रोहतांग दर्रे में प्रतिबंध से ठंडे हो गए कई घरों के चूल्हे
दर्रा के आस-पास इलाकों में दशकों से अपने परिवार की आजीविका चलाने वाली इन महिलाओं ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) से गुहार लगाई है कि उन्हें इस रोजगार को दोबारा शुरू करने की अनुमति दी जाए क्योंकि उनके काम से किसी तरह का पर्यावरण प्रदूषण नहीं हो रहा है।
जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। पंचांग, कोठी, सोलांग, कुलांग, रूअर गांव में रहने वाली इन महिलाओं की ओर से प्रसार महिला मंडल ने याचिका दाखिल की है। याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट भक्ति परसीजा सेठी ने ग्रीन ट्रिब्युनल में इस मामले को उठाया है।
एडवोकेट सेठी का कहना है कि ये महिलाएं पीढ़ियों से आने वाले पर्यटकों को किराये पर सामान मुहैया कराकर अपनी आजीविका चलाती हैं। इससे किसी तरह का पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता है। मसलन, इन महिलाओं के पास आय का अन्य कोई स्रोत नहीं है। ऐसे में सभी तरह की गतिविधि पर प्रतिबंध से इनकी आजीविका को खतरा पैदा हो गया है।
अटका है अभी तक पुनर्वास- वहीं अभी तक इन महिलाओं को न तो पुनर्वास योजना का लाभ मिला है न ही सरकार की ओर से कोई मदद की गई है। जबकि 16 जुलाई को एनजीटी ने अपने आदेश में कहा था कि वशिष्ठ से लेकर रोहतांग दर्रा के बीच प्रतिबंध आदेश से प्रभावित हुए सभी स्थानीय लोगों के लिये सरकार राहत और पुनर्वास कार्यक्रम की योजना तैयार कर पेश करे।
इस संबंध में कुल्लू डिप्टी कमिश्नर ने 6 अगस्त को एक पत्र भी जारी किया था। इसके बाद भी अभी तक इसपर कोई काम नहीं हो सका है।
एनजीटी ने 6 जुलाई 2015 को वशिष्ठ से लेकर रोहतांग दर्रा तक पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिये सभी तरह की व्यावसायिक गतिविधियों और अन्य गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद से स्थानीय पर्यटन उद्यम से जुड़े लोगों की आजीविका ठप है।