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शरद पूर्णिमा पर चन्द्रमा की रोशनी में रक्खी हुई खीर खाने के अद्भुत गुण, आप जानकर हैरान रह जायेंगे

शरद पूर्णिमा आज (24 अक्टूबर) को है। इसे कोजगार पूर्णिमा भी कहते हैं। इसे जागृति पूर्णिमा या कुमार पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार कुछ रातों का बहुत महत्व है जैसे नवरात्रि, शिवरात्रि और इनके अलावा शरद पूर्णिमा भी शामिल है। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार चन्द्रमा को औषधि का देवता माना जाता है। इस दिन चांद अपनी 16 कलाओं से पूरा होकर अमृत की वर्षा करता है। मान्यताओं से अलग वैज्ञानिकों ने भी इस पूर्णिमा को खास बताया है, जिसके पीछे कई सैद्धांतिक और वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं। इस पूर्णिमा पर चावल और दूध से बनी खीर को चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। इससे रोग खत्म हो जाते हैं और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

शरद पूर्णिमा यानी हिन्दू कैलेंडर के अनुसार शरद ऋतु की पूर्णिमा बहुत ही खास होती है। इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस रात चंद्रमा अपने चरम पर रहता है यानी अपनी 16 कलाओं से युक्त होता है। चंद्रमा की इन कलाओं के नाम अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण, पूर्णामृत और अमा है। जिस व्यक्ति पर इन 16 कलाओं को पूरा प्रभाव होता है वो पूर्ण हो जाता है। यानि उस व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और हर तरह का सुख मिल जाता है। चंद्रमा से मिलने वाले सुखों को प्राप्त करने के लिए खीर बनाकर रात में छत पर या खुले स्थान पर चंद्रमा की चांदनी में रखते हैं ताकि खीर में सभी कलाओं का प्रभाव रहे। उसके बाद सुबह जल्दी उस खीर को खाया जाता है। लोग इस पूरी रात्रि को खीर बनाकर चांदनी में रख देते हैं, ताकि उसे प्रसाद के रूप में सुबह स्नान करके खाने के बाद निरोग हो पाएं।
अगर हम वैज्ञानिक तथ्यों की बात करे तो वैज्ञानिकों के मुताबिक दूध में लैक्टिक एसिड और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। साथ ही चावल में स्टार्च होता है जो यह प्रक्रिया आसान बनाता है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खुले आसमान के नीचे खीर रखने का विधान किया, क्योंकि इस दिन चांद की रोशनी सबसे अधिक होती है। एक अन्य वैज्ञानिक शोध के मुताबिक इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में रोग-प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है साथ ही इससे विष्णु भी दूर रहते हैं। एक अन्य वैज्ञानिक शोध के अनुसार इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। इस दिन बनने वाला वातावरण दमा के रोगियों के लिए विशेषकर लाभकारी माना गया है। इससे पुनर्योवन शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। इसके अलावां एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा पर औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।
हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
सूर्यास्त होने से पहले नहा लें और गाय के दूध में केसर, ड्रायफ्रूट्स के साथ ही अन्य औषधियों का उपयोग कर के खीर बनाएं। भगवान को खीर का भोग लगाएं और भागवान की पूजा करें। निशिथ काल यानि मध्य रात्रि में जब चंद्रमा अपने चरम पर रहे, तब चंद्र देव को प्रणाम करें और खीर को चंद्रमा की रौशनी में रख दें। खीर को मिट्टी या चांदी के बर्तन में ही रखें। इसके बाद सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नहाएं और चंद्रमा के साथ भगवान को प्रणाम करें और प्रसाद मान कर उस खीर को परिवार के साथ खाएं। इस दिन पूरी तरह उपवास रखने की कोशिश करें और उपवास या व्रत नहीं रख पाएं तो सात्विक भोजन ही करें। यानि मिर्च-मसाला, लहसुन, प्याज, मांसाहार और शराब से पूरी तरह दूर ही रहें। शरीर शुद्ध रहेगा तो आपको अमृत तत्व की प्राप्ति हो पाएगी। इस दिन काले रंग का प्रयोग करने से भी बचें। चमकदार सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण करें तो ज्यादा अच्छा होगा।

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