नई दिल्ली (एजेंसी) । प्रसिद्ध लेखक और उपन्यासकार विक्रम सेठ का कहना है कि लेखकों को हर विषय पर बोलने की जरूरत नहीं होती लेकिन वे अन्याय देख चुप नहीं रह सकते। विक्रम ने सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले पर कहा ‘‘इसने हमें पीछे धकेल दिया है अगर आप समलैंगिक हैं तो कानून की नजर में अपराधी हो गए!’’कोलकाता में पैदा हुए विक्रम हालांकि बेहद सादी जिंदगी जीते हैं और चमक-दमक की दुनिया से दूर रहते हैं। उन्हें कुछ लोग एकांतवासी कहते हैं। लेकिन उन मुद्दों जिन पर वह विश्वास करते हैं उस पर बिना डर के बात करते हैं। वह कहते हैं कि एक लेखक को यही करना चाहिए। विक्रम ने आईएएनएस से कहा ‘‘बतौर नागरिक एक लेखक की जिम्मेदारियां होती हैं। लेकिन उसे हर विषय नहीं बल्कि उस पर बात करनी चाहिए जिसमें उसकी रुचि है। अंतत: जिंदगी हर विषय पर राय प्रकट करने के लिए नहीं होती। आप बात करते हैं लेकिन आपके पास हर विषय पर निजी राय नहीं होती।’’सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश लीला सेठ के बेटे ने कहा कि 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस की तरह कुछ मुद्दे जिसमें बड़ा अन्याय हुआ हो उस जैसे विषय पर चुप नहीं रहा जा सकता। उसी तरह कुछ न कहना और चुप रहना भी गलत है। विक्रम कहते हैं ‘‘बेहद निजी जिंदगी जीने का मतलब यह नहीं है कि मैं समय-समय पर कुछ ज्वलंत विषयों पर बात नहीं करता।’’ वह सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ मुखर नजर आए हैं जिसमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध घोषित किया गया है। उन्होंने कहा ‘‘इस फैसले ने हमें पीछे धकेल दिया है और अगर आप इस पर खुला विचार रखते हैं तो आप अपराधी हो गए। इसे भारतीय और गैर भारतीय कहने से पहले अपने इतिहास को देखें। जो लोग खुद को भारतीय होने का दावा करते हैं उनमें से ज्यादा गैर भारतीय हैं। उनके अंदर सहन करने का भारतीय गुण नहीं है वह भारतीय लेखों के स्रोतों को नहीं देखते।’’ पद्मश्री प्रवासी भारतीय सम्मान और डब्ल्यूएच स्मिथ लिटररी अवार्ड पा चुके विक्रम फिलहाल अपनी पुस्तक ‘ए सुटेबल बॉय’ का अगला संस्करण ‘ए सुटेबल गर्ल’ के प्रकाशन का इंतजार कर रहे हैं।