हिंदू धर्म में लड़कियों का विवाह कराने को एक पुण्य कार्य माना जाता है, इसीलिए आज भी समाज में कई लोग अपने खर्चे पर गरीब लड़के-लड़कियों की शादियां करवाते हैं। उनके इस पुण्य कार्य के लिए समाज में उन्हें सम्मान भी मिलता है। लेकिन इसी समाज में एक महिला ऐसी भी है जो लड़कियों की शादी कराने का नहीं, उलटे शादी तुड़वाने का काम करती हैं। लेकिन बावजूद इसके लोग उन्हें खूब पसंद करते हैं और उनकी सराहना करते हैं। उनकी इस खूबी के कारण लड़कियां उन्हें ‘शादी तुड़वाने वाली दीदी’ कहने लगी हैं।
दरअसल, नेहा शालिनी दुआ नाम की यह महिला पश्चिमी दिल्ली के लगभग पंद्रह स्कूलों में सेक्स एजूकेशन देने का काम करती हैं। वे छात्राओं को बताती हैं कि उनके इस उम्र में आ रहे शारीरिक बदलाव और मासिक धर्म एक सहज और प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसके लिए बच्चियों को घबराने और शर्माने की कोई जरूरत नहीं है। वे यह भी समझाती हैं कि इन स्थितियों में उन्हें कैसे खुद की देखभाल करनी चाहिए। इसके साथ-साथ वे बच्चियों को यह भी समझाती हैं कि उनका विवाह किसी भी कीमत पर अठारह साल की उम्र से कम में नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर किस तरह खुद उनका और उनके आने वाले परिवार का विकास बाधित हो जाता है। उनकी बातों से प्रेरित होकर लड़कियों में जल्द शादी न करने और शादी से पहले खुद के बल पर कुछ करने का जज्बा पैदा होता है।
नेहा ने अमर उजाला को बताया कि जब वे बच्चियों को इन चीजों के बारे में बताती हैं तो वे इन्हें बड़े ध्यान से सुनती हैं। और जब भी खुद उनकी या उनके परिवार में किसी बच्ची की कम उम्र में शादी होने लगती है, तो वे उन्हें इसकी जानकारी देती हैं। इसके बाद वे उस शादी को तुड़वाने की हर संभव कोशिश करती हैं जिसमें ज्यादातर मामलों में उन्हें सफलता मिल जाती है।
समाज का दबाव
नेहा फाउंडेशन नाम से एक स्वयंसेवी संस्था चला रही नेहा बताती हैं कि शादियां रोकने के लिए ज्यादातर वे समझाने की ही कोशिश करती हैं। ज्यादातर परिवार बेहतर काउंसलिंग के बाद मान जाते हैं, लेकिन कई बार उन्हें यह भी लगता है कि वे उनके व्यक्तिगत और सामाजिक मामले में दखल दे रही हैं। ऐसे में उन्हें खूब विरोध का सामना भी करना पड़ता है। कभी-कभी उन्हें पुलिस की मदद भी लेनी पड़ती है, लेकिन किसी भी कीमत पर वे कम उम्र की लड़कियों की शादी नहीं होने देतीं। हालांकि नेहा के मुताबिक अब आसपास के लोगों का साथ भी उन्हें मिलने लगा है और उनका काम कुछ आसान होने लगा है।
लड़के के साथ दिखने पर होती है समस्या
उन्होंने बताया कि यूपी, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली आने वाले ज्यादातर लोगों के सामाजिक संस्कार अभी भी पुरानी परंपराओं से जुड़े हुए हैं। उन्हें लगता है कि पंद्रह-सोलह साल की उम्र में लड़की की शादी कर दी जानी चाहिए। उनके बच्चे दिल्ली के बदलते माहौल में पल रहे हैं जहां छात्र-छात्राओं का एक दूसरे के साथ दोस्ती करना सामान्य बात है। लेकिन पुरानी सोच से जुड़े परिवार इसे लड़की के ‘बिगड़ जाने’ की तरह से लेते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें लड़कियों की शादी करना ही लड़कियों को ‘गलत राह’ पर जाने से बचाने का सबसे आसान और सुरक्षित उपाय लगता है। नेहा के मुताबिक मां-बाप को काफी समझाने और लड़कियों की क्षमता बताने के बाद उन्हें उनकी शादी रुकवाने में सफलता मिल जाती है।
शादी तोड़ना ही नहीं, आगे बढ़ाना भी है काम
नेहा ने बताया कि लड़कियों की शादियां रोकने के बाद उनका असली चैलेंज सामने आता है। लड़कियों को सशक्त किये बिना उनका लक्ष्य अधूरा रह जाता है। उनकी कोशिश होती है कि वे उन लड़कियों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाएं। इससे उनके परिवार को लड़की की अहमियत समझ में आने लगती है और विरोध कमजोर पड़ जाता है। इसके लिए वे छात्राओं-महिलाओं को लोन दिलवाकर उन्हें खुद का कोई काम करने के लिए प्रेरित करती हैं। उनका कहना है कि उन्हें ऐसे ज्यादातर मामलों में सफलता मिल जाती है। नेहा ने बताया कि यह ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ मिशन में मेरी अपने तरीके की सेवा है।