दस्तक-विशेष

मां! तुम तो सुनो

Capture देखिएगा इसी कॉलेज में एक दिन टॉप करके दिखाऊंगी। इस आवाज़ में दृढ़ स्थिरता होनी चाहिए थी, विश्वास होना चाहिए था, लेकिन यहां एक उदास कंपन थी। आवाज़ से दुगुनी उदास उसकी आंखें थी। सर की नज़र में वह एक अविश्वसनीय लड़की थी जिसके बारे में अभी तीन महीने पहले ही अटकलों और अफवाहों का ताना-बाना जोर-शोर से बुना गया था। इस ताने-बाने में उसके चरित्र के लिए सिर्फ़ स्याह रंग ही चुना गया था। आश्चर्य कि इस स्याह रंग को चुनते समय लोगों में गजब की एकता और अपनापन था। सभी एकमत थे कि वह लड़की चरित्रहीन है। एकमत होने के पीछे कोई प्रामाणिक आधार नहीं था फिर भी सभी ने पूरी तरह से मान लिया था कि वह झूठी और पतिता है। यह वही लड़की थी जिसे अभी तक उसकी प्रतिभा के कारण सराहना मिलती आई थी। जिसकी शालीनता की मिसाल दी जाती थी। आखिर कैसे एक ही दिन में चरित्रहीन घोषित कर दी गयी। कैसे अपने गुरुजनों और सहपाठियों की दृष्टि में एक कुलीन लड़की कुलटा कही और मानी जाने लगी ?
एक ही दिन में उसका समूचा अस्तित्व संदेह के घेरे में आ गया था और आश्चर्य यह कि उस पर संदेह करने वाले और उसे दुश्चरित्र कहकर बदनाम करने वाले कोई और नहीं उसके अपने ही सगे-संबंधी थे। उस दिन महाविद्यालय के वार्षिकोत्सव में अनेकानेक रंगारंग कार्यक्रमों में सम्मिलित थी वह। सभी ने उसके नृत्य को सराहा था। उसके अभिनय को देख के सभी विस्मित थे। सभी एकसुर में तालियों के बीच उसका उत्साह वर्धन कर रहे थे। कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद जब पुरस्कृत करने के लिए उसे पुकारा जाने लगा तो पता चला कि वह कब की घर चली गयी, लेकिन बाद में उसके सहपाठियों को फ़ोन आने लगे कि वह तो घर पहुंची ही नहीं। उसके पति और जेठ रात दस बजे तक उसे पूरे शहर में ढूंढते फिरे। घर वालों ने कॉलेज के प्राचार्य से लेकर चपरासी तक से पूछ डाला कि आखिर यह लड़की कहां गयी। उस दिन की पूरी शाम और रात दस बजे तक उसकी खोज होती रही और अप्रत्यक्ष रूप से उसके नाम अनेकों आरोप गढ़ लिए गए। किसी ने कहा नई-नई शादी हुई है, लेकिन कभी पति कॉलेज छोड़ने नहीं आते, एक लड़का आता है जिसके कंधे पर हाथ रखकर, एकदम से सटकर बाइक पर घूमती है। पूछने पर बताती है कि जेठ है, भला कोई अपने जेठ के साथ भी इस तरह से व्यवहार करता है। कोई कहता एकदम छुपी रुस्तम है। इसी कारण किसी से ज्यादा घुलती-मिलती नहीं थी कि राज खुल जाएगा। कई घनिष्ठ सहेलियां भी आरोप में सहज शामिल हो गयीं और भेद उजागर करने लगीं कि उसकी पसंद की शादी नहीं हुई है। वह कहती है कि पति उससे प्यार नहीं करते। वह कुछ दिनों तक पूरे कॉलेज कैम्पस में मनोरंजन का साधन बनी रही। कोई भी रस लेकर उसकी निंदा में घंटे भर का समय आराम से काटकर अपनी ऊब से छुटकारा पा सकता था। उस दिन के बाद उस लड़की के घर से फिर कोई भी फोन किसी के पास नहीं आया। लगभग तीन महीने बीत गए थे। सभी उसको भूलने लगे थे कि एक दिन वह दिख गई। कक्षा में सबसे पीछे सर झुकाये उदास, शरमाई हुई, खुद में सिमटी हुई, सबकी आंखों के गोलकों में तिरती घृणा से घबराई हुई वह लगभग कांप रही थी। जो भी आता एक ही प्रश्न पूछता कि ‘कहां थी उस दिन?’ जवाब में उसकी सुन्दर आंखें छलक जातीं। सभी उत्तर की प्रतीक्षा से आकुल हुए जा रहे थे। कोई नहीं देख रहा था कि इन तीन महीनों ने उसे क्या से क्या बना दिया है। उसकी दूधिया दमकती त्वचा पीली पड़ गई है। अभी बाइस की उम्र में ही उसकी आंखों के नीचे काले घेरे बनने लगे हैं। कभी उन्मुक्त होकर खिलखिलाने वाले गुलाबी होठ रूखे-सूखे और काले पड़ गए हैं, जो रुलाई रोकने की कोशिश में टेढ़े-मेढ़े होकर अजीब से बेढंगे हो जाते हैं।
सहानुभूति जैसे भाव की तनिक भी संभावना प्रश्न-कर्ताओं के पास नहीं बची है। बची है तो सिर्फ उस दिन के बारे में सब कुछ जान लेने की आतुरता। वह चुप है, बोलती हैं तो उसकी आंखें। कभी जब प्यार के अभिनय से पूछा जाता है तो वे छलक पड़ती हैं। कभी घृणा से पूछा जाता है तो दु:ख से भर उठती हैं। कभी दोस्ती-यारी की सौगंध की आड़ में पूछा जाता है तो वह गुमसुम हो जाती है। आखिर बहुत तरीके से और बहुत बार पूछने पर उसने बताया कि वह भागकर अपने मायके चली गयी थी क्योंकि पति से उस दिन वह झूठ बोलकर आई थी। वे उसके नाचने-गाने को ठीक नहीं समझते हैं और अपने शिक्षकों के दबाव में ही उसे प्रोग्राम में हिस्सा लेना पड़ा। मारे संकोच के वह कह भी नहीं पायी कि उसके घरवालों को उसका प्रोग्राम में हिस्सा लेना पसंद नहीं है। उसने यह भी बताया कि बाइक पर जिसके साथ बैठकर घर जाती है वह उसके पति ही हैं। कभी-कभी जेठ जी लेने आते हैं।
पति मुम्बई में रहते हैं, लेकिन इसे साथ नहीं रखते। शादी के सात महीने हो गए और अभी तक कभी वह उनके साथ नहीं रही। सास-ससुर, जेठ-जेठानी सभी लोग समझा के हार गए पर वे साथ रखने को तैयार नहीं हैं। छोटी-छोटी गलतियों की बड़ी और भयानक सजा भुगतती है। जब छुट्टियों में घर आते हैं तो जीना मुहाल कर देते हैं। चाय बनवाकर मंगाते हैं और चखकर फेंक देते हैं। खाने की थाली फेंक देते हैं और सारे दिन किचन में खड़े रहने को मज़बूर कर देते हैं। समझाने पर अपने ही मां-बाप और भाई-भाभी को अपशब्द बोलने लगते हैं। बहुत जिद्दी और बिगड़ैल हैं, घर में सभी उनसे डरते हैं। कई-कई बार तो लगता है कि गुस्से में गला दबाकर मार ही डालेंगे। कुछ बोलने पर धमकाते हैं कि तलाक दे देंगे। मायके में यह सब कहने पर जब कोई इस बारे में इनसे बात करना चाहता है तो और भी बौखलाकर मारने-पीटने लगते हैं और बाल खींचते हुए घर के बाहर भगा देते हैं। उस दिन कॉलेज में देर हो गयी थी। इसलिए डर के मारे वह मायके चली गयी। वहां भी रात दस बजे पहुंच गए और मनाकर वापस ले आये। आने के दो-तीन दिन तक सब ठीक रहा फिर वही हाल।
उसे सलाह दी जाती है कि घरेलू हिंसा में वह अपने अत्याचारी पति को फंसा सकती है। मां-बाप को समझा सकती है कि ऐसे घर में अब नहीं रहना। अभी तो शादी के सात महीने ही हुए हैं, बाल-बच्चे हो जायेंगे तो मुश्किल और बढ़ जाएगी। उसे मां से यह सब खुलकर बताना चाहिए। पिता और भाइयों से मदद के लिए गुहार लगानी चाहिए। कोई मदद के लिए नहीं तैयार होता है तो खुद ही थाने जाकर शिकायत दर्ज़ करानी चाहिए।
वह इन सलाहों और उपदेशों को सुनते हुए भी नहीं सुनती, हर बार सिर्फ़ एक ही वाक्य दुहराती है-‘ मां -पापा सबसे कहा पर कोई सुनता ही नहीं, सभी कहते हैं कि नई शादी है थोड़ा एडजस्ट करना सीखो। अब तो किसी से भी कुछ नहीं कहती हूं, क्या फायदा। कोई समझे या ना समझे पर मां को तो समझना चाहिए न, लेकिन वह भी मेरी बात पर ध्यान नहीं देती। कहती है कि एक दिन सब ठीक हो जायेगा, थोड़ा धीरज रख। कभी-कभी लगता है कि कोई मेरा नहीं है, सब पराये हैं। जी में आता है आत्महत्या कर लूं।’ ल्ल

Related Articles

Back to top button