दस्तक-विशेष

मानवता रोती रही, सीकर पुलिस सोती रही

राजस्थान में औसतन प्रतिदिन पांच हत्याएं और दस दुष्कर्म के मामले दर्ज होते हैं। राजस्थान का इस देश में दूसरा नंबर है। गत वर्ष राजस्थान में दुष्कर्म की 3759 घटनाएं हुई थीं। प्रथम स्थान पर मध्य प्रदेश रहा। राजस्थान पुलिस द्वारा बलात्कार के बढ़ते मामलों को देखते हुए एक आंतरिक अध्ययन करवाया गया था, जिसमे वर्ष 2014 में नवम्बर माह तक 45 प्रतिशत बलात्कार के दर्ज मामले झूठे पाए गए थे

Captureजगमोहन ठाकन, राजस्थान
र्म उनको क्यों आती नहीं? क्यों नहीं दिखता अपना दागदार चेहरा? आखिर ऐसी कौन सी ट्रेनिंग दी जाती है कि पुलिस की वर्दी धारण करते ही मानवता एवं संवेदनशीलता विलुप्त हो जाती है? क्यों नहीं सुनाई देता उनको ममता का रुदन? क्यों नहीं झकझोरती उन्हें एक मां की वेदना?
यह सब प्रश्न उठते हैं सितंबर 10 की मध्यरात्रि को राजस्थान के जिला मुख्यालय सीकर में हुए एक चार वर्षीया बालिका के साथ बलात्कार की घटना पर। सीकर के कल्याण सर्किल पर अपने पांच बच्चों के साथ सो रही मां को सपने में भी ख्याल नहीं आया होगा कि बच्चों से उसका कुछ मिनट का अलगाव उसे इतनी भारी विपदा में डाल देगा। रात करीब एक बजे वह किसी काम से बच्चों को सोता छोड़ कहीं चली गयी थी, परन्तु जब लौटी तो अपनी चार वर्षीय बालिका को वहां न पाकर वह दंग रह गई। उसने आसपास के क्षेत्र तथा रेलवे स्टेशन पर बालिका को ढूंढ़ा पर असफलता के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं लगा। थक-हारकर वह अंतत: रात को ढाई बजे पुलिस से मदद मांगने कल्याण सर्किल चौकी गई। यहां तैनात पुलिस कर्मियों ने अपने अंदाज में स्पष्ट कह दिया कि-बच्ची यहीं कहीं गई होगी, खुद ही ढूंढो। मां रात तीन बजे फिर चौकी में गुहार लगाने गई, लेकिन फिर वही जवाब मिला। सुबह छह बजे तक वह तीन बार चौकी गई पर मानवता विहीन वर्दीधारियों को कहां सुनाई देती है एक मां की वेदना।
चौकी से निराश होकर लाचार मां सदर थाने गई, पर यहां भी उसे केवल आश्वासन मिला कि शीघ्र तलाश के लिए पुलिस भेज रहे हैं। निराश मां फिर अपने स्तर पर ही पुत्री की खोज में लग गई। उसे सुबह सात बजे रेलवे स्टेशन पर ही कल्याण पुलिस चौकी से मात्र पांच सौ मीटर की दूरी पर लहूलुहान बच्ची एक कूड़े के ढेर में बेसुध मिली। मां का आरोप है कि बच्ची के लापता होने के बाद वह चार घंटे तक चौकी और थाने के चक्कर काटती रही, पर पुलिस ने बच्ची को ढूंढ़ने की कोशिश तक नहीं की। वह खुद ही उसे एसके अस्पताल लेकर गई। अस्पताल में भी सात बजे पहुंचने के बावजूद इलाज शुरू नहीं किया गया। पुलिस भी सुबह दस बजे अस्पताल पहुंची। जब दोपहर बारह बजे एसपी अखिलेश कुमार अस्पताल पहुंचे तब बालिका का उपचार शुरू हुआ, परन्तु हालत ज्यादा नाजुक होने के कारण उसे जयपुर के जे के लोन हॉस्पिटल रेफर कर दिया गया।
शुरुआती जांच में पुलिस द्वारा बच्ची की मां द्वारा शक के आधार पर दो व्यक्तियों राम सिंह और बाबू लाल के खिलाफ केस दायर कर पूछताछ प्रारंभ की गई थी। अपने प्रसिद्ध अंदाज में इन दोनों को राजस्थान पुलिस अपराधी घोषित करती कि इससे पहले एक प्राइवेट सीसी टीवी फुटेज ने असली अपराधी का चेहरा बेनकाब कर दिया। पुलिस ने फुटेज के आधार पर बीकानेर जिले के नोखा निवासी पवन कुमार बिश्नोई को इस जघन्य दुष्कर्म प्रकरण में गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस के मुताबिक पवन कुमार बच्ची के बरामदगी स्थल के नजदीक ही एक होटल में काम करता था तथा घटना के बाद से उसकी अचानक होटल छोड़ जाने की सूचना पर पुलिस ने संदेह के आधार पर उसके घर से गिरफ्तार किया है। पुलिस के अनुसार पवन कुमार ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है। शुक्र है सीसी टीवी फुटेज का जिससे पुलिस हिरासत में लिए गए राम सिंह और बाबू लाल की रिहाई हो सकी, वर्ना राजस्थान के बलात्कार के दर्ज मामलों में एक और मामला झूठा हो जाता। उल्लेखनीय है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो [एनसीआरबी] के मुताबिक देश में संगीन व महिला उत्पीड़न सम्बन्धी अपराध में सबसे ज्यादा झूठे मामले राजस्थान में ही दर्ज होते हैं। वर्ष 2014 में प्रदेश के 861 थानों में 210498 हत्या, हत्या के प्रयास, डकैती, लूट, दुष्कर्म, चोरी व नकबजनी सहित अन्य मामलों के प्रकरण दर्ज हुए थे, जिनमे से 46794 मुकदमे पुलिस की जांच में झूठे पाए गए। इन दर्ज मुकदमों में से प्रदेश में 22 प्रतिशत से अधिक प्रकरण झूठे दर्ज हुए हैं।
राजस्थान में औसतन प्रतिदिन पांच हत्याएं और दस दुष्कर्म के मामले दर्ज होते हैं। राजस्थान का इस देश में दूसरा नंबर है। गत वर्ष राजस्थान में दुष्कर्म की 3759 घटनाएं हुई थीं। प्रथम स्थान पर मध्य प्रदेश रहा। राजस्थान पुलिस द्वारा बलात्कार के बढ़ते मामलों को देखते हुए एक आंतरिक अध्ययन करवाया गया था, जिसमे वर्ष 2014 में नवम्बर माह तक 45 प्रतिशत बलात्कार के दर्ज मामले झूठे पाए गए थे। हालांकि एसएसपी ने कल्याण चौकी इंचार्ज को कोताही बरतने के आरोप में निलंबित भी कर दिया गया है, राजस्थान मानवाधिकार आयोग द्वारा सीकर बालिका दुष्कर्म की जांच के आदेश भी दे दिए गए हैं, परन्तु इस कांड को लेकर नागरिकों द्वारा सीकर, पिलानी, झुंझुनू आदि शहरों में किये गए प्रदर्शनों एवं व्यक्त आक्रोश को क्या उपरोक्त कदम शांत करने में काफी हैं? जब पुलिस को रात्रि में ढाई बजे महिला ने सूचना दे दी थी, तो क्यों नहीं पुलिस अधिकारियों ने अपने आला अफसरों को तुरंत सूचित किया? एसएसपी स्वयं बारह बजे अस्पताल पहुंचते हैं, जबकि महिला कल्याण चौकी तथा सदर थाने में सुबह छह बजे तक कई बार गुहार लगा चुकी थी। क्या एसएसपी की प्रशासनिक व्यवस्था इतनी लचर है कि नीचे वाले अधिकारी उन्हें इतने बड़े प्रकरण की सूचना तक देना उपयुक्त नहीं समझते? या स्वयं एसएसपी द्वारा ही कोई ऐसा वातावरण तैयार कर दिया गया है कि उनके मातहत उन्हें सूचना देने का साहस ही नहीं कर पा रहे हैं? कारण कुछ भी हो पुलिस की जानबूझ कर की गई लापरवाही ने एक मासूम की जिंदगी व इज्जत को सरेआम दांव पर लगा दिया। अगर सीसीटीवी की फुटेज को सही माना जाए तो पुलिस की त्वरित कारवाई बच्ची को बचा सकती थी और अपराधी मौके पर ही पकड़ा जा सकता था, क्योंकि पुलिस द्वारा जारी की गई फुटेज के अनुसार आरोपित व्यक्ति रात्रि एक बजकर बारह मिनट पर लड़की को ले जाते हुए दिख रहा है तथा सुबह पांच बजकर इक्यावन मिनट पर वापस आता हुआ नजर आ रहा है और पीडिता को कूड़े के ढेर पर छोड़ देता है। इसी स्थल पर पीड़िता सुबह बरामद हुई थी। अगर महिला की गुहार को सुनकर पुलिस सूचना के समय ही हरकत में आ जाती तो बलात्कारी को मौके पर ही पकड़ा जा सकता था। अब सवाल उठाता है कि क्या बालिका को जिंदगी-मौत से जूझते छोड़ अपनी नींद पूरी करने वाले पुलिस कर्मियों व अधिकारीयों को अपने किये की सजा मिल पाएगी? क्या वे भविष्य में संवेदनशील हो पाएंगे? या आगे भी खाकी यूं ही दागदार होती रहेगी। कहीं ऐसा न हो कि राजस्थान पुलिस “दाग अच्छे हैं” का नीति वाक्य ही न अपना ले। ल्ल

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