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मोदी-नीतीश की टक्कर, राह में हैं कई कांटे

2014_11$largeimg213_Nov_2014_171709333एजेंसी/ नीतीश कुमार 2019 के चुनाव में एंटी-बीजेपी खेमे का राष्ट्रीय चेहरा बनने की कोशिश कर रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय योजनाओं से बड़े सियासी खिलाड़ियों पर भी असर पड़ सकता है। पिछले दिनों पीएम नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र बनारस में नीतीश कुमार को उनके सपॉर्टर्स ने एक तलवार भेंट की थी। नीतीश ने उसे लौटा दिया। उन्होंने कहा, ‘मुझे कलम दीजिए। मुझे इसी की जरूरत है।’ जेडीयू में नीतीश के एक पुराने सहयोगी ने कहा कि यह बयान वाराणसी के सांसद के बयानों के मुकाबले ज्यादा सुलझा हुआ और विनम्रता से भरा हुआ था। नीतीश के प्रशंसकों का कहना है कि वह बयान इस बड़े संदेश का हिस्सा है कि 2019 के चुनाव में मोदी को चुनौती देने के लिए ऐंटी-बीजेपी विपक्ष की ओर से बिहार के सीएम ही उपयुक्त नेता हैं।

हालांकि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद बीजेपी विरोधी विपक्ष का गणित बदल गया है। वेस्ट बंगाल में बड़ी जीत के बाद ममता बनर्जी की ताकत बढ़ी है, तो उधर जयललिता का सिक्का ऐसा चला कि तमिलनाडु ने सरकारें बदलने की रवायत को इस बार के लिए स्थगित कर दिया। फिर भी इस बीच नीतीश इकलौते ऐसे प्रमुख नेता दिख रहे हैं, जो विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री के कैंडिडेट के रूप में कैंपेन चला रहे हैं। हालांकि यह नीतीश के लिए अब तक का सबसे मुश्किल अभियान साबित हो सकता है।

इस अभियान का एक अहम पहलू बिहार की छवि से जुड़ा है। बिहार में सुशासन नीतीश का सबसे मजबूत चुनावी कार्ड रहा है। हालांकि पिछले कुछ समय में राज्य में क्राइम के कुछ हाई-प्रोफाइल मामले उछले हैं। इससे बीजेपी को बिहार में ‘जंगलराज’ का नारा फिर लगाने का मौका मिल गया है। जेडीयू के नेताओं ने आंकड़े दिखाए हैं कि अपराध के मामले में देश के टॉप 10 राज्यों में बिहार नहीं है, लेकिन इमेज की अपनी अलग अहमियत है। अपने नैशनल कैंपेन में नीतीश को इस मोर्चे पर सवालों के जवाब देने होंगे। अगर वह इसे मैनेज कर लें तो भी उनके सामने दूसरी कई चुनौतियां हैं। इस कैंपेन में नीतीश को उन लोगों से भी कड़ी चुनौती मिल सकती है, जिनकी जरूरत उन्हें दोस्त के रूप में बहुत ज्यादा है।

अहम पहलू

1. 2017 में होने वाला यूपी असेंबली इलेक्शन नीतीश की राष्ट्रीय स्तर की योजनाओं का बड़ा इम्तिहान होगा।
2. यूपी चुनाव का नतीजा चाहे जो हो, नेहरू-गांधी कुनबा और मुलायम सिंह यादव का परिवार नीतीश की राह मुश्किल कर देगा।
3. नीतीश को सपॉर्ट करने में लालू के इरादों का गणित बेहद जटिल साबित हो सकता है।
4. केजरीवाल किसी भी नेता के राष्ट्रीय सपनों को पलीता लगाने का दम रखते हैं।

शराब, जाति और भूगोल
नीतीश ने अभी अपने नैशनल कैंपेन का फोकस यूपी पर रखा है, जहां अगले साल चुनाव होना है। जातियों के चुनावी गणित के लिहाज से भी यह बिहार जितना ही अहम राज्य है, जहां नीतीश जांच-परखे प्रयोगों को आजमा सकते हैं। वाराणसी और लखनऊ में हाल में नीतीश ने रैलियां की हैं। जेडीयू और दूसरे दलों के नेताओं का कहना है कि इनमें नीतीश ने शराबबंदी के फायदों पर जोर दिया। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस विवादित पॉलिसी पर बिहार में नीतीश को काफी महिलाओं का सपॉर्ट मिला है। जेडीयू के लोगों का कहना है कि यूपी के लोग भी इस आइडिया को पसंद करेंगे। जेडीयू के एक सांसद ने कहा, ‘हम विकास के बिहार मॉडल को दूसरी जगहों पर भी पेश करेंगे।’ हालांकि यूपी में एसपी नेताओं ने नीतीश पर आरोप लगाया है कि वह राज्य सरकार के खिलाफ बातें कर ‘सांप्रदायिक ताकतों को मजबूत करने की कोशिश’ कर रहे हैं। एसपी नेता रामगोपाल यादव ने कहा, ‘नीतीश को बिहार का मैनडेट मिला है। उन्हें बिहार में शासन पर ध्यान देना चाहिए। वह छोटे प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।’

नीतीश से एसपी की कुछ और शिकायतें भी हैं। मुलायम सिंह यादव के करीबी एक नेता ने कहा कि लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश को स्वीकार करने के लिए समझाने में एसपी अध्यक्ष ने रोल निभाया था। उन्होंने कहा, ‘लेकिन नीतीश जब दिल्ली आए और नेताजी से न मिलकर उन्होंने राहुल गांधी से मुलाकात की तो इससे नेताजी नाराज हो गए।’ जेडीयू नेताओं का कहना है कि झारखंड के साथ यूपी पर फोकस करते हुए नीतीश बिहार से बाहर अपनी अपील बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं और शराबबंदी पर जोर देने से ऐसा वोटर साथ आ सकता है, जो जातियों की गोलबंदी के पार जाकर फायदा देगा।

एक प्रमुख जेडीयू नेता ने कहा, ‘नीतीश से एसपी की नाराजगी हमारे फायदे की बात है। इससे नीतीश के उठाए गए मुद्दों पर चर्चा होगी।’ हालांकि सवाल यह है कि जातियों का गणित क्या भूगोल पर भारी पड़ेगा? जेडीयू अगले साल यूपी चुनाव लड़ने की तैयारी में है। वह अजित सिंह के आरएलडी और पीस पार्टी सहित कई दलों से बातचीत कर रही है। नीतीश कुर्मियों के नए चेहरे के रूप में खुद को प्रॉजेक्ट कर सकते हैं, जो यूपी में यादवों के बाद सबसे बड़ी पिछड़ी जाति है। दूसरी गैर यादव जातियों को भी गोलबंद किया जाएगा। गोंडा जैसे कुर्मी बहुल इलाकों में रैलियां करने की योजना है।

हालांकि सभी दलों के नेता यूपी में नीतीश के कुर्मी कार्ड पर शक जता रहे हैं। यूपी कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि जिस तरह मुलायम सिंह यादव बिहार में यादवों के नेता नहीं बन सकते, उसी तरह यूपी में नीतीश कुर्मियों के नेता नहीं बन सकते। एसपी के एक प्रमुख नेता ने यही बात इस तरह कही कि बेनी प्रसाद वर्मा बिहार में कुर्मियों के नेता नहीं बन सकते और यही बात यूपी में नीतीश पर लागू होती है। उन्होंने कहा कि रैलियों में लोगों के आने का यूपी के बेहद जटिल चुनावी समीकरण में कोई खास मतलब नहीं है। बिहार में नीतीश के हाथों परास्त हुए बीजेपी के सुशील मोदी ने कहा, ‘जातिगत राजनीति करने वाले नेता अपने राज्यों तक सीमित रहते हैं।’ हालांकि एक आवाज इन सबसे अलग भी है। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने इससे पहले ईटी से कहा था कि बीजेपी को चुनौती देने वाले नेताओं में नीतीश नंबर वन हैं।

बड़ा फैक्टर
नीतीश के लिए सबसे जटिल सवाल संभवत: राहुल गांधी के रूप में है। नीतीश और राहुल के रिश्ते ठीक हैं, लेकिन कांग्रेस कभी भी नीतीश को राष्ट्रीय नेता के रूप में पसंद नहीं करेगी। नीतीश के लिए काम कर चुके प्रशांत किशोर अब भले ही कांग्रेस के लिए काम कर रहे हों, लेकिन इस कॉमन फैक्टर से कांग्रेस का मूड नहीं बदलने वाला है। जेडीयू नेताओं का कहना है कि वे बिहार में कांग्रेस से गठबंधन का दायरा बढ़ाना चाहते हैं। दूसरी ओर यूपी कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि नीतीश का गणित यह है कि अगर यूपी में कांग्रेस-जेडीयू गठबंधन का प्रदर्शन अच्छा रहे तो वह महिलाओं और ओबीसी वोट जुटाने का श्रेय ले लेंगे और अगर मामला उल्टा पड़ गया तो दोष दूसरे पार्टनर पर डाल देंगे। कांग्रेस के कुछ नेता बीजेपी की गोद में नीतीश के लंबे समय तक बैठने की याद भी दिलाते रहते हैं। कांग्रेस के एक महासचिव ने कहा, ‘इन दिनों तमाम नेता खुद को प्रॉजेक्ट कर रहे हैं। नीतीश भी कर रहे हैं। कांग्रेस नैशनल पार्टी है। यह जेडीयू की बी टीम क्यों बनेगी?’

लालू के इरादे
नैशनल कैंपेन में नीतीश को लालू प्रसाद का सपॉर्ट मिला है। लालू के बेटे तेजस्वी ने भी नीतीश का समर्थन किया है। नीतीश अगर नैशनल रोल में जाएं तो बिहार में लालू फैमिली को काफी मैदान मिल जाएगा। हालांकि आरजेडी के एक नेता ने कहा कि नीतीश को सपॉर्ट कर लालू कांग्रेस से भी सवाल कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘लालू को पता है कि 2019 के चुनाव में वह एक अहम प्लेयर होंगे। वह कांग्रेस से सवाल कर रहे हैं कि बताओ कौन होगा लीडिंग रोल में?’ फिर मुहम्मद तस्लीमुद्दीन और रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे लोग आरजेडी के भीतर से नीतीश के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। बिहार कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘दिलचस्प है कि इस पार्टी के सीनियर नेता बॉस से उलट बयान दे रहे हैं।’

AK 2019, LK 2012
अरविंद केजरीवाल किसी भी वक्त नीतीश का खेल खराब कर सकते हैं। जेडीयू का मानना है कि अगर पंजाब में केजरीवाल ने एनडीए और कांग्रेस को धूल चटा दी तो नैशनल लेवल पर विपक्ष का बड़ा नेता बनने का उनका दावा मजबूत हो जाएगा। जेडीयू के एक सीनियर नेता ने कहा, ‘पंजाब में केजरीवाल का हारना जरूरी है।’ नीतीश और केजरीवाल के सियासी रिश्ते जटिल हैं। केजरीवाल ने बिहार कैंपेन में AAP के वॉलंटिअर ऑफर किए थे। AAP के एक नेता ने कहा, ‘हमारे वॉलंटिअर्स ने के.सी. त्यागी की ओर से गाजियाबाद में दी गई जगह में काम किया था।’ AAP चीफ ने बीजेपी के खिलाफ नीतीश का समर्थन ट्विटर पर किया था।

हालांकि चुनावी नतीजे और निजी महत्वाकांक्षाएं किसी भी रिश्ते को बदल सकती हैं। नीतीश ने अपने नैशनल गेम में कदम बढ़ाया है तो 2012 में लालकृष्ण आडवाणी की कही गई बात याद रखना जरूरी है। आडवाणी ने कहा था, ‘2014 में कोई गैर कांग्रेसी, गैर भाजपाई नेता पीएम बन सकता है।’ कई लोगों के मुताबिक आडवाणी तब नीतीश का जिक्र कर रहे थे। हालांकि उस कॉमेंट ने बीजेपी में मोदी समर्थकों को एकजुट कर दिया। उन्होंने दिन-रात मेहनत कर मोदी को बीजेपी का पीएम कैंडिडेट बनवाया और फिर एक इतिहास बना। नीतीश की 2019 की योजनाओं के लिए 2012 के उन लम्हों में सबक छिपा है।

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