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विराट कोहली और उसकी सेना के लिए स्याह साबित हो सकता है यह अक्टूबर

पहली बात साफ हो जानी चाहिए कि 2013 की स्पॉट फिक्सिंग पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भारतीय क्रिकेट बोर्ड की विश्व क्रिकेट में वह जगह नहीं रही, जो पहले थी. सीधे शब्दों में कहें तो बीसीसीआई कभी सब का बाप होता था, लेकिन आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह यतीम की तरह खड़ा दिखाई देता है.विराट कोहली और उसकी सेना के लिए स्याह साबित हो सकता है यह अक्टूबर

ऐसे में अगर आने वाले दिनों में इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) भारतीय क्रिकेटरों के खिलाफ किसी कड़ी कार्रवाई का फैसला करती है तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए. आखिर यह कड़ी कार्रवाई क्यों हो सकती है! इसके लिए चंद महीने पीछे के इतिहास में झांकना होगा.

आईसीसी के कड़े आदेश

इस साल चार जुलाई को वर्ल्ड एंडी डोपिंग एजेंसी (वाडा) ने आईसीसी को कड़ा पत्र लिखा कि आईसीसी चार अक्तूबर 2018 तक सुनिश्चित करे कि उसके सदस्य वाडा के सभी नियमों का सम्मान करते हैं. भारतीय क्रिकेटरों को छोड़ कर बाकी देशों के खिलाड़ियों को वाडा के नियमों को लेकर कोई दिक्कत नहीं हैं. असल में बीसीसीआई ही आईसीसी के लिए वाडा नियमों को लेकर गले की फांस बना हुआ है.

लिहाजा, आईसीसी ने 5 जुलाई को यह पत्र बीसीसीआई की तरफ सरका दिया और उम्मीद जाहिर करते हुए लिखा कि बोर्ड वाडा के नियमों के मुताबिक भारत की नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी से साथ जल्द ही समन्वय कायम करेगा. कुछ समय पहले तक अपने नियमों को भारत के लिए लचीला बनाने की आरोपी आईसीसी ने इस पत्र में चेताया भी कि अगर भारतीय क्रिकेट बोर्ड अब भी अड़ा रहा तो उसके पास अक्तूबर में काउंसिल के बोर्ड की मीटिंग में इस मामले को उठाने के सिवा कोई चारा नहीं है. आईसीसी अब खुद फंस गया है, क्योंकि अगर वाडा ने आईसीसी को बीसीसीआई के कारण एंटी डोपिंग कोड न मानने वाली संस्था की लिस्ट में डाल दिया तो उसके लिए बहुत बड़ी मुश्किल होने वाली है. पत्र की भाषा से साफ है कि आईसीसी बीसीसीआई की लगातार ना से तंग आ गया है और उसके पास जरूरत पड़ने पर भारतीय बोर्ड को झटका देने के सिवाय कोई चारा नहीं है.

इस सारे प्रकरण का शर्मनाक पहलू यह है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से बीसीसीआई को चलाने के  लिए नियुक्त प्रशासकों की कमेटी भी इस समस्या को लेकर सरकारी बाबूओं की तरह पेश आ रही है. बीसीसीआई के अधिकारियों के अनुसार प्रशासक कमेटी के साथ इस मुद्दे का उठाया गया था और गहन विचार करने के बाद तय किया गया कि बोर्ड 4 अक्तूबर की डेडलाइन पर कुछ नहीं करेगा. आईसीसी वाडा के नियमों को मानती है और वाडा सभी देशों की नेशनल डोपिंग एजेंसी की मान्यता को स्वीकार करती है. लेकिन बीसीसीआई है कि तीनों को ठेंगा दिखाए हुए है.

बीसीसीआई को वाडा के वेयरअबाउट क्लॉज से दिक्कत

सच यह है क्रिकेट में डोपिंग की समस्या बाकी खेलों की तुलना न के बराबर है. बीसीसीआई आईपीएल सहित अपने सभी घरेलू टूर्नामेंटों में डोपिंग सैंपलों की जांच स्वीडन की नामी कंपनी आईटीडीएम से करवाता है. अगर डोपिंग को लेकर क्रिकेटर पाक-साफ हैं तो बीसीसीआई को वाडा और नाडा के नियमों को स्वीकार करने में परहेज नहीं करना चाहिए. बीसीसीआई के करारशुदा क्रिकेटरों को वाडा के वेयरअबाउट क्लॉज को लेकर सबसे बड़ी दिक्कत है. इसके तहत वाडा के जांचकर्ता किसी भी समय खिलाड़ी का सैंपल ले सकते हैं और इसके लिए उक्त खिलाड़ी को बनाता होता है कि वह फलां समय पर कहां मिलेगा.

बोर्ड और क्रिकेटरों का तर्क है कि इससे खिलाड़ियों की सुरक्षा को खतरा हो सकता है. लेकिन सोशल मीडिया के दौर में क्रिकेटर ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपने चाहने वालों को लगातार अपने बारे में जानकारियां मुहैया करवा रहे हैं कि वह कहां खा रहे हैं या फिर किधर घूम रहे हैं!

असल में नाडा को स्वीकार करने का मतलब है कि बोर्ड को सरकारी नियम मानने शुरू करने पड़ेंगे जो वह नहीं चाहता. पहले ही सुप्रीम कोर्ट की मार झेल रही बीसीसीआई इस स्थिति में नहीं है कि वह खुद को एक नेशनल फेडरेशन मान ले और फिर उसके हर खाता, फैसला और काम सरकार की जांच के दायरे में आ जाए.

लेकिन देखना रोचक है कि बीसीसीआई और उसके क्रिकेटर कितनी देर तक इस सब से बचते हैं क्योंकि केंद्रीय सूचना आयोग ने भी साफ कर दिया है कि बीसीसीआई सूचना के अधिकार के दायरे में आती है. आरटीआई लागू होने के बाद सरकारी नियमों की लंबे समय तक अनदेखी बीसीसीआई के लिए संभव नहीं होगी.

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