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मुंबई में अस्पतालों ने नहीं दी जगह, रेबीज से 7 साल के मासूम की मौत

शहर के ट्रैफिक कॉन्स्टेबल संदीप सर्वे ने रेबीज की वजह से अपने सात साल के बेटे को खो दिया। 26 दिसंबर को एक आवारा कुत्ते के काटने के बाद संदीप ने बेटे को सारे वैक्सीन भी लगवाए थे, लेकिन इसके बावजूद शुक्रवार को उसकी मौत हो गई। सर्वे के लिए अस्पताल में बेटे को भर्ती कराने की कोशिशें नाकाम होना बुरे सपने जैसा साबित हुआ। गुरुवार रात 8:30 बजे से सात घंटे तक चार अस्पतालों में भटकने के बाद उन्हें इकलौते बेटे अर्नव के लिए बेड नहीं मिला।मुंबई में अस्पतालों ने नहीं दी जगह, रेबीज से 7 साल के मासूम की मौत

थक-हारकर संदीप ने मेन पुलिस कंट्रोल रूम फोन किया और डीसीपी रश्मि कारांडिकर की मदद से उन्हें बेटे के लिए शुक्रवार करीब 3:30 बजे अगरपाड़ा के नायर अस्पताल में जगह मिली। वहां आधे घंटे बाद ही बच्चे को मृत घोषित कर दिया गया। 

डॉक्टरों और अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे सर्वे ने कहा, ‘पहली बार मुझे एहसास हुआ कि आम आदमी के लिए जिंदगी कितनी मुश्किल है। मेरा कीमती वक्त जाया हुआ क्योंकि कोई डॉक्टर रेबीज नहीं पहचान सका और सबने अपने हिसाब से दवाएं दे दीं। मुझे तकलीफ है कि नायर और कस्तूरबा जैसे सरकारी अस्पतालों में इसका इलाज नहीं हो सका और उससे भी पहले किसी ने अर्नव को भर्ती तक नहीं किया।’ 

रेबीज बहुत खतरनाक और जानलेवा बीमारी है, दुनिया में केवल छह ऐसे मामले दर्ज हुए हैं जहां लोग रेबीज होने के बाद जिंदा बच सके हैं। यहां तक कि नायर अस्पताल ने वायरस के संक्रमण के डर से अर्नव का पोस्टमॉर्टम भी नहीं किया। एक सीनियर डॉक्टर ने कहा कि जिस पीआईसीयू में अर्नव को रखा गया था, उसमें बाकी मरीजों को जगह देने के लिए उसकी सफाई करवाई गई है। 

ठाणे पुलिस स्कूल में पढ़ने वाला अर्नव अपने दादा के घर गया था जहां उसे आवारा कुत्ते ने चेहरे और शरीर पर काट लिया था। अस्पताल में भर्ती होने और इलाज के बाद वह फिर से स्कूल जाने लगा था लेकिन बाद में आए बुखार के बाद उसकी तबियत बिगड़ती चली गई। डॉक्टर भी रेबीज पहचान नहीं सके। 

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