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मेथेनॉल मिलाकर एलपीजी बेचने की तैयारी, 100 रुपये कम होगी सिलिंडर की कीमत

नई दिल्ली : एलपीजी सब्सिडी में निकट भविष्य में 30 प्रतिशत की कमी करने की कोशिश में सरकार जल्द मेथेनॉल मिली हुई एलपीजी पेश करेगी। अनुमान है कि ऐसा करने से एलपीजी के एक सिलिंडर की कॉस्ट 100 रुपये घट जाएगी। सरकार इस बीच कोयले से मेथेन के उत्पादन पर जोर दे रही है। सरकार ने मेथेन उत्पादन के लिए कुछ खास कोयला खदानें अलोकेट की हैं। इससे पहले नीति आयोग ने देश के लिए एक मेथेनॉल इकॉनमी का रोडमैप पेश किया था जिसमें ऑटोमोटिव और हाउसहोल्ड सेक्टर, दोनों पर जोर था। इसका मकसद भारत के बढ़ते फ्यूल इंपोर्ट बिल को कम करना है। एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने ईटी को बताया कि नीति आयोग की निगरानी में इस पायलट प्रॉजेक्ट के तहत 20 प्रतिशत मेथेनॉल को एलपीजी में मिलाया जाएगा, जैसा कि अन्य देशों में किया गया है। इस संबंध में निर्णय हाल में नीति आयोग और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के बीच मीटिंग में किया गया था। अभी सभी एलपीजी कंज्यूमर्स को मार्केट प्राइस पर इसे खरीदना होता है। हालांकि सरकार प्रति परिवार हर साल 14.2 किग्रा के 12 सिलिंडरों पर सब्सिडी देती है। सब्सिडी की यह रकम सीधे यूजर के बैंक खाते में जाती है। सब्सिडी की यह रकम ऐवरेज इंटरनैशनल बेंचमार्क एलपीजी रेट और फॉरेन एक्सचेंज रेट में बदलाव के मुताबिक बदलती रहती है। इंटरनेशनल रेट्स चढ़ने पर सरकार ज्यादा सब्सिडी देती है। अगस्त में प्रति सिलिंडर सब्सिडी 291.48 रुपये थी। जुलाई में यह 257.74 रुपये थी। भारत में एलपीजी का उपभोग हर महीने करीब 20 लाख टन का है। यह पिछले 56 महीनों से लगातार बढ़ रहा है। देश में इसकी डिमांड के आधे से ज्यादा हिस्से का इंतजाम आयात के जरिए किया जाता है। नीति आयोग के मेथेनॉल इकॉनमी रोडमैप के अनुसार, देश में अगर ट्रांसपोर्टेशन और कुकिंग में 15 प्रतिशत ब्लेंडेड फ्यूल का भी उपयोग होने लगे तो साल 2030 तक क्रूड इंपोर्ट में 100 अरब डॉलर सालाना की कमी आ सकती है। योजना यह है कि आसानी से मिलने वाले कम क्वॉलिटी के कोयले और अन्य जैव संसाधनों से मेथेनॉल बनाया जाए। मेथेनॉल की सिंथेटिक मैन्युफैक्चरिंग पहले से चल ही रही है। कोयले से उत्पादन करने पर आने वाले दिनों में मेथेनॉल की बढ़ती मांग पूरी की जा सकेगी। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग कोयले से मेथेनॉल के कमर्शियल प्रॉडक्शन के लिए पुणे, हैदराबाद और त्रिची में 100 करोड़ रुपये से शोध एवं अनुसंधान परियोजनाएं चला रहा है। इसके अलावा वेस्ट बंगाल और झारखंड में मेथेनॉल के कमर्शियल प्रॉडक्शन के लिए पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है। दोनों राज्य सरकारों ने इस काम के लिए एक कोयला खदान आवंटित की है। पायलट प्रॉजेक्ट्स के सफल होने पर सरकार कोयले से मेथेनॉल का कमर्शल प्रॉडक्शन शुरू करेगी।

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