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बूढ़ा पहाड़ है नक्सलियों का ठिकाना

नई दिल्ली : नक्सली हिंसा को लेकर बूढ़ा पहाड़ फिर सुर्ख़ियों में है। हाल ही में नक्सलियों के बारूदी सुंरग विस्फोट में झारखंड पुलिस के छह जवान मारे गए हैं। नक्सली पुलिस के हथियार भी लूट कर ले गए हैं। घटना में पुलिस की एंटी लैंडमाइन गाड़ी के परखच्चे तक उड़ गए। बूढ़ा पहाड़ में नक्सलियों और पुलिस के बीच रह-रहकर 36 घंटे से ज़्यादा वक़्त तक मुठभेड़ होती रही। इस वारदात के ज़रिए नक्सलियों ने पुलिस को यह अहसास कराने की कोशिश की है कि साल भर से पहाड़ पर कब्ज़ा बरकरार रखने और मुक्त कराने के लिए जारी जंग में अब भी नक्सली भारी हैं। दरअसल हाल के दिनो में पुलिस ने पहाड़ और इसके इर्द-गिर्द कई बड़े अभियान चलाए हैं। राज्य के पुलिस प्रवक्ता आशीष बत्रा ने कहा है कि नक्सली हताशा में इस तरह की कार्रवाई कर रहे हैं, वे हथियार छोड़ें और बूढ़ा पहाड़ खाली करें वरना मारे जाएंगे।

पुलिस अधिकारी का कहना है कि इस साल उनके 22 नक्सलियों को मारा गया है, इससे भी नक्सलियों की बेचैनी बढ़ी है। पलामू के गढ़वा-लातेहार के दुर्गम इलाके में स्थित इस पहाड़ की सीमा छत्तीसगढ़ से लगी है। नक्सलियों पर दबाव बढ़ता है तो वे छत्तीसगढ़ की तरफ आना-जाना करते हैं। झारखंड के भंडरिया के सरूअत पर्वत का हिस्सा हो या बूढ़ा पहाड़, इन जगहों पर कथित तौर पर माओवादियों के प्रशिक्षण केंद्र चलते रहे हैं। इन इलाकों में कई बार झारखंड-छत्तीसगढ़ की पुलिस साझा अभियान भी चलाती रही है। झारखंड की राजधानी रांची से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर लातेहार के गारू प्रखंड के सुदूर गांवों से शुरू होने वाला यह पहाड़ इसी ज़िले के महुआडांड़, बरवाडीह होते हुए दूसरे ज़िले गढ़वा के रमकंडा, भंडरिया के इलाके में फैला है। पलामू के स्थानीय पत्रकार सतीश सुमन बताते हैं कि मंडल डैम से दक्षिण-पूरब में इस पहाड़ का एक हिस्सा पलामू व्याघ्र परियोजना के कोर एरिया से भी सटा है। पांच-छह साल पहले तक पलामू में लगातार होती पुलिस कार्रवाईयों के बाद नक्सलियों ने बूढ़ा पहाड़ को रणनीति के साथ अपना ठिकाना बनाने की कोशिशें तेज की थी।प्राकृतिक सौंदर्य के लिहाज़ से इस पहाड़ को बार-बार निहारने को जी करेगा, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा और कई अनजान गुफाएं, चोटियां सालों से नक्सलियों के लिए मुफीद ठिकाना बनी हैं। अक्सर नक्सली घटनाओं की वजह से बूढ़ा पहाड़ चर्चा के केंद्र में होता है। तमाम कार्रवाई के बाद भी पुलिस के सामने बूढ़ा पहाड़ से नक्सलियों से खाली कराने की चुनौती बनी हुई है। हाल ही में नक्सलियों ने रमकंडा में कई वाहनों में आग लगी दी थी जबकि कुछ महीने पहले गांवों से कई लोगों का अपहरण भी कर लिया था।

नक्सली गतिविधियों के ख़िलाफ़ पिछले कई सालों से ज़मीनी स्तर पर काम करते रहे पलामू के आरक्षी उपमहानिरीक्षक विपुल शुक्ला का कहना है कि भौगौलिक दृष्टिकोण से पहाड़ बहुत बड़े क्षेत्र में फैला है और यह बहुत ऊंचाई पर और पथरीला है। इतनी प्राकृतिक गुफाएं हैं कि पास से किसी के गुज़रने का पता भी नहीं चलेगा। पुलिस अधिकारी बताते हैं कि पहाड़ की चोटियों पर ठहरना या ऊपर जाकर तलाशी अभियान चलाना बहुत आसान नहीं होता, पानी भी वहां उपलब्ध नहीं है, इसके बावजूद कई दफ़ा पुलिस चढ़कर तलाशी लेने में सफल रही है। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक इलाके में नक्सलियों ने बड़ी संख्या में कमांड वाले आईईडी लगाए हैं। पुलिस वाले यह भी मानते हैं कि इस कमांड वाली आईईडी के ज़रिए जब नक्सलियों को गुज़रना होता है उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी, लेकिन पुलिस की गतिविधि होते ही वे दूर बैठकर कमांड देने में वे सफल हो जाते हैं जिससे बारुदी सुरंग में विस्फोट होता है। इस पहाड़ से जुड़े लातेहार और गढ़वा के कुल्ही, करमीडह, लाटू, लाभर, मंडल समेत जगहों पर कई पुलिस पिकेट और पोस्ट स्थापित किए जाने से नक्सलियों की परेशानी बढ़ी है। कुछ और पिकेट स्थापित किए जाने की तैयारी है। सुरक्षा अधिकारियों के मुताबिक माओवादियों के बड़े नेता अरविंद जी का ठिकाना भी बूढ़ा पहाड़ था, कुछ महीने पहले उनके निधन की खबर सामने आई है। पुलिस का दावा है कि अरविंद के बीमार होने की जानकारी मिलने के बाद नीचे लगातार घेराबंदी की गई। सीआरपीएफ के आरक्षी महानिरीक्षक संजय आनंद लाठकर बताते हैं कि झारखंड में नक्सलियों के ख़िलाफ़ 22 बटालियन तैनात हैं और बूढ़ा पहाड़ पर भी हमारी कार्रवाई लगातार जारी है।

छत्तीसगढ़ पुलिस के साथ भी साझा बैठकें होती रही है। लाठकर बताते हैं कि दुर्गम इलाके में पुलिस बलों को कनेक्टीविटी के अभावों का सामना करना होता है। अभी जमशेदपुर में तैनात वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अनूप बिरथरे साल 2015 के जून महीने से जनवरी 2017 तक लातेहार के पुलिस अधीक्षक रहे हैं। इस दौरान उन्होंने बूढ़ा पहाड़ पर कई बड़े अभियान का नेतृत्व भी किया था। वे बताते हैं कि बूढ़ा पहाड़ के नीचे कई पठारी नदियां हैं, इससे परेशानी आती हैं। फिर जब आप ऑपरेशन पर होते हैं, तो बैक सपोर्ट की जरूरत होती है। दूरी और दुर्गम रास्तों की वजह से यह सपोर्ट पाने में दिक्कतें होती हैं। इसके बाद भी बूढ़ा पहाड़ पर लगातार मज़बूती से लड़ाई लड़ी जा रही है और नक्सलियों को भारी नुकसान हुआ है। हालांकि, जानकार मानते हैं कि बूढ़ा पहाड़ पर यह कोई पहली और आखिरी घटना नहीं हैं। इसके अलवा मानसून के इन चार महीनों में पठारी नदियों और जंगलों के घने होने की वजह से पुलिस की कार्रवाई चाहकर भी तेज़ नहीं हो सकती।

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