सबरीमाला के भगवान अयप्पा के मुस्लिम कमांडर का क्या है किस्सा
महिलाओं के प्रवेश का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के पास जाने के बाद यह बयान आया था। टीडीबी ही सबरीमाला मंदिर का प्रबंधन देखता है। गोपालाकृष्णन ने कहा, महिलाएं आएंगी तो हम उनकी सुरक्षा का भरोसा नहीं दे सकते, हम नहीं चाहते कि यह थाईलैंड जैसी जगह बने।
तिरुवंतपुरम : सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद आज से केरल के बहुचर्चित सबरीमाला मंदिर के द्वार सभी उम्र की महिलाओं के लिए खुल गए हैं। इस फैसले को लेकर केरल में सियासी घमासान मचा हुआ है। कई संगठन और राजनीतिक दल मंदिर में महिलाओं की एंट्री के विरोध में हैं। बीजेपी ने मार्च निकालकर केरल सरकार का विरोध भी किया है। ऐसे में राज्य में तनाव का माहौल है। हालांकि, पुलिस-प्रशासन ने महिलाओं को सुरक्षा का भरोसा दिया है। तनाव की स्थिति को देखते हुए पुलिस विभाग ने सरकार से अतिरिक्त फोर्स की मांग भी की है। अब तक इस महिलाओं को रोकने वाले 16 लोगों को पुलिस गिरफ्तार भी कर चुकी है। इससे पहले केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध था। सुप्रीम कोर्ट में यंग लॉयर्स एसोसिएशन की ओर इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर केस जीतने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस बैन को समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया था और प्रतिबंध हटा दिया था। ऐसे में ज्यादातर यही बात कही जा रही थी कि मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश न होने के पीछे कारण उनके पीरियड्स हैं, जबकि यह पूरी सच्चाई नहीं है। पत्थनमथिट्टा जिले के पश्चिमी घाट की पहाड़ी पर सबरीमाला मंदिर स्थित है, जहां लोगों की मान्यता है कि अयप्पा किसी कहानी का हिस्सा न होकर एक ऐतिहासिक किरदार हैं, वे पंथालम के राजकुमार थे। यह केरल के पथानामथिट्टा जिले में स्थित एक छोटा सा राज्य था, वह महल जहां अयप्पा बड़े हुए वह आज भी है और वहां भी लोग जा सकते हैं। अयप्पा के सबसे वफादार लोगों में से एक थे वावर (मलयालम में बाबर को कहते हैं), यह एक अरब कमांडर थे, जिन्हें अयप्पा ने युद्ध में हराया था, इसके बाद वे अयप्पा के साथ आ गए थे। वावर की मान्यता आज भी है। माना जाता है कि इरूमेली मस्जिद में आज भी उसकी रूह बसती है, वह 40 किमी के कठिन रास्ते को पार करके सबरीमाला आने वाले तीर्थयात्रियों की रक्षा करती है। सबरीमाला जाने वाला रास्ता बहुत कठिन है, जिसे जंगल पार करके जाना पड़ता है। साथ ही पहाड़ों की चढ़ाई भी है क्योंकि यह मंदिर पहाड़ी के ऊपर बना है। मुस्लिम भी इरूमेली की मस्जिद और वावर की मजार पर आते हैं, यह मंदिर के सामने ही पहाड़ी पर स्थित है। सबरीमाला भारत के ऐसे कुछ मंदिरों में से है जिसमें सभी जातियों के स्त्री (10-50 उम्र से अलग) और पुरुष दर्शन कर सकते हैं, यहां आने वाले सभी लोग काले कपड़े पहनते हैं, यह रंग दुनिया की सारी खुशियों के त्याग को दिखाता है। इसके अलावा इसका मतलब यह भी होता है कि किसी भी जाति के होने के बाद भी अयप्पा के सामने सभी बराबर हैं, साथ ही यहां पर उन भक्तों को ज्यादा तवज्जो दी जाती है, जो मंदिर में ज्यादा बार आए होते हैं न कि उनको जिनकी जाति को समाज तथाकथित रूप से ऊंचा मानता हो। इसके अलावा सबरीमाला आने वाले भक्तों को यहां आने से 40 दिन पहले से बिल्कुल आस्तिक और पवित्र जीवन जीना होता है। देवैया लिखते हैं कि इस मंदिर के जैसे रिवाज आपको देश में कहीं और देखने को नहीं मिलेंगे। क्योंकि यहां दर्शन के दौरान भक्त ग्रुप बनाकर प्रार्थना करते हैं। एक ‘दलित’ भी इस प्रार्थना को करवा सकता है और अगर उस ग्रुप में कोई ‘ब्राह्मण’ है तो वह भी उसके पैर छूता है। सुरक्षा बलों केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश देने के मुद्दे पर त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड (टीडीबी) के प्रमुख ने शर्मनाक बात कही थी। बोर्ड अध्यक्ष प्रायर गोपालाकृष्णन ने कहा था कि महिलाओं को प्रवेश देने से अनैतिक गतिविधियां बढ़ेंगी और यह जगह थाईलैंड की तरह यौन पर्यटन का ठिकाना बन जाएगी।