उत्तर प्रदेश

बेटियों का हुनर माटी में मिल रहा, आपको रुला देगी महिला खिलाड़ियों की ये संघर्ष कहानी

राष्ट्रमंडल खेलों में देश की बेटियों ने सोने सी चमकी बिखेरी है। दस मीटर एयर पिस्टल में गोल्ड हासिल करने वाली मनु हो या वेटलिफ्टिंग में सोने का तमगा जीतने वाली पूनम यादव। इन सभी महिला खिलाड़ियों का संघर्ष किसी से छुपा नहीं है। कानपुर में भी कुछ ऐसी होनहार बेटियां हैं जिन्होंने स्टेट और नेशनल लेवल पर शहर का नाम रोशन किया है लेकिन पर्याप्त संसाधनों के अभाव में उनका हुनर गलियों में दम तोड़ रहा है।बेटियों का हुनर माटी में मिल रहा, आपको रुला देगी महिला खिलाड़ियों की ये संघर्ष कहानी

जानिए उन बेटियों के संघर्ष की कहानी…
सुलभ कॉम्प्लेक्स में रह रही फुटबालर सपना

कानपुर शहर की सपना के संघर्ष की कहानी जानकर खिलाड़ियों का जोश जरूर बढ़ेगा लेकिन वह किस हाल में जीती है यह सोचने भर से रोंगटे खड़े हो जाएंगे। सपना अपने परिवार के साथ बाबूपुरवा बगाही स्थित सुलभ कॉम्प्लेक्स के एक छोटे से कमरे में रहती है। सपना के पिता सुरेंद्र झा 23 साल से सुलभ कॉम्प्लेक्स में नौकरी कर रहे हैं। केके गर्ल्स इंटर कॉलेज, किदवई नगर में सपना जब सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी, तभी क्लास टीचर इंदू मैडम की सलाह पर उसने फुटबाल खेल में करियर बनाने के बारे में सोचा। जिला फुटबाल संघ के सचिव अजीत सिंह ने सपना को ट्रायल के लिए ग्रीनपार्क स्टेडियम बुलाया। सपना ने बताया  िवहां सेलेक्शन के बाद सपना तीन दिन के वाराणसी कैंप में गई। यहीं से सपना का फुटबाल के मैदान में राष्ट्रीय सफर शुरू हो गया। साल 2010 में तमिलनाडु में सपना सब जूनियर नेशनल खेलने गई। अपने पहले नेशनल मैच में सपना ने कमाल दिखाया। इसके बाद सपना का सेलेक्शन जूनियर नेशनल फुटबाल टीम में हो गया। टीम की ओर से सपना भारत की ओर से श्रीलंका खेलने गई। श्रीलंका में खेलने के बाद सपना का सेलेक्शन कटक में 2013 में आयोजित नेशनल फुटबाल प्रतियोगिता में हो गया। तमाम लोग और सामाजिक  संस्थाएं सपना की मदद को आगे आए लेकिन सरकार से कोई मदद नहीं मिली। आखिर सपना ने खेल जारी रखने के लिए स्कूल में नौकरी की। सपना ने बताया कि नौकरी के कारण खेल को समय नहीं दे पा रही थी तो उसने कुछ महीनों बाद नौकरी छोड़ दी। वर्तमान में सपना यूपी फुटबाल टीम की खिलाड़ी हैं। पिछले साल 2017 में सपना ने पंजाब और हरियाणा में जाकर नेशनल फुटबाल प्रतियोगिता में भाग लिया। उसका सेलेक्शन फगवाड़ा में हुए स्टेट लेवल फुटबाल मैच के लिए हुआ। हाल ही में सपना ने उड़ीसा के कटक में सीनियर नेशनल मैच खेला है। सपना के लिए आज भी महंगे जूते और अच्छी डायट एक सपना है। जिस फुटबाल से प्रैक्टिस करती है, वह पंचर पड़ी है।
 
प्रोफाइल:-
नाम: सपना झा
पिता: सुरेंद्र झा
मां: बेबी झा
उम्र: 21 साल
घर: सुलभ कॉम्प्लेक्स बाबूपुरवा बगाही
शिक्षा: बीएससी सेकेंड ईयर
उपलब्धि: नेशनल लेवल की फुटबाल खिलाड़ी 
 

आर्थिक तंगी से परेशान होकर रिंग को कह दिया अलविदा 

रुखसार के पिता मोहम्मद अशरफ ट्रांसपोर्ट नगर में नौकरी करते हैं। नौकरी के पैसों से घर का खर्च नहीं चलता इसी वजह से पूरा परिवार पतंगें बनाकर गुजर-बसर करता है। रुखसार की चार बहनें और एक भाई है। साल 2006 में 10 साल की उम्र में वह केके गर्ल्स कॉलेज से खेलती थी। बॉक्सिंग कोच संजीव दीक्षित के मार्गदर्शन से रुखसार का बॉक्सिंग में करियर शुरू हुआ। साल 2006 में ट्रायल पास करने के बाद 2007 में रुखसार ने स्टेट जूनियर में गोल्ड जीता। इसके अलावा रुखसार ने सब जूनियर प्रतियोगिता में ब्रॉन्ज मैडेल भी जीता। साल 2008 में नेशनल सब जूनियर में आंध्र प्रदेश में रुखसार खेलने गई और कांस्य पदक जीता। इसके बाद 2009 में गोवा में उन्हें सब जूनियर में खेलने का मौका मिला। साल 2009 में पटना में हुई नेशनल प्रतियोगिता के दौरान उसने कांस्य पदक जीता। इसके बाद 2010 में ईरोट में आयोजित प्रतियोगिता में भाग लिया। 2011 में मध्यप्रदेश में सीनियर नेशनल में भाग लिया। 2012 में पटियाला में कांस्य पदक जीता। 2013 में खटीमा प्रतियोगिता में भाग लिया। 2010-12 के बीच भोपाल के साइन में ट्रेनिंग ली। खटीमा में खेलने के बाद आर्थिक तंगी से परेशान होकर रुखसार ने रिंग को अलविदा कह दिया। रुखसार के गरीब मां-बाप बॉक्सिंग खेल का महंगा खर्च नहीं उठा पा रहे थे। 2014 में कॉमनवेल्थ गेम्स में भी वह खेलने गई लेकिन वहां की चकाचौंध देखकर ट्रायल नहीं दे पाई। रुखसार का कहना था कि जब खाने को पौष्टिक आहार और पहनने को अच्छे जूते तक नहीं थे तो कॉमनवेल्थ गेम्स में क्या करती। इसके बाद वहघर बैठ गई। साल 2015 में ‘अमर उजाला’ में प्रकाशित ‘शहर की मेरीकॉम बना रही पतंग’ खबर को पढ़कर लोग उसकी मदद को आगे आए लेकिन यह काफी नहीं थी। जूते, किट, आहार, ट्रेनिंग के लिए आज भी मोहताज है। पैरों में नसें ऐंठ गईं हैं, जिसका इलाज कराने मे भी मुश्किल आ रही है। वह किसी तरह स्पोर्ट्स कोटे से सरकारी नौकरी चाहती है ताकि खेल जारी रख सके वर्ना घर बैठना होगा।
प्रोफाइल:- 
नाम: रुखसार बानो
पिता: मोहम्मद अशरफ
मां: कमर जहां
उम्र: 23 साल
घर: मछरिया, नौबस्ता
शिक्षा: बीएससी फाइनल ईयर
उपलब्धि: स्टेट-नेशनल लेवल महिला बॉक्सर 
 
 
 

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