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भारत में तापमान बढ़ने से हर साल होंगी 15 लाख मौतें, हिल स्टेशन तक हो जाएंगे गर्म !

सदी के अंत तक जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान बहुत ज्यादा बढ़ेगा। इस कारण भारत में हर साल 15 लाख लोग मौत के मुंह में चले जाएंगे। 35 डिग्री से ज्यादा तापमान वाले दिनों में आठ गुना इजाफा होगा। देश की राजधानी यानी दिल्ली की बात करें, तो बेहद गर्म दिनों की संख्या 22 गुना बढ़ जाएगी। इसका मतलब है कि दिल्ली में हर साल गर्मी के चलते 23 हजार लोग असमय ही मारे जाएंगे। मौजूदा परिवेश को देखते हुए देश का औसत सालाना तापमान 24 डिग्री सेंटीग्रेड से बढ़ कर 2100 तक 28 डिग्री सेंटीग्रेड पहुंचने की संभावना है। दिल्ली स्थित यूशिकागो सेंटर में जारी की गई एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन एवं मौसम में होने वाले बदलावों का मनुष्य एवं अर्थव्यवस्था पर कैसा प्रभाव पड़ता है, यह सब बताया गया है।

पंजाब देश का सबसे गर्म राज्य
रिपोर्ट के मुताबिक ग्रीन हाउस गैसों के लगातार उत्सर्जन से 2100 तक भारत के सालाना औसतन तापमान में चार डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ोतरी का अनुमान है। 35 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान वाले बेहद गर्म दिनों की औसत संख्या 5.1 (2010) से आठ गुना बढ़कर 42.8 तक पहुंच जाएगी। अनुमान है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 16 राज्य पंजाब से अधिक गर्म होंगे। वर्तमान में पंजाब को सबसे गर्म राज्य माना जाता है। अभी इस राज्य का तापमान 32 डिग्री सेंटीग्रेड (2010) से नीचे है।

उड़ीसा में सबसे ज्यादा गर्म दिन
अगर सदी के अंत की बात करें, तो पंजाब देश का सबसे गर्म राज्य बना रहेगा। उस वक्त यहां का औसत सालाना तापमान तकरीबन 36 डिग्री सेंटीग्रेड होगा। हालांकि इस सूची में उड़ीसा शीर्ष पायदान पर रहेगा। यहां पर ज्यादा गर्म दिनों की संख्या में सर्वाधिक बढ़ोतरी होगी। 2010 में यह संख्या 1.62 थी, जबकि 2100 में इसके 48.05 तक पहुंचने के आसार हैं। सदी के अंत तक गर्म दिनों की संख्या दिल्ली में 22 गुना (तीन से 67), हरियाणा में 20 गुना और राजस्थान में सात गुना बढ़ने की संभावना है।

मृत्यु दर पर असर डालता है तापमान
शोध बताता है कि गर्मियों के बढ़ते औसत तापमान और बेहद गर्म दिनों की बढ़ती संख्या का असर मृत्यु दर पर पड़ता है। एक अनुमान के मुताबिक उत्तरप्रदेश (402280), बिहार (136372), राजस्थान (121809), आंध्रप्रदेश (116920), मध्यप्रदेश (108370) और महाराष्ट्र (106749) जलवायु परिवर्तन की वजह से हुई तापमान में बढ़ोतरी के कारण कुल अतिरिक्त मौतों में 64 फीसदी का योगदान दे रहे हैं, जो कि हर साल कुल 15 लाख मौतों से अधिक है।

‘हम’ पर निर्भर करता है जलवायु परिवर्तन
कार्यक्रम में उपस्थित केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि जलवायु परिवर्तन हम पर निर्भर करता है। इस असर को हम मानसून में बदलाव, सूखा और गर्म लहरों के रुप में देख रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण हम कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। इसमें पानी का संकट एक बड़ी समस्या है। इन नई चुनौतियों को देखते हुए सरकार बहुआयामी दृष्टिकोण अपना रही है। हम पारंपरिक जल निकायों के संरक्षण का आह्वान कर रहे हैं और ऐसी फसलों को प्रोत्साहन दे रहे हैं, जिनमें पानी का उपयोग कम मात्रा में होता है।

तापमान बढ़ने से भारत में 2500 मौतें
टाटा सेंटर फॉर डेवलपमेंट, यूशिकागो के फैकल्टी डायरेक्टर माइकल ग्रीनस्टोन ने कहा कि रिपोर्ट के नतीजों से साफ हो गया है कि दुनियाभर में जीवाश्म ईंधन पर बढ़ती निर्भरता का बुरा असर आने वाले समय में भारतीयों पर पड़ेगा। ऐसे में जलवायु एवं वायु प्रदूषण के जोखिम का प्रबंधन बेहद अनिवार्य है। असिस्टेंट प्रोफेसर एवं हैरिस पब्लिक पॉलिसी और क्लाइमेट इंपैक्ट लैब के सदस्य आमिर जीना बोले, 2015 में तापमान बढ़ने के कारण भारत में 2500 मौतें दर्ज किए जाने के बाद भारत और दुनिया का भविष्य भी चिंताजनक दिखाई देता है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के उन्मूलन पर काम करना होगा।

अध्ययन रिपोर्ट में सामने आईं ये बातें
हिमालयी राज्यों में गर्मियों के औसत तापमान में सबसे ज्यादा वृद्धि होगी। जम्मू कश्मीर (+5.1 डिग्री सेल्सियस), हिमाचल प्रदेश (+4.4 डिग्री सेल्सियस) और उत्तराखंड (+4.1 डिग्री सेल्सियस) में तापमान बढ़ जाएगा।
साल 2100 तक मेघालय (28.3 डिग्री सेल्सियस), महाराष्ट्र (28.0 डिग्री सेल्सियस) के मौजूदा तापमान की तुलना में गरम होगा।
सदी के अंत तक उड़ीसा में बेहद गर्म दिनों की संख्या में 30 गुना बढ़ोतरी होगी, जो सभी राज्यों में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी है। पंजाब में 85 बेहद गर्म दिन होंगे, जो सभी राज्यों में सर्वाधिक संख्या है।
2100 तक जलवायु परिवर्तन के कारण हर साल 15 लाख लोगों के मरने की संभावना है, यह दर आज के भारत में सभी संक्रामक बीमारियों से होने वाली मौतों की तुलना में अधिक है।
2040 तक कार्बन का उत्सर्जन अपने चरम पर होगा। 2100 तक हवा में कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर 540 पीपीएम तक पहुंच जाएगा। यह अनुमान आरसीपी 4.5 पर आधारित है। दूसरे कारक आरसीपी 8.5 की बात करें, तो सदी के अंत तक कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर 940 पीपीएम तक पहुंचेगा।
दुनिया भर में कार्बन डाई ऑक्साइड की सांद्रता एक जनवरी 2019 को 410 पीपीएम थी।

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