अद्धयात्म

शनि-मंगल के इस योग ने बढ़ाया भूकंप का खतरा, हो सकती है भयंकर तबाही

एजेन्सी/ bhagya00-1448429719जयपुर। पृथ्वी पर भूकंप क्यों आते हैं? विज्ञान की हर शाखा का इस संबंध में अलग मत है। मुख्य रूप से भूगर्भीय हलचल को भूकंप का कारण माना जाता है। वर्ष 2016 में कुछ दिनों के अंतराल के बाद लगातार भूकंप के झटके आ रहे हैं। 

ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की चाल के आधार पर भूकंप का आकलन किया जाता है। ज्योतिष के विद्वानों के अनुसार, तिथि व ग्रहों से बनने वाले योग यह संकेत देते हैं कि भूकंप कब आ सकता है। भूकंप का मुख्य कारण भूगर्भीय हलचल है लेकिन भूगर्भीय पदार्थों पर ग्रहों की किरणों का प्रभाव भी होता है। कालांतर में यह भूकंप के रूप सामने आ सकता है।

– वर्ष 2016 में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत में कई बार भूकंप से धरती कांपी है। ज्योतिष शास्त्री सचिन मल्होत्रा बताते हैं कि 20 फरवरी को वृश्चिक राशि में मंगल का प्रवेश हुआ है और 18 सितंबर तक यह वहीं रहेगा। जिस साल मंगल एक राशि में 6 महीने तक रुकता है, यदि उस वर्ष वह शनि से स्थिति अथवा युति द्वारा कोई योग बना ले तो बड़े भूकंपों और युद्धों से जन-धन की भारी क्षति होती है। 

– मेदिनी ज्योतिष के अनुसार यदि मंगल की दृष्टि ग्रहण की राशि पर पड़ रही हो तो उस वर्ष बड़े युद्ध, अकाल और भूकंपों से भारी क्षति पहुंचती है। इस साल ये सभी योग एकसाथ घटित हो रहे हैं। मंगल वृश्चिक राशि में 6 माह के समय तक शनि के साथ युति करेंगे। 9 मार्च को हुए सूर्यग्रहण की राशि कुम्भ पर मंगल की दृष्टि 5 महीनों तक रहेगी जो कि एक बड़े भूकंप और युद्ध का योग है। 

– महर्षि गर्ग का मानना था कि अमावस्या और पूर्णिमा के आसपास अधिकतर भूकंप आते हैं। यदि उस समय सूर्य या चंद्र ग्रहण भी हो तो बड़े भूकंपों की संभावना अधिक बनती है।

– ग्रहण के समय यदि सूर्य-चंद्रमा, शनि, मंगल और गुरु पृथ्वी तत्व की राशियों अथवा नवमांशों में हों तब ग्रहण के आसपास बड़े भूकंप आते देखे गए हैं। वृषभ, कन्या और मकर को हिंदू ज्योतिष में पृथ्वी तत्व की राशियां कहा जाता है।

– वृषभ-वृश्चिक और मकर-कर्क राशियों में पाप ग्रहों शनि, मंगल, राहु और केतु से पीडि़त होने पर उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में बड़े भूकंप आते हैं।

– ग्रहण के समय अमावस्या अथवा पूर्णिमा के समय यदि बड़े ग्रह शनि, मंगल और गुरु परस्पर केंद्र में स्थित हों तब भी भूकंप आने की संभावना बनती है। यदि इन तीनों में से एक या दो ग्रह वक्री हों तब भूकंप बेहद विनाशकारी हो सकते हैं।

– शास्त्रों में भूकंप की दिशा ज्ञात करने के लिए कूर्म-चक्र का उल्लेख किया गया है। इसका वर्णन विष्णु पुराण और बृहत् संहिता में विस्तार से दिया गया है। मंगल के वृश्चिक राशि में शनि से युति करने के साथ ही भूकंप की प्रबल संभावनाएं बनी थीं। वहीं 9 मार्च को हुआ सूर्यग्रहण पूवाभाद्रपद नक्षत्र में था जो कि कूर्म-चक्र के अनुसार उत्तर दिशा को इंगित करता है। 

– इसके अलावा 23 मार्च को हुआ चंद्रग्रहण भी भूकंप के खतरे में वृद्धि करता है। इसके कुछ ही दिनों बाद यानी 10 अप्रेल को भारत, पाकिस्तान व अफगानिस्तान में भूकंप के झटके महसूस किए गए। इस साल उत्तर दिशा की ओर भूकंप की आशंका अधिक है। ऐसे में खास सावधानी बरतनी चाहिए। 

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