अद्धयात्म

संत रविदास से जुड़े 5 फैक्‍ट्स, जानें कैसे ज्ञान का अमृत बना विष

ravidas_1456046805दस्तक टाइम्स एजेंसी/वाराणसी. राणा ने विष दिया, मानो अमृत पिया (मीरा भजन), ये लाइनें शिष्या मीरा बाई और भगवान कृष्ण के ऊपर लिखी गई थी। सोमवार को संत रविदास जयंती है। नरेंद्र मोदी भी काशी पहुंचकर रविदास मंदिर में मत्‍था टेकेंगे। रविदास और उनकी शि‍ष्‍या मीरा बाई को लेकर लोगों के मन में कई जिज्ञासा रहती है। ऐसे में dainikbhaskar.com आपको संत रविदास से मीराबाई से जुड़े कुछ रोचक और महत्‍वपूर्ण जानकारि‍यों से रूबरू करा रहा है।
 – रविदास एकेडमी की मेंबर, सेंटल गर्ल्स हिंदू स्कूल की पूर्व टीचर भगवंती सिंह ने बताया कि काफी रिसर्च के बाद फैक्ट्स मिले हैं।
– उस समय मेवाड़, चित्तौड़गढ़ के महाराज को राणा कहा जाता था। मीराबाई के पिता मेहड़तियों के महाराज रतन सिंह थे।
– पिता की मृत्यु के बाद दादा दूदा जी ने मीराबाई की शादी उदयपुर के रानी झाली और महाराजा राणा सांगा के बेटे भोजराज के साथ कराया था।
– राणा भोजराज के भाई राणा विक्रमजीत थे। इसी समारोह में कुंवर भोज के दौरान मीरा और भोजराज का विवाह हुआ।
गुरू भक्‍ति देखकर मंत्रमुग्‍ध हों गईं थी मीरा
 – रानी झाली भी रविदास की शिष्या थी, उन्होंने अपने गुरु को महल में बेटे के विवाह के भोज में अतिथि बुलाया। ब्राह्मणों ने इसका विरोध किया।
– रविदास जिस समय महल पहुंचे उनका रानी झाली ने भव्य स्वागत पालकी पर किया। महरानी मीरा गुरु भक्ति देखकर मंत्रमुग्ध हो गईं।
– ब्राह्मणों ने जिद्द किया कि यदि गुरु में शक्ति है तो प्रमाणित करें।
– तब संत रविदास ने झाली और मीरा को कहा आंखे बंद कर कृष्ण का ध्यान कर लो सब ठीक हो जाएगा।
– दरबार में भोज में बैठे हर एक ब्राह्मण के बाद सभी को रविदास दिखाई पड़ने लगे। ब्राह्मणों ने दृश्य को देखकर मान लिया कि संत रविदास कोई मामूली संत नहीं हैं।
– मीराबाई भी यहीं से उनकी शिष्य पथ पर चली थीं। उनको मालूम था कि बिना गुरु, ज्ञान नहीं मिलता।
– मीराबाई की पहली बार मुलाकात भोज के दौरान महल में रविदास जी से यही हुई थी।
 
पहाड़ी से मीरा को नदी में फेंका था

– 1580 में भोजराज की मृत्यु हो जाती है।

– उधर, ससुर राणा सांगा की मृत्यु 1585 में बाबर से कानवाहा युद्ध में हो जाती है।
– राणा सांगा के मृत्यु के बाद मीराबाई को पारिवारिक यातनाएं सहनी पड़ी।
– राणा सांगा के पुत्र तत्कालीन महाराज राणा विक्रमजीत ने मीराबाई को चित्तौड़गढ़ में पहाड़ी से नदी में फेंक दिया था।
– संत रविदास को याद करते हुए वो सकुशल नदी से बाहर आ गईं।

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