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सफला एकादशी 2019: यहां जानें…सफला एकादशी व्रत का महत्व

सफला एकादशी 2019 (Safla Ekadashi) में 1 जनवरी को पड़ रही है। सभी 24 एकादशियों में सफला एकादशी का अपना एक अगल महत्व है। सफला एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा का विधान शास्त्रों में बताया गया है।

सफला एकादशी 2019: यहां जानें…सफला एकादशी व्रत का महत्व धर्म-शास्त्रों के जानकार पंडितों का मानना है कि साल 2019 के प्रथम दिन सफला एकादशी का पड़ना कई मायनों में शुभ है। मंगलवार के दिन पड़ने वाला यह सफला एकादशी (Safla Ekadashi) और भी अधिक महत्व का माना जा रहा है।

एकादशी का महत्व

हिन्दू धर्म में एकादशियों का अत्यधिक महत्व है। यह दिन मात्र एक अवसर होने की बजाय एक पर्व का रूप भी धारण कर लेता है। इस दिन हिन्दू धर्म के लोग भगवान की पूरे विधि अनुसार पूजा करते हैं, उनके नाम का व्रत करते हैं तथा एकादशी के अनुकूल वरदान पाते हैं।

कुल 24 एकादशियां

हिन्दू धर्म में कुल 24 एकादशियां मानी गई हैं, जो यदि मलमास हो तो बढ़कर 26 हो जाती हैं। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक माह दो एकादशियां आती हैं, एक शुक्ल पक्ष की और दूसरी कृष्ण पक्ष की।

हिन्दू पंचांग के अनुसार

इन एकादशियों की तारीख हिन्दू पंचांग द्वारा ही तय की जाती है। इसी कैलेंडर के अनुसार अब सफला एकादशी आने वाली है। यह एकादशी मंगलवार 1 जनवरी, 2019 को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी के दिन व्रत करके भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है।

सफला एकादशी

इस एकादशी से जुड़ी कथा बेहद रोचक है। कहते हैं कि सतयुग में इसी एकादशी तिथि को भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ था। इस देवी ने भगवान विष्णु के प्राण बचाए जिससे प्रसन्न होकर विष्णु ने इन्हें देवी एकादशी नाम दिया।

सफला एकादशी की कथा

पद्म पुराण की कथा के अनुसार महिष्मान नाम का एक राजा था। जिसका ज्येष्ठ पुत्र लुम्पक पाप कर्मों में अक्सर लिप्त रहता था। इससे क्रोधित होकर राजा महिष्मान ने अपने पुत्र को देश से बाहर निकाल दिया। इसके पश्चात्लु लुम्पक जंगल में रहने लगा।

एक बार लुम्पक पौष कृष्ण दशमी की रात में अत्यधिक ठंड के कारण वह सो न सका और सुबह होते होते ठंड के चलते बेहोश हो गया। आधा दिन बीतने के पश्चात् जब उसकी बेहोशी दूर हुई, तब वह जंगल से फल इकट्ठा करने लगा। सूर्यास्त के बाद वह अपनी किस्मत को कोसते हुए भगवान को याद करने लगा। एकादशी की रात भी अपने दुःखों पर विचार करते हुए लुम्पक सो न सका।

इस तरह अनजाने में ही लुम्पक से सफला एकादशी का व्रत पूरा हो गया। इस व्रत के प्रभाव से लुम्पक सुधर गया और उसके पिता महिष्मान ने उसे अपना सारा राज्य सौंप दिया और खुद तपस्या के लिए चले गये। धर्मपथ पर चलते हुए लुंपक ने कई वर्षों तक शासन किया और उसके पश्चात् वह भी तपस्या करने चला गया और मृत्यु के पश्चात उसे विष्णुलोक में स्थान प्राप्त हुआ।

सफल एकादशी व्रत विधि

यदि आप इस एकादशी का व्रत करने जा रहे हैं तो इस दिन प्रातः उठकर भगवान विष्णु एवं देवी एकादशी की पूजा करें। पूरे दिन निराहार रहकर संध्या पूजन के बाद फलाहार लें। संभव हो तो श्रीहरि के किसी भी मंत्र का जाप करते रहें। परनिंदा, छल-कपट, लालच, द्वेष की भावना मन में न लाएं। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के पश्चात स्वयं भोजन करें।

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