ज्ञान भंडार

बूंद-बूंद को तरसता महाराष्ट्र

kaptan mali
कप्तान माली

शायद अब तक के 100 वर्षों में पहली बार महाराष्ट्र इस तरह की सूखे की स्थिति का सामना कर रहा है जिसके चलते मराठवाड़ा, विदर्भ जैसे क्षेत्र सर्वाधिक समस्या का सामना कर रहे हैं। सूखे की समस्या इस कदर गंभीर हो गयी है कि लातूर जिले में प्रशासन द्वारा धारा 144 को लागू किया गया जिसके अंतर्गत पानी के भंडार की जगहों पर पांच से अधिक लोगों को जमा रहना कानूनन अपराध माना जायेगा। देश की ख़ुफिया विभाग ने भी राज्य सरकार को सूखे पर नजर रखने को कहा है और चेताया है कि शहरों में पानी की किल्लत की वजह से दंगे या लॉ एंड आर्डर के लिए समस्या खड़ी हो सकती हैं। इस समय राज्य के 17 बड़े बांधों में औसत 14 प्रतिशत पानी बचा हुआ है और अब भी मानसून के आने लिए एक महीने से भी ज्यादा वक्त है। कुछ बांधों में जल स्तर बांधों के दरवाजों से भी नीचे चला गया है। सूखे की स्थिति के कारण राज्य में कई जगह विस्थापन की समस्या बढ़ती जा यही है जो शहरों की तरफ भाग रहे हैं और वहां की वर्तमान पानी की समस्या को बढ़ा रहे हैं। इन सभी स्थितयों से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने 3050 करोड़ रुपये की सहायता दी है। राज्य ने पहली बार नाशिक के पंचवटी के रामकुण्ड में गोदावरी को पूरी तरह से सूखा देखा और धार्मिक आयोजन के लिए वहां पर टैंकर से पानी लाना पड़ा। वाटर फुटप्रिंट नेटवर्क के अनुसार राज्य की 73 फीसदी जमीन अर्ध शुष्क है, इसके बावजूद यह भारत में सर्वाधिक पानी का उपभोग करने वाली दो नकदी फसलें गन्ना और कपास की खेती करता है। राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र में एक किलो शक्कर के उत्पादन के लिए 2450 लीटर पानी का उपयोग होता है वही उसके समक्ष उत्तर प्रदेश 990 लीटर पानी का उपयोग करता है। कपास की खेती तो गन्ने की खेती से भी ज्यादा पानी 22,500 लीटर पानी का उपभोग एक किलो कपास के उत्पादन के लिए होता है।
सूखा और राजनीति
जहाँ एक ओर राज्य का ज्यादातर इलाका सूखे की चपेट में है वहीं दूसरी ओर राज्य के मंत्रीगण सूखा प्रभावित इलाकों में दौरे के दौरान पानी बर्बादी और सेल्फ़ी खींचने को लेकर विवादों और आलोचना के शिकार हो रहे हैं। राज्य के कृषि मंत्री एकनाथ खडसे के हेलिकॉप्टर से धूल न उड़े इसलिए लातूर में कई पीने के पानी के टैंकरों को हेलिपैड पर धूल को उड़ने से रोकने के लिए छिड़काव किया गया। वही दूसरी ओर पंकजा मुंडे ने सूखा प्रभावित इलाकों के दौरे में सेल्फी लेकर आलोचना की शिकार हुईं।
सरकार के कदम
सूखे की भयावहता देखते हुए राज्य सरकार ने अब मराठवाड़ा और विदर्भ के इलाकों में ज्यादा सिंचाई और पानी का उपभोग करने वाली फसलें जैसे गन्ना को सिर्फ ड्रिप सिंचन माध्यम से ही खेती करने का आदेश दिया है। साथ ही कम पानी का उपभोग करने वाली फसलें जैसे दलहन तिलहन के खेती का सुझाव दिया है। राज्य ने नयी चीनी मिलों पर भी प्रतिबन्ध लगा दिए है। सूखा प्रभावित इलाकों खासकर मराठवाड़ा में शराब फैक्टरियों को सप्लाई किये जाने वाले पानी में 20 फीसदी और औद्योगिक इकाइयों को 10 फीसदी की कटौती की घोसणा की है।
maharastra_1शहरों की स्थिति भी भयावह
लातूर, औरंगाबाद, नागपुर जैसे शहर ही नहीं बल्कि राज्य के लगभग सभी शहरों में लोगों को पानी के लिए जद्दोजहद करते आसानी से देखा जा सकता है। मुम्बई, ठाणे, कल्याण, पुणे जैसे बड़े शहरों में पानी मुहैया कराने वाली झीलें और बांध का पानी अपने न्यूनतम स्तर पर आ गया है जिसके चलते यहां की महानगर पालिकाएं 30 से 50 फीसदी पानी कटौती को मजबूर हो गयी हैं। परिणाम स्वरूप शहरी आबादी को बूँद बूँद पानी को तरसना पड़ रहा है। ठाणे के दिवा इलाके का हालात इस कदर बिगड़े हुए हैं कि यहां के निवासियों को अगले स्टेशन मुम्ब्रा से लोकल ट्रेन में पानी लाना पड़ रहा है। राज्य के ख़ुफिया तंत्र द्वारा ठाणे के पुलिस कमिश्नर को तो यहां तक खबर दी गयी की पानी की किल्लत की वजह से इन इलाकों में दंगे भड़क सकते हैं और इसलिए ठाणे में पानी की किल्लत वाले इलाकों में भरपूर पुलिस व्यवस्था रखी गयी है।
पलायन जारी
शहरों और विशेषकर मुम्बई, ठाणे जैसे शहरों में राज्य के सूखा प्रभावित इलाकों में रहने वालों की एक बड़ी आबादी सपरिवार पलायन कर छावनियों में रह रहे हैं और स्थानीय इलाकों में रोजगार तलाश रहे हैं। पिछले वर्ष रोजगार की तलाश में इन इलाकों की महिलाओं द्वारा शहरों में अल्पकालीन वेश्यावृत्ति व्यवसाय में उतरने की खबरें भी मीडिया में छायी रहीं जिससे राज्य में सूखे की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
सूखा बना बच्चों के लिए जानलेवा
राज्य के सूखे के हालात ने तीन मासूमों की जानें अब तक ले ली हैं। दो बच्चों की जानें धूप में पानी भरने के लिए दूर इलाके में उष्मघात से चली गयी तो कलवा की एक लड़की की जान ट्रेन से कटने से हो गयी। पिछले वर्ष पूरे महाराष्ट्र में करीब 1300 मिलीमीटर वर्षा हुई थी जो देश के राष्ट्रीय औसत 1100 मिलीमीटर से ज्यादा थी। वही मराठवाड़ा में करीब 882, विदर्भ में 1034 मिलीमीटर बारिश हुई थी। हालांकि अब प्रश्न यह उठता है कि राजस्थान जहां 400 मिलीमीटर से ज्यादा कभी बारिश नहीं होती वहां की स्थिति महाराष्ट्र से बेहतर क्यों है? इस सवाल के जवाब में वाटर मैन के नाम से प्रसिद्ध राजेन्द्र सिंह का कहना है कि महाराष्ट्र ने वर्षा चक्र का पालन नहीं किया है और जहाँ कम पानी वाली फसल लगायी वहां वह गन्ना और कपास की खेती करता है और यहाँ अब तक भूजल स्तर को ऊपर उठाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये हैं जिसका खामियाजा आम जनता को उठाना पड़ रहा है।
maharastra_2गन्ने की खेती: सारे समस्या की जड़!
आज के महाराष्ट्र की सूखे की विपदा प्रकृति निर्मित नहीं बल्कि मानव निर्मित है, इसके पीछे यहाँ की सभी सरकारें जो सभी राजनीतिक पार्टियों से रही हैं, वे जिम्मेदार हैं। जिन्होंने राज्य में पानी की बचत वाले कृषि को बढ़ावा न देकर अपने स्वार्थ के लिए गन्ना खेती को बढ़ावा दिया क्योंकि राज्य के ज्यादातर राजनेता चीनी मीलों के मालिक हैं या उससे जुड़ी किसी न किसी सहकारी संस्थाओं में निर्णायक पदों पर हैं। गन्ना खेती सर्वाधिक पानी का उपभोग करने वाली फसल है और महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा गन्ना उत्पादक राज्य है। लेकिन यहाँ के किसान और नीति निर्धारकों को यह समझना चाहिए कि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की जल सिंचाई व्यवस्था में जमीन आसमान का फर्क है। जहाँ उत्तर प्रदेश में बारहमासी नदियों का जाल फैला हुआ है वहीं महाराष्ट्र में नदियों का जलस्तर जनवरी, फरवरी के आस-पास तेजी से गिरने लगता है और अप्रैल-मई तक यह भयावह स्तर तक नीचे गिर जाता है। इसका एक मुख्य कारण राज्य की लगभग सारी नदियां दक्षिण-पश्चिम की तरफ बहती हैं और समुद्र में मिल जाती हैं जिसके कारण इनमें बारहों महीने पानी नहीं होता है। राज्य के सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार राज्य की खेती लायक जमीन के कुल 4 फीसदी गन्ना खेती के लिए उपयोग हो रही है पर वे यह नहीं बताते हैं कि सिर्फ 4 फीसदी वाली यह फसल राज्य का 70 फीसदी से ज्यादा पानी सिंचाई के लिए उपयोग करती हैं जिसे भूजल से पम्पिंग सेट या बोरिंग के द्वारा बेतहाशा खिंचा जा रहा है जिसका परिणाम राज्य के भूजल को नीचे गिरा रहा है जो आगे चलकर राज्य की जमीन को बंजर भी बना सकती है। ’

जल दूत एक्सप्रेस से पानी की आपूर्ति
लातूर की जल समस्या इतनी भयावह हो चुकी है कि मार्च के अंत में स्थानीय सरकारी अधिकारियों को धारा 144 लगानी पड़ी थी और पानी के टैंकरों के आसपास लोगों के जमा होने पर पूरी पाबन्दी थी, साथ ही साथ जहां पानी के टैंकर भरे जा रहे थे वहां पुलिस के बंदोबस्त किये गए थे। राज्य सरकार ने रेल की मदद से अब तक लातूर के सूखा प्रभावित इलाकों में पानी पहुंचाने के लिए पानी के टैंकरों की ट्रेनें मिरज से लातूर भेजी हैं जिसका वहां के निवासियों द्वारा गर्मजोशी से स्वागत किया गया। इस पानी को नगर पालिका शुद्ध करके पाइप लाइन द्वारा आपूर्ति करेगी। हालांकि यह पानी सिर्फ शहरों की हदें जहाँ पानी पाइपलाइन हैं उन्हीं इलाकों को पानी मुहैया करा पाएंगी जबकि एक बड़ा ग्रामीण इलाका प्यासा ही रह जायेगा।

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