एजेन्सी/ नई दिल्ली: यदि आज उत्तराखंड की अदालत ने हरीश रावत के खिलाफ फैसला नहीं सुनाया तो वह सदन में कल विश्वास मत हासिल करने की जद्दोजहद करेंगे ताकि राज्य में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी फिर से हासिल कर सकें।
केंद्र सरकार ने उनकी कल की संभावित कोशिशों को यह कहते हुए चुनौती दी है कि जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया है तो असेंबली की बैठक और मतदान नहीं हो सकता है। याद दिला दें कि राष्ट्रपति ने केंद्र सरकार के उस प्रस्ताव को सहमति दे दी थी जिसमें उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की गई थी।
राज्य में चल रही सियासी खींचतान के बीच एक वीडियो भी सामने आया जिसमें दिखाया और सुनाया गया कि रावत 9 कांग्रेसियों को रिश्वत का लालच दे रहे हैं। रावत ने कहा कि वीडियो से छेड़छाड़ की गई है। जबकि, केंद्र की ओर से कहा गया कि विश्वास मत हासिल करने के लिए विधायकों की खऱीद- फरोख्त कर रहे रावत के खिलाफ यह पुख्ता सबूत है।
सूत्रों का कहना है कि चंडीगढ़ की एक फोरेंसिक लैब ने वीडियो फुटेज की जांच की है और पाया है कि यह प्रामाणिक है। कांग्रेसियों ने गवर्नर केके पॉल के ऑफिस में रिकॉर्डिंग जमा करवा दी थी जिन्होंने इसे दिल्ली भिजवा दिया था। इसके साथ एक रिपोर्ट भी भेजी गई थी जिसमें यह बताया गया था कि राज्य में संवैधानिक संकट किस प्रकार से उत्पन्न हो गया है। होम मिनिस्ट्री ने इसके बाद यह फुटेज चंडीगढ़ में फोरेसिंक लैब में भेज दी थी।
राज्यपाल के कार्यालय से एक सीनयर सदस्य ने NDTV को बताया- राज्यपाल को एक पेन ड्राइव जिसमें तीन ऑडियो थे और एक वीडियो, सौंपी गई थी।
केंद्र ने यह भी कहा कि कांग्रेस के विधायकों ने फाइनेंस बिल या बजट के खिलाफ वोट दिया जिससे साबित होता है कि रावत सरकार अल्पमत में है। जबकि, कांग्रेस इस बात से इंकार कर रही है। गवर्नर को कथित तौर पर यह भी पता चला कि बजट को आपाधापी के बीच पास किया गया और इस बात का कोई स्पष्ट सबूत नहीं था कि उसके खिलाफ और विरोध में कितने वोट पड़े।
यदि नैनीताल में हाई कोर्ट ने आज रावत के खिलाफ फैसला नहीं दिया तो कल रावत को सदन में कम से कम 36 विधायकों का सपोर्ट साबित करना होगा।