टॉप न्यूज़राज्यराष्ट्रीय

पॉक्सो के 2.43 लाख केस, 20 साल में भी नहीं निपटेंगे, एक सजा पर आता है 9 लाख रुपये का खर्च

नई दिल्ली: देश की विभिन्न फास्ट-ट्रैक अदालतों में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत 2.43 लाख से ज्यादा मामले जनवरी 2023 तक लंबित थे। एक एनजीओ के शोध पत्र में यह जानकारी देने के साथ बताया गया है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट जिस गति से मामले निपटा रहे हैं उसे देखते हुए अगर कोई नया मामला दर्ज न भी हो तो भी इन्हें निपटाने में कई राज्यों को दो- तीन दशक तक का समय लग सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2022 में ऐसे मामलों में राष्ट्रीय स्तर पर दोषसिद्धि या आरोपियों को सजा सुनाए जाने की दर मात्र तीन फीसदी रही। इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (आईसीपीएफ) की तरफ से जारी शोधपत्र न्याय प्रतीक्षा भारत में बाल यौन शोषण के मामलों में न्याय वितरण तंत्र की प्रभावकारिता का विश्लेषण में कहा गया है कि विशेष फास्ट ट्रैक अदालतें गठित किए जाने के बावजूद यह दर न्यायिक ‘ प्रणाली के प्रभावी होने पर एक सवाल है।

एक साल में करना था पूरा
रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार ने 2019 में बाल यौन शोषण पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित करने के लिए फास्ट-ट्रैक अदालतें स्थापित करने का एक ऐतिहासिक फैसला लिया था और इस पर करोड़ों रुपये भी खर्च कर रही है। इन अदालतों को ऐसे मामलों में कार्यवाही को एक साल में पूरा करना था, लेकिन, विचाराधीन कुल मामलों में 2022 में केवल 8,909 मामलों में ही दोषसिद्धि हो पाई है।

एक सजा पर नौ लाख का खर्च
केंद्र सरकार ने हाल में 1,900 करोड़ रुपये से अधिक के बजटीय आवंटन के साथ 2026 तक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में फास्ट ट्रैक अदालतें जारी रखने की मंजूरी दी थी। रिपोर्ट में इस बात को रेखांकित किया गया है कि देश में प्रत्येक फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रति वर्ष औसतन केवल 28 मामलों का निपटारा करती है, जिसका मतलब है कि एक सजा पर खर्च लगभग नौ लाख रुपये का खर्च आता है।

लक्ष्य से कोसों दूर
कानून एवं न्याय मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर यह भी बताया गया कि आधारित इस रिपोर्ट में लॉन्च के तीन साल बाद भी ये विशेष फास्ट-ट्रैक अदालतें निर्धारित लक्ष्य से कोसों दूर हैं। हर फास्ट-ट्रैक कोर्ट में एक तिमाही में 41-42 मामलों यानी सालभर में कम से कम 165 मामलों के निपटारे की उम्मीद जताई गई थी।

Related Articles

Back to top button