उत्तर प्रदेशराजनीति

यूपी : भाजपा के गढ में उवैसी की धमक

मेरठ में वार्ड 80 से एआईएम के जुबैर अंसारी जीते

के पी त्रिपाठी/मेरठ

मेरठ और पश्चिम उप्र को भाजपा का गढ माना जाता है लेकिन भाजपा के इस गढ में असुद्दीन उवैसी ने अपनी धमक दर्ज करा दी है। इसकी शुरूआत भले ही निकाय चुनाव से हुई लेकिन उनकी पार्टी का मेरठ में खाता तो खुल ही गया। महानगर में निकाय चुनाव के वार्ड 80 से एआईएम से पार्षद पद के उम्मीदवार जुबैर अंसारी ने एक हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज की है।

पश्चिम उप्र पर है उवैसी की नजर 

असुद्दीन उवैसी की नजर पश्चिम उप्र पर काफी पहले से हैं लेकिन उन्हें यहां पर न तो किसी राजनैतिक साथी का सहारा मिला और न ही उन्हें कोई मजबूत उम्मीदवार जो उन्हें चुनाव में जीत हासिल करवा सके। उवैसी ने इसकी शुरूआत 2012 के विधानसभा से की थी। उस दौरान उवैसी ने पूरे पश्चिम उप्र से करीब 20 उम्मीदवारों को अपनी पार्टी से टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा था। जिन जिलों से उनके उम्मीदवार चुनाव लड रहे थे उनमें मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, देवबंद आदि प्रमुख थे। लेकिन उस दौरान उनका खाता भी नहीं खुला और प्रत्यशी अपनी जमानत भी जब्त करवा बैठे थे। इसके बाद से उवैसी समय-समय पर पश्चिम उप्र का दौरा कर यहां पर रैलियां करते रहे। निकाय चुनाव के दौरान भी वे मेरठ में आए थे और उन्होंने एक रैली को सम्बोधित किया था। निकाय चुनाव के छोटे से पार्षद के रूप में ही सही लेकिन उनका खाता तो पश्चिम उप्र में खुला ही। जिन वार्ड से उनकी पार्टी का पार्षद चुनाव जीते हैं, वह मेरठ का श्याम नगर का इलाका है और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है। उवैसी की पार्टी का चुनाव जीतना भाजपा के लिए तो चिंता का विषय है ही उसके साथ ही बसपा और समाजवादी पार्टी के लिए सर्वाधिक नुकसान दायक होगा जो मुस्लिम वोटों पर अपना पारंपरिक हक जताते हैं। जिस वार्ड से जुबैर अंसारी ने जीत दर्ज की है यह वार्ड मुस्लिम बाहुल्य और दलित बाहुल्य बसपा समर्थित माना जाता है। ऐसे में यह बसपा के लिए भी चौकाने वाली बात है।

राजनैतिक नब्ज के जानकार उवैसी

 उवैसी का बार-बार पश्चिम उप्र आना और यहां पर राजनैतिक रूप से रैलिया करना कहीं न कहीं यह तो दर्शाता ही है कि उवैसी राजनैतिक नब्ज को अच्छी तरह से पकडना जानते हैं। देर से ही सही लेकिन उनकी पार्टी की जीत का खाता पार्षद पद से खुलना यह भी दर्शाता है कि आने वाले दिनों में इस क्षेत्र के मुस्लिम वोटों के वे बडे कद्रदान के रूप में उभरे। 2019 अब ज्यादा दूर नहीं है।

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