राजनीतिलखनऊ

बसपा को गैरों ने नहीं बल्कि अपनों ने ही दांव पर लगा दिया!

478693-file-pti-mayawatiलखनऊ। टिकट की खरीद-फरोख्त का आरोप हो या फिर दलित केंद्रित राजनीति….इस पर बसपा के खेमे में ही रहे कई वरिष्ठ नेताओं ने सवाल खड़े करते हुए बहुजन समाज पार्टी से इस्तीफा दे दिया। लेकिन बात सिर्फ इस्तीफे की नहीं बल्कि तमाम आरोपों से पार्टी पर पड़ने वाले असर की है।

BSP की वजह से दयाशंकर और स्वाति सिंह का राजनीतिक किरदार ‘हिट’

जिसका असर मीडिया सर्वे की हालिया रिपोर्ट्स में भी देखने को मिला है।

जी हां हाथी तीसरे पायदान पर फिसल चुका है। इस बीच सवाल ये है कि बसपा के लिए सबसे बड़ी मुसीबत कौन बन रहे हैं। अन्य विरोधी दल या फिर उनके अपने ही। पेश है ये रिपोर्ट-

माया पर सूबे की जनता की एक अलग धारणा

उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए बीते कुछ माह पहले तक सियासी हवा बसपा के पक्ष में नजर आ रही थी। लेकिन फिलवक्त स्थितियां कुछ और ही हैं। स्वामी प्रसाद मौर्या और आरके चौधरी के बसपा से पलायन ने बहुजन समाज पार्टी को महज कुछ फीसदी ही नुकसान पहुंचाया। जबकि दयाशंकर विवाद में हजरतगंज में हुए विरोध प्रदर्शन के बाद, जिसमें मां, बहन, बेटी को पेश करो जैसे नारों ने बसपा के नुकसान के प्रतिशत को बढ़ा दिया। बसपा कार्यकर्ताओं द्वारा किये गए नारों को समाज ने अपने मुताबिक आंका। और मायावती पर एक अलग धारणा बना ली। और वो धारणा दयाशंकर पर भाजपा द्वारा की गई कार्यवाही के फलस्वरूप तैयार की गई। दयाशंकर मामले में स्वाती मजबूत हुईं जबकि माया कमजोर नजर आईं।

महंगा पड़ रहा नसीमुद्दीन का बयान

नसीमुद्दीन का कहना था कि बहन-बेटी को पेश करने को कहना गाली है क्या ? इन तमाम शब्दों में माया का वो तेज-तर्रार रवैया कहीं खोता हुआ दिखा। जिस पर बसपा सुप्रीमो द्वारा कार्यवाही न किए जाने पर उन्हें लाचार के सींखचे में खड़ा कर दिया गया। वहीं दूसरी ओर कभी बसपा के साथ जुड़े रहे आरके चौधरी लगातार मायावती पर तीखे हमले करते रहे।

मायावती देवी तो जनता के लिए उत्तरदायी कौन?

मुझे लोग देवी की तरह पूजते हैं। याद है न आपको मायावती का ये बयान। इस बयान के बाद लोगों के बीच फिर से इस बात को लेकर चर्चा शुरू हो गई कि जनसेवक का मतलब देवी होता है क्या। क्या वाकई। वहीं मायावती ने हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा विष्णु महेश है…..बयान से पुन : पुरानी राजनीति पर लौटते हुए एक वर्ग विशेष में बसपा को सीमित करते हुए राम को मसीहा मानने से इंकार कर अंबेडकर को मसीहा बता दिया। जिसकी वजह से माया के साथ जुड़े रहे एक वर्ग में कुछ फीसदी नाराजगी पसर गई। और लोगों ने मायावती से अलग होना शुरू कर दिया।

स्वामी भी पड़े बसपा को महंगे

स्वामी प्रसाद मौर्या का बसपा से अलग होना पार्टी के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ। चरणवंदन करने वाले स्वामी ने अपनी बहन जी के खिलाफ ही मोर्चा खोल कर उन्हें भ्रष्टाचार की देवी बता डाला। लोगों का कहना है कि यह बात स्वामी ने सियासी धर्म परिवर्तन के बाद कही है। जो राजनीति का प्रथम और महत्वपूर्ण चरण है। राजनीति के ऊंचे-ऊंचे बयानों में स्वामी का बयान कुछ नया नहीं है।

कांशीराम ने कहा था कि मायावती को केवल पैसा चाहिए: आरके चौधरी

विवादित राजनीति में उलझती बसपा

विश्लेषकों की मानें तो बहुजन समाज पार्टी के गिरते स्तर की वजह विरोधी दलों की बजाए उसके अपने ही नेता हैं, जिनमें से कुछ तो अभी भी बसपा के साथ हैं और कुछ पार्टी छोड़ चुके हैं। यहां तक कि बसपा सुप्रीमो मायावती भी अपनी पार्टी की खातिर विवाद खड़े करने में बिलकुल भी नहीं चूकीं। ”तिलक, तराजू और तलवार….इनको मारो जूते चार” के जरिए माया ने शुरूआत में ही पार्टी की मुश्किलों में इजाफा कर दिया था। और इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा।

फेल या पास बसपा

कुलमिलाकर तमाम विवाद, जिनके झमेलों में उलझकर बसपा अपना जनाधार खोती नजर आ रही है। सूबे की जनता के जहन में गुलाबी पत्थर भी सवाल है, तो सवाल सिर्फ दलित केंद्रित विकास भी, एनआरएचएम घोटाला भी, और सियासत के राम भी, टिकट की खरीद-फरोख्त के साथ-साथ दयाशंकर की मां, बहन, बेटी पर की गई अभद्र टिप्पणी भी। ढ़ेर सारे बवालों के बीच देखना यह दिलचस्प है कि क्या बसपा वापसी कर पायेगी? सोचिएगा।

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