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मिनीमम गवर्नमेंट और मैक्सीमम गवर्नेंस के वादे का असली सच

जनधन से जुड़े पूरे घटनाक्रम से गुजर जाने के बाद सरकार ने घोषणा की है कि बैंक में बिना आधार कार्ड के खाता नहीं खुलेगा और 50 हजार या उससे ज्यादा का लेनदेन करना हो तो भी आधार कार्ड चाहिए होगा। सत्ता में आने के तीन महीने में बिना पैसे के बैंक में खाता खुलवाने वाली सरकार ने अब खाता खुलवाने के लिए अपने तीन साल के कार्यकाल के पूरे होने
पर शर्तें लगा दी हैं। अब अगर आप ठन ठन गोपाल हैं तो बिना आधार कार्ड के बैंक के दरवाजे पर नहीं फटक सकते। तीन वर्ष के कार्यकाल में सरकार की योजना मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सीमम गवर्नेंस की थी।

ज्ञानेन्द्र शर्मा

नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार बनने के ठीक पहले तो कई और कई तरह के वादे किए थे लेकिन उनकी सरकार बनने और उनके प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ जाने के बाद का एक बड़ा वादा ये भी था कि उनका शासनकाल ऐसा होगा कि जिसमें मिनीमम गवर्नमेंट होगी और मैक्सीमम गवर्नेंस। यानी आम लोगों के बीच सरकार तंत्र की उपस्थिति कम से कम दिखेगी लेकिन उसका काम ज्यादा से ज्यादा दिखेगा और बोलेगा। लेकिन हुआ क्या? कुछ ज्वलंत मामलों पर जरा गौर करिए:
शपथ लेने के 3 माह के अंदर मोदी जी ने अपनी सरकार की बहु-प्रचारित जनधन योजना लागू की और बैंकों को निर्देश भेजा कि लोगों के जीरो बैलेंस पर भी खाते खोल दें। जल्दी ही 28 करोड़ से ज्यादा खाते जीरो बैलेंस पर यानी खाते में एक भी पैसा जमा न किए जाने पर भी खाते खोल दिए गए। प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर 15 अगस्त 2014 को बाकायदा इसका बखान भी किया। मकसद यह बताना था कि छोटे वर्गों के लोगों के लिए भी बैंकों के दरवाजे खोल दिए गए हैं और पैसा न भी हो तो भी बैंक में अपने नाम का खाता खुलवा सकते हैं और अपने को बैंक का खातेदार बता सकते हैं। बड़े दम्भ के साथ सरकार ने घोषणा की कि अब छोटी आय वर्ग के लोग भी बैंकिंग व्यवस्था में अपनी भूमिका निभाएंगे। लेकिन जब सरकार ने नोटबंदी की तो भंडाफोड़ हो गया क्योंकि रातोंरात इन खातों में मोटी रकम पहुंच गई। प्रधानमंत्री ने खुलेआम लोगों से कहा कि जो पैसा दूसरे लोगों ने उनके खातों में जमा करा दिया था, वे उस रकम पर कब्जा कर लें।
और अब? अब जनधन से जुड़े पूरे घटनाक्रम से गुजर जाने के बाद सरकार ने घोषणा की है कि बैंक में बिना आधार कार्ड के खाता नहीं खुलेगा और 50 हजार या उससे ज्यादा का लेनदेन करना हो तो भी आधार कार्ड चाहिए होगा। सत्ता में आने के तीन महीने में बिना पैसे के बैंक में खाता खुलवाने वाली सरकार ने अब खाता खुलवाने के लिए अपने तीन साल के कार्यकाल के पूरे होने पर शर्तें लगा दी हैं। अब अगर आप ठन ठन गोपाल हैं तो बिना आधार कार्ड के बैंक के दरवाजे पर नहीं फटक सकते। पहले आपको आधार कार्ड जमा करना होगा। तीन साल के कार्यकाल में सरकार की योजना मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सीमम गवर्नेंस की थी। और अब? अब तीन साल में यह पलटकर मैक्सीमम गवर्नमेंट और मिनीमम गवर्नेंस की हो गई है। यानी अब पूरा पलटा खाने के बाद सरकारी नीति हो गई है:- अधिकतम सरकार औेर न्यूनतम सरकारी तंत्र और प्रबंध। कितना मुश्किल है इस दुनिया में (वादे निभाने में) दिल लगाना!
आधार : जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने थे और गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने आधार कार्ड के बारे में क्या कहा था, यह जान लेना बहुत दिलचस्पी का विषय होगा। उन्होंने 26 सितम्बर 2013 को एक जनसभा में कहा कि आधार के नाम पर देश पर एक संकट लाया जा रहा है क्योंकि इससे घुसपैठ करके देश में घुसने वालों को लाभ मिलेगा, बाहरी लोग देश में घुस आएंगे। उन्होंने कहा कि इसके पीछे राजनीति है तभी अरबों-खरबों रुपए इस योजना पर उड़ा दिए गए। उन्होंने इस सभा में तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि मैं तीन साल से इसका विरोध कर रहा हूं और केन्द्र को पत्र लिख रहा हूं और गंभीर सवाल उठा रहा हूं। अब सुप्रीम कोर्ट से इस मामले पर सरकार को तगड़ी डांट पड़ी है। उन्होंने पूछा कि आधार कार्ड योजना से किसको लाभ मिला, इस पर कितना पैसा खर्च हुआ, देश की जनता जानना चाहती है। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री से देश को यह बताने को कहा कि क्या सभी विभाग और मंत्री इस योजना से सहमत थे, क्या अलग-अलग विभागों ने फाइलों पर विरोध नहीं दिखाया था? अब जब मोदी जी ने खुद ये योजना लागू की तो इनमें से किसी सवाल का जवाब नहीं दिया जा रहा है और न ही कोई सफाई दी जा रही है।
अब न केवल मोदी सरकार आधार योजना को पूरे जोर-शोर से देश पर लाद रही है बल्कि हगने-मूतने सब पर आधार को अनिवार्य बनाया जा रहा है। बैंक खाता खोलने पर, आयकर रिटर्न दाखिल करने पर, सरकार की किसी भी योजना का लाभ लेने पर, पैन कार्ड बनवाने पर और न जाने किस-किस पर आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया गया है। अब यह देश के लिए खतरा नहीं रहा क्योंकि इसे मनमोहन सिंह की नहीं नरेन्द्र मोदी की सरकार लागू कर रही है। अब न तो यह कोई ‘जड़ी बूटी’ है और न ही कोई गंभीर सवाल।
अब प्रधानमंत्री को यह बताने की जरूरत नहीं है कि आधार आखिर इतनी कड़ाई से हर क्षेत्र में अनिवार्य क्यों किया जा रहा है। अब घुसपैठ की वजह से इससे देश को कोई खतरा नहीं रहा क्योंकि सरकार बदल गई है। उनकी सरकार यह तक कह रही है कि जो लोग जानबूझकर आधार कार्ड नहीं बनवा रहे हैं, वे वास्तव में एक तरह से अपराध कर रहे हैं। उनकी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि यह वैसा ही अपराध है जैसा राष्ट्रगान के समय खड़ा न होना है। इस पर कोर्ट ने सरकारी वकील को टोका भी और कहा कि आप यह कतई नहीं कह सकते कि जिसने आधार कार्ड नहीं बनवाया है, वह अपराध कर रहा है।
आधार के बारे में अब भले ही नरेन्द्र मोदी पलटा खा गए हों पर देश के अर्थशास्त्री, विवेचक और चिंतक इसके प्रति पूरी तरह से आशंकित हैं और क्यों न हों? पिछली 3 मई को केन्द्रीय सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार किया कि आधार कार्ड धारकों का डाटा लीक हुआ है। याचिकाकर्ता की ओर से इस पर गंभीर सवाल उठाए गए थे। 27 अप्रैल को भी इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में बहस छिड़ी। जब सरकार की ओर से कहा गया कि पैन कार्ड को आधार से लिंक करने से करों की चोरी रुकेगी तो याचिकाकर्ताओं ने जवाब दिया कि आधार कार्ड को अनिवार्य बनाना गैेरकानूनी है और यह वास्तव में नागरिकों को ‘गुलाम’ बना देगा क्योंकि इससे वे हमेशा सरकार की ‘निगरानी’ में रहेंगे। उन्होंने कहा कि यह अनिवार्यता एक तरह से नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन होगा। वास्तव में आधार की अनिवार्यता का जबर्दस्त विरोध हो रहा है।
एक सवाल प्रमुखता से यह भी उठाया जा रहा है कि इससे लोगों की निजता खतरे में पड़ जाएगी क्योंकि आधार कार्ड के डाटा और फिंगर प्रिन्ट आदि के जरिए सरकारी तंत्र आम लोगों पर हमेशा निगाहें गड़ाए रहेगा और उसके हर कामकाज पर निगरानी रख सकेगा जो संविधान की मंशा के विपरीत है। आधार कार्ड का डाटा कई हाथों से गुजरेगा, इसलिए भी उसकी गोपनीयता भंग होने का खतरा निरंतर रूप से बना रहेगा। मामला फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन भी है। केन्द्रीय सरकार आधार कार्ड के जरिए भी अपने ही मिनीमम गवर्नमेंट और मैक्सीमम गवर्नेंंस के छतचढ़े नारे को खोखला साबित कर रही है। आधार कार्ड की अनिवार्यता हर कहीं सरकारी तंत्र की उपस्थिति दर्ज कराएगी। हर पग पर सरकार आपको नजर आएगी और सरकारी प्रबंध जैसा भी और जितना भी हो वह तो एक्सपोज होगा ही।
जीएसटी- आधार की तरह ही मोदी सरकार जीएसटी की जिद पर भी अड़ी है जबकि अन्य जगहों के अलावा उनके ही राज्य गुजरात के व्यापारी इसका भारी विरोध कर रहे हैं। भारत जैसे देश में जीएसटी को तब लागू करने की हड़बड़ी मची हुई है जबकि नियम बने नहीं हैं, सॉफ्टवेयर तैयार नहीं हैं, व्यापारी वर्ग तैयार नहीं है, उसके दिमाग में ढेरों भ्रान्तियां हैं जिनका खुद सरकार निराकरण नहीं कर पा रही हैं, इस काम में लगे विशेषज्ञ तैयार नहीं हैं, पूरा सिस्टम अभी तैयार नहीं हो पाया है, फार्म तैयार नहीं हैं, टैक्स रेट पूरी तरह फाइनल नहीं हैं तो भी सरकार ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है, उस पार्टी की सरकार ने जिसने विपक्ष में रहते हुए जीएसटी का खुला विरोध किया था। अब वित्तमंत्री कह रहे हैं कि तैयारी पूरी होने की बात वे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं और 30 जून की आधी रात को यह लागू होकर रहेगा। जब भाजपा विपक्ष में थी तो उस समय जनता का बड़ा समर्थन उसे मिला था पर भाजपा की सरकार और खासकर उसके एक पूरी तरह गैर-राजनीतिक वित्त मंत्री इस सबको नजरअंदाज करना चाहते हैं और किसी तरह अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करना चाहते हैं। जल्दी ही विभिन्न राज्यों को यह बात समझ में आ जाएगी कि जीएसटी के जरिए कैसे राज्यों की स्वायत्तता का अतिक्रमण हो रहा है और कर लगाने या न लगाने की शक्ति उनके हाथों से छीनी जा रही है।
फिर अंधाधुंध तरीके से और बिना किसी सार्थक तर्क-वितर्क के टैक्स की दरें तय कर दी गई हैं जो दुनिया में औसतन सबसे ज्यादा हैं। इसकी दरें कुछ प्रमुख देशों में इस प्रकार हैं: आस्ट्रेलिया में 10 प्रतिशत, कनाडा 15 प्रतिशत, चीन 17, जापान 8, मेक्सिको 16, म्यांमार 3, न्यूजीलैंड 15, फिलीपीन्स 12, दक्षिण अफ्रीका 14, थाईलैंड 7, अमेरिका 7़5 (अमेरिका में राज्यों को कुछ मामलों में अलग से वित्तीय निर्णय लेने की छूट है), वियतनाम 10, रूस 18, कोरिया 10, मलेशिया 6, सिंगापुर 7 प्रतिशत। कांग्रेस की सरकार अधिकतम 18 प्रतिशत दर पर जीएसटी लाना चाह रही थी जिसका तत्कालीन विरोधी दल यानि भाजपा ने 5 साल तक जमकर विरोध किया था और अब खुद उन्हीं की सरकार इन सबसे ऊपर इस टैक्स को 28 प्रतिशत तक ले जाना चाहती है।
जीएसटी वास्तव में राज्यों की वित्त व्यवस्था में केन्द्रीयकृत सरकारी हस्तक्षेप है। यह ‘अधिकतम’ सरकार की उपस्थिति की एक और ज्वलंत मिसाल है। अभी तक जो भी जानकारियां इसके बारे में आई हैं, उनसे देश के बुद्धिजीवियों तक में भ्रान्तियां फैली हुई हैं। एक आशंका यह व्यक्त की जा रही है कि जल्दबाजी में लागू की जा रही यह योजना नोटबंदी की तरह की फ्लॉप हो जाएगी।
पेट्रोल/डीजल : पेट्रोल और डीजल एक और क्षेत्र है जिसमें सरकार तंत्र की जबर्दस्त दखलंदाजी लागू हो गई है। सरकारी तेल कम्पनियों ने केन्द्रीय सरकार की सहमति से देश में एक अभूतपूर्व व्यवस्था लागू कर दी है जिसके तहत पेट्रोल और डीजल के दाम रोजाना के रोजाना तय होंगे। जब आप पेट्रोल पम्प पर पहुंचेंगे तो ही आपको पता लगेगा कि कितने रुपए में कितना लीटर पेट्रोल या डीजल आपको मिलना है। वैसे भी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के जमाने से इन मूल्यों में हर दूसरे-तीसरे दिन परिवर्तन होता रहा है लेकिन रोजाना परिवर्तन पहले कभी नहीं हुआ। कभी-कभी पेट्रोल पम्पों पर उस समय ज्यादा भीड़ हो जाती थी जब दाम में कमी की घोषणा होती थी लेकिन अब तो आपकी आंखों में पट्टी बांध दी गई है। आप पहले से अपना इंतजाम नहीं कर सकते। लॉटरी की तरह पेट्रोल और डीजल के दाम अब रोज खुला करेंगे। जल्दी ही रसोई गैस के मामले में यही योजना लागू कर दी जाएगी। सरकार आपकी जेब रोज टटोलेगी और खासकर तब तो टटोलेगी ही जब आप पेट्रोल पम्प पर अपना वाहन लेकर जाएंगे। यह मैक्सीमम सरकार का एक और नमूना है।
मंदसौर- मध्य प्रदेश के मंदसौर में जून महीने में मैक्सीमम गवर्नमेंट का एक घिनौना रूप उस समय सामने आ गया जब पुलिस ने छह किसानों को गोली से मार दिया। किसान अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे थे कि उन पर गोलियां बरसाई गईं। आम तौर पर प्रक्रिया यह होती है कि पुलिस गोली तभी चला सकती है जब कोई मजिस्ट्रेट उसे ऐसा करने का आदेश दे लेकिन मंदसौर में पुलिस बल ने सारे नियम कानून ताक पर रख दिए। विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष तोगड़िया तक ने इसे शर्मनाक कहा है।
पहले मप्र के गृह मंत्री यह कहते रहे कि किसान पुलिस की गोली से नहीं मरे पर अंतत: उन्हें सच स्वीकार करना पड़ा। अगर उस समय मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होती और भाजपा विपक्ष में होती तो क्या होता? भाजपा पूरे सूबे में बंद कर रही होती, आंदोलन पर आंदोलन खड़े कर रही होती, सरकार के इस्तीफे की मांग कर रही होती लेकिन अब जबकि वह सरकार में है तो गृह मंत्री तक से इस तानाशाहीपूर्ण पुलिस बल प्रयोग के लिए इस्तीफा नहीं मांगा गया। न्यायिक जांच की घोषणा जरूर की गई है लेकिन ऐसी जांचों के पूरा होने में कई साल लगते हैं और तब तक नर्मदा में बहुत पानी बह जाएगा। यह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अच्छी तरह जानते हैं।

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