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मतदाता किसान के लिए मचा राजनीतिक घमासान


नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी दलों में कृषि क्षेत्र के संकट को लेकर टकराहट बढ़ रही है और राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव नजदीक होने पर यह घमासान और भी तेज हो सकता है। विपक्षी दलों ने 9 अगस्त और 5 सितंबर को किसानों और श्रमिकों के विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। वहीं दूसरी तरफ भाजपा अपने समर्थकों के लिए वर्कशॉप का आयोजन कर रही है ताकि नरेंद्र मोदी की कृषि क्षेत्र के लिए अनुकूल नीतियों का संदेश दिया जा सके।

भाजपा नेतृत्व 2004 के ‘इंडिया शाइनिंग’ अभियान के हश्र और हाल में गुजरात विधानसभा चुनावों के नतीजों को नहीं दोहराने को लेकर चौकस है जहां ग्रामीण क्षेत्रों में इसे हार मिली थी। इन तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव और अगले साल लोकसभा चुनावों को देखते हुए सरकार इस हफ्ते खरीफ सीजन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी की घोषणा के लिए तैयार है। एमएसपी का सबसे बड़ा असर धान, तिलहन, दालों और कुछ हद तक कपास पर दिखने की उम्मीद है। एमएसपी में यह बढ़ोतरी पूर्वी और मध्य भारत के किसानों को कवर करेगी। केंद्र ने यहां धान की खरीद बढ़ाई है और पिछले खरीफ सीजन में राज्य सरकार ने सामान्य ग्रेड वाले धान पर 300 रुपये प्रति क्विंटल बोनस की घोषणा की लेकिन केंद्र ने इससे कहीं अधिक 1,550 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी तय कर दी।

तिलहन और दालों की खेती मुख्यतौर पर खरीफ सीजन में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में होती है। देश के सोयाबीन उत्पादन में मध्य प्रदेश और राजस्थान का योगदान 60 फीसदी से अधिक है जबकि मूंगफली गुजरात की एक बड़ी फसल है। एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री ने कहा कि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए 1.21 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया जबकि उनकी सरकार ने अपने कार्यकाल में 2.12 लाख करोड़ रुपये का आवंटन हुआ। उनका कहना है, पूर्ववर्ती सरकार की तरह हमारी योजनाएं फाइल तक सीमित नहीं हैं बल्कि यह जमीन पर पहुंच चुकी है। केंद्रीय मंत्रिमंडल 2019 के लोकसभा चुनावों और आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर एमएसपी में उत्पादन लागत का 1.5 गुना की बढ़ोतरी कर सकता है। पिछले साल के 80 रुपये प्रति क्विंटल के मुकाबले धान की एमएसपी में लगभग 200 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी करने का फायदा, चुनावी गणित के लिहाज से देश के पूर्वी इलाके में मिल सकता है।

धान की खेती विशेषतौर पर बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मिलता है। इन राज्यों की लोकसभा में कुल 184 सीटें हैं और भाजपा बंगाल और ओडिशा में अपनी जगह बनाने के लिए आशान्वित है। परंपरागत रूप से देश के पूर्वी इलाके में उत्पादन के मुकाबले धान की खरीद काफी कम होती है। मोदी सरकार विशेष तौर पर बिहार और ओडिशा में आगामी सीजन में इसमें बदलाव लाना चाहती है। भाजपा शासित छत्तीसगढ़ में धान एक बड़ी फसल है और दिसंबर तक यहां विधानसभा चुनाव होने हैं।

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