दस्तक-विशेष

बिहार : जंगलराज रिटर्न

दिलीप कुमार
jungalerajबिहार में 10 वर्षों के सुशासन के बाद एक बार फिर जंगलराज की बात हो रही है। कहा जा रहा है कि सूबे में जंगलराज की वापसी हो गयी है। ऐसा कहने वालों के अपने तर्क भी हैं। करीब छह महीने के ही लालू-नीतीश के शासन में जिस तरह से एक के बाद एक हत्या की घटनाएं हुई हैं, उससे हर कोई दहल गया है। इसकी गूंज दूर दिल्ली तक सुनाई दे रही है। छोटी घटनाओं को छोड़ भी दिया जाए तो हाल के दिनों में कई ऐसी चर्चित घटनाएं हुई हैं, जिसने आम बिहारी को डरा दिया है। पत्रकार की हत्या में शहाबुद्दीन का नाम सामने आना, यह संकेत देता है कि अपराधियों के हौसले किस तरह से बुलंद होते जा रहे हैं। राजद के पूर्व सांसद रहे शहाबुद्दीन अगर जेल में उम्रकैद की सजा काटते रहने के बाद भी अपने गुर्गों से हत्या जैसी घटना करा सकते हैं तो इसका कारण लालू ही हैं। पिछले दिनों उन्होंने शहाबुद्दीन को अपनी पार्टी में महत्वपूर्ण पद दिया। अब उनकी पत्नी को एमएलसी बनाने की तैयारी में हैं। लालू ऐसा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि उनके जरिए वह मुसलमानों के वोट को अपनी ओर करना चाहते हैं। सिर्फ सत्ता के लिए गुंडों का सहारा लेना यह बताता है कि लालू किसी हद तक जा सकते हैं। ऐसे में जंगलराज वापस आने की बात अगर लोग कह रहे हैं, यह बात सूबे की जनता की जुबान पर है तो कुछ गलत नहीं है। बिहार में हाल के दिनों में जो आपराधिक घटनाएं हुई हैं, वह इसकी प्रचलित छवि से मेल खाती हैं। फिल्मों में बिहार की जो छवि दिखाई गई है, वह उससे काफी हद तक मेल खाती है। चाहे वह गंगाजल हो या अन्य फिल्में। लेकिन इस तरह की घटनाओं पर पिछले कुछ वर्षों तक विराम लग गया था। लेकिन जबसे लालू-नीतीश की जोड़ी सत्ता में आई है, अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। अधिकतर मामलों में जो बड़े अपराध हुए हैं, उसका जुड़ाव किसी न किसी तरह से लालू की पार्टी से रहा है। राजबल्लभ यादव पर बलात्कार का आरोप लगा, वह राजद से थे। पत्रकार राजदेव की हत्या में शहाबुद्दीन पर आरोप लगा, वह भी राजद के नेता हैं। साइड नहीं देने पर व्यापारी पुत्र की हत्या एमएलसी के बेटे ने कर दी। जेल में बंद होने के बाद भी लालू ने शहाबुद्दीन को पार्टी में एक महत्वपूर्ण पद दिया। इस पर काफी हायतौबा मची, लेकिन लालू तो लालू हैं। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
वैसे देखा जाए तो पिछले 30 साल में बिहार की जो एक छवि बनी है, रॉकी यादव और उसके पिता बिंदी यादव, उस छवि के अग्रिम पंक्ति के पात्र हैं। यह रॉकी वही है, जिसने साइड नहीं देने पर व्यापारी पुत्र की हत्या कर दी। बिंदी यादव एक समय में साइकिल चोर था। वहां से उठते हुए एक के बाद एक अपराध करते हुए और लालू की कृपा से करोड़पति में शामिल हो गया। उनकी पत्नी मनोरमा देवी जदयू की एमएलसी हैं। हत्या के बाद उन्होंने अपने बेटे को बचाने की बहुत कोशिश की। लेकिन वह तो नीतीश का सुशासन को लेकर दबाव इतना अधिक था कि उन्हें सरेंडर करना पड़ा। साथ ही नीतीश ने उन्हें पार्टी से हटा दिया। इस मामले में बाप, बेटे और माता को जेल जाना पड़ा। हालांकि जिस मां ने अपना लाल खोया है, उन्हें न्याय मिल पाएगा, यह तो समय बताएगा क्योंकि पुलिस तो रसूख वालों की घरवाली मानी जाती है, बस कुछेक मामलों को छोड़ दिया जाए तो।
लालू के साथ जंगलराज का उत्थान
बिहार की राजनीति में लालू यादव के साथ जंगलराज का गहरा नाता है। उनके उत्थान के साथ ही जंगलराज का भी उत्थान हुआ। उनके शासन के संदर्भ में ही बिहार में जंगलराज की बात होती है। उन्होंने अपनी खास सोच को राजनीति और बिहार की सत्ता में पूरी तरह से बैठाया। पिछड़ी जातियों को सत्ता के तमाम महत्वपूर्ण स्थानों पर स्थापित करने का काम किया। इसके लिए गुंडई का सहारा लेने से भी नहीं चूके। पार्टी में ऐसे लोगों को शामिल किया, जो अपने क्षेत्र में वर्चस्व रखने के साथ पिछड़ी जातियों या फिर मुसलमान थे। पिछड़ी जातियों के अनुकूल व्यवस्था बनाने के लिए उन्होंने जो काम किया, इससे बिहार में गुंडों का राज स्थापित हो गया। यही कारण रहा कि भाजपा के साथ नीतीश ने 10 साल तक शासन किया और उस समय के शासन की व्यवस्था को लोग आज भी सुशासन के नाम से पुकारते हैं। इसके पीछे कारण भी हैं। नीतीश ने गुंडों को जिस तरह से सफाया कराया, फास्र्ट टैक कोर्ट से सजा दिलाई, वह देश के अन्य राज्यों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं था। लेकिन लालू के साथ जाते और उनके साथ सत्ता में आते ही सबकुछ ध्वस्त हो गया। 10 वर्षों का सुशासन मिटता सा दिख रहा है। हालांकि किसी भी घटना के बाद जिस तेजी से कार्रवाई नीतीश कर रहे हैं, वह काबिलेतारीफ है।
जातियों की गोलबंदी
बिहार की स्थिति ऐसी क्यों है, इसे लेकर हमें कुछ तथ्यों पर गौर करना होगा। यह एक ऐसा राज्य है, जिसमें शक्तिशाली जातियों में खुद को यादव बताने वालों की संख्या सबसे अधिक है। इनकी तरह बाकी अन्य लोग भी अपनी पहचान मुख्य रूप से अपनी जाति के सापेक्ष ही करते हैं। यहां अगड़ी और पिछड़ी जातियों की लड़ाई का लम्बा इतिहास है। दलित और महादलित यहीं देखे जाते हैं। उन्हें लेकर दो चश्मों की राजनीति भी की जाती है। वैसे अगड़ी जातियों में यहां राजपूत, ब्राह्मण, भूमिहार हैं। यादव और इन अगड़ी जातियों का अन्य जातियों के प्रति सामाजिक स्वभाव लगभग एक सा है। बहुत अंतर आपको नहीं मिलेगा। वैसे भी बिहार में नाम और टाइटल से बहुतों की जाति का आप पता नहीं लगा सकते। जब लालू की पार्टी सूबे की सत्ता में आयी तो रॉकी यादव जैसे नवधनाढ्यों की बिगड़ैल संतान की लंठई सामने आने लगी थी। यहां सिर्फ एक रॉकी नहीं है, आपको कई मिल जाएंगे, जो अपने रौब में किसी की नहीं सुनते। बात-बात में गोली चलाना आम बात हैं। वैसे भी यहां मुंगेर के बने हथियार आसानी से मिल जाते हैं लेकिन रॉकी के जिस पिस्टल से व्यापारी पुत्र की हत्या हुई, उसका लाइसेंस दिल्ली का निकला। साइकिल चोर से आगे बढ़े उसके पिता बिंदी यादव की संपत्ति बिहार से लेकर दिल्ली तक फैली हुई है। पैसे का गुमान तो रग-रग में बसा है।
जेल से जारी होता डेथ वारंट
शहाबुद्दीन भले ही जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हों, लेकिन उनके रुतबे, गुंडई और शानोशौकत में कोई कमी नहीं आई। सिवान जेल में उन्हें हर तरह की सुविधाएं मिलती थीं। यहां तक कि जेल में ही किसी राजा की तरह बकायदा दरबार लगाते थे। लोग अपनी फरियाद लेकर वहां पहुंचते थे। इसमें मंत्री से लेकर संतरी तक होते थे। कहा जाता है कि पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या की स्क्रिप्ट 2007 में ही तैयार की गई थी। शहाबुद्दीन के टारगेट पर 23 लोग थे, जिनमें राजदेव 14वें नंबर पर थे। अब तक लिस्ट के 14 लोगों की हत्या हो चुकी है। मारे गए तमाम लोग वैसे थे जो शहाबुद्दीन के विरोधी खेमे के थे। पत्रकार राजदेव का नाम भी सूची में शामिल था। राजदेव इस सूची में इसलिए शामिल किए गए क्योंकि शहाबुद्दीन के खिलाफ उनकी कलम चलती रहती थी। वैसे राजदेव शहाबुद्दीन के साथ एक ही कॉलेज में पढ़ चुके थे। लेकिन अपने पेशे के प्रति ईमानदार राजदेव उनकी आंख का कांटा थे। बताया जाता है कि पिछले दिनों शहाबुद्दीन से मिलने राजद के एक मंत्री जेल पहुंचे थे। उसका वीडियो और फोटो मीडिया में वायरल हो गया था। इसका जिम्मेदार राजदेव को ही माना जा रहा था। तब यह मामला काफी तूल पकड़ा था। वैसे 2007 में सिवान जेल से 23 लोगों की जो सूची जारी हुई थी, उसे पुलिस मुख्यालय के स्पेशल ब्रांच ने सरकार को दी थी। उसके बाद खुब हायतौबा मचा था।
सारण रेंज के डीआईजी ने सिवान एसपी को पत्र लिख कर सूचना भी दी थी। सूची में रविन्द्र यादव उर्फ गब्बर यादव का नाम पहले स्थान पर था। श्रीकांत भारती और राजीव रौशन की मौत हाल के दिनों में हो चुकी है। इस मुद्दे को लेकर बिहार विधानसभा में भी जमकर हंगामा हुआ था और भाजपा सदस्यों ने सदन की कार्यवाही भी बाधित की थी। रघुनाथपुर के तत्कालीन विधायक विक्रम कुंवर ने पूरे मसले को जोर-शोर से सदन के अंदर उठाया था, लेकिन हुआ कुछ नहीं। अब सूची में बचे नौ लोग अपनी खैर मना रहे हैं। हालांकि पत्रकार राजदेव की हत्या के बाद शहाबुद्दीन को सिवान जेल से हटाकर भागलपुर जेल भेज दिया गया है। पुलिस ने हत्या के बाद पिछले दिनों जब सिवान जेल में छापा मारा था, तब शहाबुद्दीन जेल में ही जनता दरबार लगाए मिले थे। वैसे पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या की जांच सीबीआई करेगी। नीतीश कुमार ने इस मामले में आदेश दिए है।

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