उत्तर प्रदेश
बेटियों का हुनर माटी में मिल रहा, आपको रुला देगी महिला खिलाड़ियों की ये संघर्ष कहानी
राष्ट्रमंडल खेलों में देश की बेटियों ने सोने सी चमकी बिखेरी है। दस मीटर एयर पिस्टल में गोल्ड हासिल करने वाली मनु हो या वेटलिफ्टिंग में सोने का तमगा जीतने वाली पूनम यादव। इन सभी महिला खिलाड़ियों का संघर्ष किसी से छुपा नहीं है। कानपुर में भी कुछ ऐसी होनहार बेटियां हैं जिन्होंने स्टेट और नेशनल लेवल पर शहर का नाम रोशन किया है लेकिन पर्याप्त संसाधनों के अभाव में उनका हुनर गलियों में दम तोड़ रहा है।
जानिए उन बेटियों के संघर्ष की कहानी…
सुलभ कॉम्प्लेक्स में रह रही फुटबालर सपना
आर्थिक तंगी से परेशान होकर रिंग को कह दिया अलविदा
रुखसार के पिता मोहम्मद अशरफ ट्रांसपोर्ट नगर में नौकरी करते हैं। नौकरी के पैसों से घर का खर्च नहीं चलता इसी वजह से पूरा परिवार पतंगें बनाकर गुजर-बसर करता है। रुखसार की चार बहनें और एक भाई है। साल 2006 में 10 साल की उम्र में वह केके गर्ल्स कॉलेज से खेलती थी। बॉक्सिंग कोच संजीव दीक्षित के मार्गदर्शन से रुखसार का बॉक्सिंग में करियर शुरू हुआ। साल 2006 में ट्रायल पास करने के बाद 2007 में रुखसार ने स्टेट जूनियर में गोल्ड जीता। इसके अलावा रुखसार ने सब जूनियर प्रतियोगिता में ब्रॉन्ज मैडेल भी जीता। साल 2008 में नेशनल सब जूनियर में आंध्र प्रदेश में रुखसार खेलने गई और कांस्य पदक जीता। इसके बाद 2009 में गोवा में उन्हें सब जूनियर में खेलने का मौका मिला। साल 2009 में पटना में हुई नेशनल प्रतियोगिता के दौरान उसने कांस्य पदक जीता। इसके बाद 2010 में ईरोट में आयोजित प्रतियोगिता में भाग लिया। 2011 में मध्यप्रदेश में सीनियर नेशनल में भाग लिया। 2012 में पटियाला में कांस्य पदक जीता। 2013 में खटीमा प्रतियोगिता में भाग लिया। 2010-12 के बीच भोपाल के साइन में ट्रेनिंग ली। खटीमा में खेलने के बाद आर्थिक तंगी से परेशान होकर रुखसार ने रिंग को अलविदा कह दिया। रुखसार के गरीब मां-बाप बॉक्सिंग खेल का महंगा खर्च नहीं उठा पा रहे थे। 2014 में कॉमनवेल्थ गेम्स में भी वह खेलने गई लेकिन वहां की चकाचौंध देखकर ट्रायल नहीं दे पाई। रुखसार का कहना था कि जब खाने को पौष्टिक आहार और पहनने को अच्छे जूते तक नहीं थे तो कॉमनवेल्थ गेम्स में क्या करती। इसके बाद वहघर बैठ गई। साल 2015 में ‘अमर उजाला’ में प्रकाशित ‘शहर की मेरीकॉम बना रही पतंग’ खबर को पढ़कर लोग उसकी मदद को आगे आए लेकिन यह काफी नहीं थी। जूते, किट, आहार, ट्रेनिंग के लिए आज भी मोहताज है। पैरों में नसें ऐंठ गईं हैं, जिसका इलाज कराने मे भी मुश्किल आ रही है। वह किसी तरह स्पोर्ट्स कोटे से सरकारी नौकरी चाहती है ताकि खेल जारी रख सके वर्ना घर बैठना होगा।