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बिहार में नए सियासी समीकरण की सुबगुबाहट !

19 lalu-sharadपटना। बिहार में बदलते राजनीतिक हालात में अटकलें लगाई जा रही हैं कि अब राज्य में गैर धर्मनिरपेक्ष दलों के नए गठबंधन वाली सरकार के लिए जमीन तैयार हो रही है। जनता दल (युनाइटेड) के अध्यक्ष शरद यादव ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद से सारे मतभेद मिटाकर हाथ मिलाने की बात कह कर इसके संकेत दे दिए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद बिहार में जहां गैर भाजपावाद की जमीन तैयार की जा रही है  वहीं जद (यू) और राजद के हाथ मिलाने की संभावना को बल मिला है। यह किसी से छुपा नहीं है कि नीतीश और लालू धर्मनिरपेक्ष और सामाजिक न्याय की उपज हैं। भले ही लालू प्रसाद आज ‘वेट एंड वाच’ की बात कह रहे हों  लेकिन लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद और उससे पूर्व भी वह सभी धर्मनिरपेक्ष दलों के एक मंच पर आने की वकालत कर चुके हैं। ऐसे में शरद यादव और लालू प्रसाद के बयानों के बाद अगर दोनों दल एक साथ आ जाएं तो कोई आ>र्य की बात नहीं होगी।  कहा जाता है कि लालू और नीतीश के साथ-साथ शरद की राजनीतिक विरासत लोहिया-जय प्रकाश और कर्पूरी ठाकुर की रही है। सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने के नाम पर भले ही सभी दल हाथ मिला लें  लेकिन सर्वमान्य दल के रूप में अपनी पहचान बनाए रखने के लिए इन सभी दलों में मंथन का दौर जारी है। वैसे राजद और जद (यू) के कई नेता मानते हैं कि ऐसा तुरंत नहीं होने वाला है। दोनों दलों में सामाजिक न्याय की धारा के प्रतिनिधित्व को लेकर टकराव की स्थिति बननी तय है। हालांकि लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद सभी दलों में अपने अस्तित्व को बनाए रखना चुनौती बन गई है।

राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र किशोर कहते हैं  ‘‘बिहार में राजद और जद (यू) राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल नहीं हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए दोनों के पास इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। डेढ़ साल के बाद बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में सभी दलों को यह भय सता रहा है कि कहीं भाजपा अगले चुनाव में भी क्लीन स्वीप न कर जाए।’’ सुरेंद्र कहते हैं कि नीतीश यह जान चुके हैं कि सवर्ण वोट उनसे तेजी से खिसके हैं  ऐसे में वह नई रणनीति के तहत काम कर रहे हैं। सुरेंद्र कहते हैं कि बिहार में अब गैर भाजपावाद की जमीन तैयार होगी  जिसमें धर्मनिरपेक्ष पसंद और सामाजिक न्याय में विश्वास करने वाले दल शामिल होंगे। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा ने लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) और राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (रालोसपा) को राजग में मिलकर पिछड़े वर्ग और दलित वर्ग में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की जिसमें वह सफल रही। बहरहाल  भाजपा भले ही नीतीश कुमार के इस्तीफे को नाटक करार दे रही हो  लेकिन बिहार में नई राजनीतिक जमीन तैयार करने की कवायद शुरू हो गई है। अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि इस जमीन से किसको कितना फायदा होगा और किसको जनता नकारेगी।

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