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सुचित्रा सेन का दिल का दौरा पड़ने से निधन

sutकोलकाता।  सुचित्रा सेन का आज 82 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से यहां के एक अस्पताल में निधन हो गया । सेन बंगाली सिनेमा की एक ऐसी हस्ती थीं जिन्होंने अपनी अलौकिक सुंदरता और बेहतरीन अभिनय के दम पर लगभग तीन दशक तक दर्शकों के दिलों पर राज किया और ‘अग्निपरीक्षा’, ‘देवदास’ तथा ‘सात पाके बंधा’ जैसी यादगार फिल्में कीं। हिरणी जैसी आंखों वाली सुचित्रा 1970 के दशक के अंत में फिल्म जगत को छोड़कर एकांत जीवन जीने लगीं।  उनकी तुलना अक्सर हॉलीवुड की ग्रेटा गाबरे से की जाती थी जिन्होंने लोगों से मिलना जुलना छोड़ दिया था । कानन देवी के बाद बंगाली सिनेमा की कोई अन्य नायिका सुचित्रा की तरह प्रसिद्धि हासिल नहीं कर पाई . श्वेत-श्याम फिल्मों के युग में सुचित्रा के जबर्दस्त अभिनय ने उन्हें दर्शकों के दिलों की रानी बना दिया था । उनकी प्रसिद्धि का आलम यह था कि दुर्गा पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमाओं के चेहरे सुचित्रा के चेहरे की तरह बनाए जाते थे । सुचित्रा ने अपने करियर की शुरूआत 1952 में बंगाली फिल्म ‘शेष कोठई’ से की थी।  उन्हें 1955 में बिमल राय की हिन्दी फिल्म ‘देवदास’ में अभिनय के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।  इस फिल्म में उन्होंने ‘पारो’ की भूमिका निभाई थी ।  इसमें उनके साथ दिलीप कुमार थे । बंगाली सिनेमा में सुचित्रा की जाने माने अभिनेता उत्तम कुमार के साथ मशहूर जोड़ी बन गई थी . दोनों ने ‘हरानो सुर’ :1957:, ‘अग्निपरीक्षा’ :1954:, ‘सप्तपदी’ :1961:, ‘गृहदाह’ :1967:, ‘इंद्राणी’ :1958:, ‘सागरिका’ :1956:, ‘बिपाशा’ :1962:, ‘कमल लता’ :1969:, ‘आलो अमर आलो’ :1972: और ‘प्रियो बंधाबी’ :1975: जैसी यादगार फिल्मों में काम किया . सुचित्रा ने 52 बंगाली फिल्मों और सात हिन्दी फिल्मों में काम किया था . ‘देवदास’, ‘चंपाकली’, ‘बंबई का बाबू’ और ‘ममता’ जैसी उनकी कुछ अन्य प्रमुख हिन्दी फिल्में हैं ।

 

‘देवदास’ के बाद उनकी सर्वाधिक हिट हिन्दी फिल्म 1974 में आई गुलजार की ‘आंधी’ थी . इस फिल्म में सुचित्रा ने संजीव कुमार के साथ काम किया था और अपने अभिनय के लिए जबर्दस्त प्रशंसा बटोरी थी . फिल्म में सुचित्रा की भूमिका और इंदिरा गांधी के बीच समानताओं को लेकर विवाद भी हुआ था .

 

वर्ष 1978 में सौमित्र चटर्जी के साथ की गई फिल्म ‘प्रणोय पाशा’ के फ्लॉप होने के बाद सुचित्रा ग्लैमर से दूर हो गईं और यहां तक कि वह सार्वजनिक तौर पर दिखने से भी कतराने लगीं . कथित तौर पर इसी वजह से 2005 में उन्होंने दादा साहेब फाल्के पुरस्कार लेने से भी मना कर दिया .

 

उनकी इच्छा के अनुरूप उनके परिवार ने यहां तक कि अस्पताल में भर्ती होने के बावजूद गोपनीयता बनाए रखी . सुचित्रा के सार्वजनिक जीवन से हट जाने का कारण आज भी रहस्य बना हुआ है .

 

रामकृष्ण मिशन परंपरा की अनुयायी सुचित्रा ने फिल्मों से अलग होने के बाद अपना जीवन ध्यान और ईश्वर वंदना में गुजारा . 1989 में जब मिशन के भरत महाराज का निधन हुआ तो उन्हें कोलकाता के नजदीक बेल्लूर मठ से शवदाह गृह तक सार्वजनिक रूप से पैदल जाते देखा गया था .

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