उत्तर प्रदेशफीचर्डराजनीतिराष्ट्रीयलखनऊ

सुब्रत राय की हिरासत अधिकार का हनन : सहारा

download (1)नई दिल्ली। सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय के खिलाफ मामले में बचाव पक्ष ने सर्वोच्च न्यायालय से गुरुवार को कहा गया कि राय और उनके दो निदेशकों को न्यायिक हिरासत में भेजने का उसका चार मार्च का आदेश बुनियादी तौर पर अवैध और असंवैधानिक था। न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर के चार मार्च के आदेश को अवैध बताते हुए न्यायाधीशों से मामले की सुनवाई से खुद को अलग करने और इस मामले को किसी और पीठ के हवाले करने का अनुरोध किया गया। अदालत के समक्ष यह तर्क राय की याचिका की उपयुक्तता की सुनवाई के दौरान दिया गया। याचिका में चार मार्च के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि इसने मौलिक अधिकारों और खासकर संविधान की धारा 21 के तहत दर्ज अधिकारों का उल्लंघन हुआ है और यह क्षेत्राधिकार से बाहर है और अवैध है। राय की ओर से उपस्थित हुए वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने कहा कि न्यायाधीशों को मामले की सुनवाई से खुद को हठा लेना चाहिए। उनके मुवक्किल को पूर्वाग्रह की आशंका है और इस मामले को किसी अन्य पीठ के हवाले किया जाए। सहारा की ओर से पेश हुए एक अन्य वकील सी.ए. सुंदरम ने कहा  ‘‘मैं तरफदारी के कथित सिद्धांत का हवाला नहीं दे रहा हूं।’’ जेठमलानी के रुख से खुद का अलग करते हुए सुंदरम ने कहा कि यदि राय की याचिका को उपयुक्त माना जाता है  तो इस याचिका की सुनवाई किसी अन्य पीठ द्वारा होनी चाहिए। वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने अदालत से कहा कि ऐसा क्षण विरले ही आता है  जब अदालत से कहा जाता है कि वह गलत है और उसने संविधान तथा कानून के शासन का उल्लंघन किया है।

धवन ने सवाल उठाते हुए कहा  ‘‘क्या अदालत ने गलती की है और इतनी बड़ी गलती की है कि इससे तरफदारी की आशंका पैदा हुई है  चाहे भले ही ऐसा नहीं हो।’’ धवन ने पूरे मामले में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के रुख की आलोचना करते हुए कहा कि अदालत द्वारा 31 अगस्त 2०12 और उसके बाद दिए गए सभी आदेशों का उल्लंघन हुआ है और यदि पूरे मामले को देखा जाए  तो ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि हम (सहारा) सहयोग नहीं कर रहे हैं। जेठमलानी ने कहा  ‘‘कृपया मानवीय मानवीय भूल को मानते हुए अपनी गलती स्वीकार करें। धारा 21 का उल्लंघन हुआ है। राय को कोई अवसर नहीं दिया गया है।’’ उन्होंने कहा  ‘‘याचिकाकर्ता को तरफदारी की आशंका है और यदि पक्षपात की थोड़ी सी भी आशंका है  तो न्यायाधीश को सुनवाई से खुद को अलग कर लेना चाहिए।’’

सेबी की ओर से वकील अरविंद दत्तार ने कहा कि संविधान की धारा 32 के तहत अदालत के आदेश की विरुद्ध अपने मौलिक अधिकार को लागू करने वाली राय की याचिका उपयुक्त नहीं है। दत्तार ने कहा कि अदालत के आदेश को सिर्फ समीक्षा याचिका के तहत चुनौती दी जा सकती है न कि संविधान की धारा 32 के तहत रिट याचिका द्वारा। इस बीच सेबी ने पांच किश्तों में 2० हजार करोड़ रुपये जमा करने के सहारा के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है  जिसके तहत पहली किश्त में 2 5०० करोड़ रुपये जमा करने  उसके बाद 3० जून  3० सितंबर और 31 दिसंबर को 3 5०० करोड़ रुपये की तीन अलग-अलग किश्तें तथा 31 मार्च 2०15 को शेष 7 ००० करोड़ रुपये जमा करने का प्रस्ताव पेश किया गया था। सेबी ने कहा कि 25 मार्च को पेश सहारा का प्रस्ताव 31 अगस्त 2०12 के आदेश के अनुरूप नहीं है और इसमें संशोधन होना चाहिए।

Related Articles

Back to top button