों समय मरीजों को ही समय देते हैं। और भाभी जी आप? मैंने बीच में ही श्रीमती ‘ख’ महोदया की बात काटते हुए कहा। भाई साहब! मैंने तो अपना ब्यूटी पार्लर खोल रखा है, इससे पैसा भी आता है और टाइम पास भी हो जाता है। एक पंथ दो काज। बस मुझे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया था। सो बिना कुछ पूछे ही हाथ जोड़कर आगे बढ़ गया तीसरे अभिभावक श्रीमती व श्री ‘ग’ महोदय के घर! पेशे से श्रीमान ‘ग’ महोदय इंजीनियर हैं और श्रीमती ‘ग’ महोदया शिक्षिका हैं। बड़े सम्मान के साथ ड्राइंग रूम में मुझे बैठाया गया, इसी दौरान बातचीत शुरू हुई। इनके दो बच्चे पुत्री गरिमा व पुत्र गौरव क्रमशः क्लास सात व नौ के छात्र हैं। पूछने पर बताया कि भाई साहब इनके पास तो समय ही नहीं है अपने सरकारी काम से। दफ्तर की फाइलें भी आफिस में कम और घर में ज्यादा निपटाते हैं। थोड़ा बहुत समय बचता भी है तो ठेकेदार और जूनियर इंजीनियर यहाँ तक चले आते हैं। लेकिन मैं बच्चों को पूरा समय देती हूँ। विद्यालय से आने के बाद अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाती हूँ। बच्चों की टीचर से मिलती हूँ, प्रत्येक समारोह व पैरेन्ट्स मीटिंग अटेण्ड करती हूँ। आपकी कृपा से मेरे दोनों बच्चे क्लास की मेरिट में तीसरे व पांचवे स्थान पर रहते हैं। सन्तोष की सांस लेते हुए मैं वहाँ से चल दिया।

इसके बाद श्रीमती एवं श्री ‘घ’ महोदय के घर पहुँचा। इनकी घड़ी की दुकान है। घड़ियों के बहुत बड़े व जाने माने व्यापारी हैं। मुझे देखते ही बोले, भाई शर्मा जी! हमारे बेटे प्रवीण को गणित में क्यों फेल कर दिया आपकी गणित टीचर ने? बेटी पद्मजा को एक नहीं दो विषयों में फेल कर दिया। मैं विनम्रता से बोला, फेल नहीं किया, फेल हो गये कहिये श्रीमान ‘घ’ महोदय! मेरे इस उत्तर को सुनकर क्रोधित होते हुए श्रीमान ‘घ’ महोदय बोले, इसमें हमारी क्या गलती है? फीस आप लेते हैं या हम? जो आपने फीस बिल दिया, उसे हमने जमा कर दिया, कोई भाव ताव भी नहीं किया आपसे! कि इतना ले लो, उतना ले लो। अब गारन्टी आपकी है। जब हम घड़ी का पूरा पैसा लेते हैं तो गारन्टी हमारी होती है कि नहीं? घड़ी बंद होने पर या फेल होने पर घड़ी बदल कर देते हैं कि नहीं? इस असहनीय अपमान को पीते हुए मैने कहा कि मैं आपके दोनो फेल हुए बच्चों को ही बदलने आया हूँ। आपके दोनो बच्चे फेल हो गये हैं, इनके स्थान पर पास हुए दो बच्चे लाया हूँ, इन्हें ले लीजिए और फेल हुए बच्चों को मुझे लौटा दीजिए। मेरा यह उत्तर सुनकर श्रीमती एवं श्री ‘घ’ महोदय दोनों ठगे से रह गये तब मैंने कहा श्रीमान बच्चे घड़ी नहीं है जो आप बार बार बदलने की धमकी देते हैं। घड़ी बदली जा सकती है, बच्चे नहीं! यदि आप बच्चों को घड़ी समझेंगे तो यही परिणाम सामने आयेगा, जो आज हम और आप देख रहे हैं।अब आप ही बताइये! कि क्या बच्चे के सर्वांगीण विकास की जिम्मेदारी केवल विद्यालय की है? छात्र कोई लेटर और विद्यालय कोई लेटर बाक्स तो है नहीं? कि जो लेटर आपने टिकट लगाकर डाल दिया लेटर बाक्स में और वह पहुँच जायेगा अपने गन्तव्य स्थान पर। उसी तरह स्कूल फीस जमा कर बच्चे को डाल दिया स्कूल में, और बच्चा बन जायेगा डाक्टर, इंजीनियर और इन्सान? यह आपकी सोच गलत है सर! यदि आपने बच्चे पर ध्यान न दिया, समय न दिया तो वह हो जायेगा फेल और फैलायेगा समाज में अंधेरा! यदि आपने बच्चे को इन्सान बनाने में हमारी मदद न की तो वह अंधेरा तो अपने आप ही बन जायेगा, इसमें आपको और मुझको कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है।

मैं यह भी नहीं कहता हूँ कि बच्चे के भविष्य की सारी जिम्मेदारी माता-पिता की है, शिक्षक व विद्यालय की नहीं है। उसके लिए माता-पिता, विद्यालय व शिक्षक तीनों को संयुक्त रूप से प्रयास करना होगा। इन्हें अपनी अपनी जिम्मेदारियों को वहन करना पड़ेगा तभी बच्चे का सर्वांगीण विकास संभव है। यह सब गुस्से में मैं एक साथ ही कह गया, यह सुनकर श्री एवं श्रीमती ‘घ’ महोदया को अपनी गलती का अहसास हुआ। क्षमा माँगते हुए कहा कि शर्मा जी हमें अपनी गलती का अहसास हो गया है, हमारी आँखे खुल चुकी हैं। मैने विनम्रता से कहा, कोई बात नहीं, देर आये दुरूस्त आये, सुबह का भूला हुआ शाम को घर आ जाये तो उसे भूला हुआ नहीं कहा जाता है। आइये चलकर बच्चों से क्षमा माँगते हैं, उन मासूम बच्चों से, जिनके साथ हमने अन्याय किया है। उन मासूमों की क्या गलती है, जब हम सब बच्चों पर ध्यान नहीं देंगे तो वह बेचारे तो राह भटकेंगे ही! तो आईये! प्रतिज्ञा करें कि हम सभी मिलकर बच्चों को सही मार्गदर्शन कर उनका सर्वांगीण विकास करेंगे। बच्चों को भौतिक शिक्षा के साथ ही आध्यात्मिक शिक्षा देकर उन्हें नेक इन्सान बनायेंगे।

क्या करें अभिभावक

1. बच्चे से पहले जगें, फिर प्यार दुलार से उसे जगायें। 2. बच्चे के साथ बच्चे बनकर ही खेले, प्यार करें, स्कूल प्यार से भेजें। 2. बच्चे का पूर्ण सम्मान करें, याद रखें! बच्चे से अधिक सम्मानित इस दुनियॉ में कोई नहीं है। 2. 4. बच्चे के समक्ष माता-पिता एक दूसरे का सम्मान करें। 5. बच्चे को भरपूर प्यार दें। 6. रात को बच्चे के साथ ही सोयें। 7. बच्चे को खुद ही तैयार होने दें। 8. बच्चे को जमीन पर पालें। 9. बच्चे को अभावों में पालें। 10. बच्चे को नौकर के सहारे न छोड़े। 11. बच्चे से जेबखर्च का हिसाब अवश्य लें। 12. बच्चे के सहपाठियों, उसके दोस्तों के बारे में पूरी जानकारी रखें। 13. बच्चे की जायज माँग अवश्य पूरी करें। 14. बच्चे को बाजार भी ले जाये, उसके साथ चाट पकौड़ी व पिज्जा भी खायें। 15. बच्चे को समय दें। 16. पैरेन्ट्स मीटिंग में स्कूल अवश्य जायें। 17. प्रत्येक शिक्षक से समय-समय पर मिलते रहे। 18. बच्चे की प्रगति की समीक्षा समय समय पर करते रहे। 19. परीक्षा में प्राप्त अंकों को देखकर प्रशंसा व प्रोत्साहित करें। 20. बच्चे के होम वर्क पर नजर रखें। 21. बच्चे को ईश्वरीय शिक्षा अवश्य दें।

क्या न करें अभिभावक

1. बच्चे के समक्ष आपस में न झगड़े। 2. अपने बड़प्पन की डींग न मारें। 3. बच्चे को अनाप-शनाप जेब खर्च न दें। 4. शिक्षक व विद्यालय की आलोचना न करें। 5. अपने परिवारीजनों की आलोचना न करें। 6. बच्चे को ट्यूशन न लगायें। 7. बच्चे का होमवर्क स्वयं न करें। 8. परीक्षा में कम अंक पाने पर भी बच्चे को डाँटे नहीं। 9. धार्मिक विद्वेष व जाति-पाँति जैसी संकीर्णता भरी बात कदापि न करें, बच्चे के कोमल मन को इस बीमारी से बचाये रखें। 10. अपने कार्यालय का बोझ घर पर न लायें। 11. गलती होने पर भी बच्चे को डाँटे नहीं। 12. बच्चे का अपमान न करें। 13. बच्चे के सामने धूम्रपान या अन्य कोई पान कदापि न करें। 14. घर को अपने परिचितों की गपशप से मुक्त रखें। 15. बच्चे के दोस्तों का भी अपमान न करें। 16. बच्चे को अतिआवश्यक आवश्यकताओं से वंचित ने करें। 17. बच्चे से अपनी कमजोरी कदापि न छिपायें। 18. बच्चे से झॅूठ न बोलें। 19. बच्चे के समक्ष अपशब्दों का प्रयोग कदापि न करें। 20. बच्चे के समक्ष अपने डर का हौवा न खड़ा करें। 21. माता-पिता बच्चों के समक्ष अपने माता-पिता की आलोचना न करें।

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