अजब-गजबफीचर्डलखनऊ

29 मार्च 1857: स्वतंत्रता संग्राम की फूटी चिंगारी

लखनऊ : 1857 , यही वो साल था जो दुनिया के इतिहास को नया मोड़ देने वाला था और भारत में स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत करने वाला था, 1857 में जो विद्रोह हुआ उसकी शुरुआत आज यानी 29 मार्च को ही हुई थी, इसी दिन मंगल पांडेय ने सार्जेंट-मेजर ह्यूसन और लेफ्टिनेंट बेंपदे बाग की हत्या कर दी थी जिसके बाद उन्हें फांसी दे दी गई। भले ही मंगल पांडेय का ये विद्रोह विफल रहा हो मगर इसके बाद क्रांति की जो ज्वाला भड़की उसने आने वाले समय में पूरे देश को जलाकर रख दिया, ये ज्वाला आगे जाकर इतना विकराल रूप लेगी शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा। मंगल पांडेय के इसी विद्रोह के बाद क्रांतिकारियों ने अावाज उठाना शुरू कर दिया जो धीरे-धीरे समय के साथ बढ़ता गया।
विद्रोह का मुख्य कारण पेर्टन एंफील्ड पी-53 राइफल थी जिसका इस्तेमाल 1953 में शुरू हुआ, दरअसल जो एंफील्ड बंदूख सिपाहियों को इस्तेमाल करने के लिए दी गईं थी उन्हें भरने के लिए कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारूद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस के बाहर चर्बी लगी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी, सिपाहियों में यह बात फैल गई थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनाई जाती है, इससे सैनिकों को लगने लगा कि अंग्रेज उनका धर्म भ्रष्ट करवाना चाहते हैं, इसी वजह से कलकत्ता की बैरकपुर छावनी में मंगल पांडेय ने अग्रेंजों के खिलाफ बिगुल बजा दिया, हालाँकि अंग्रेजों के खिलाफ इस क्रांति के समय से पहले शुरू होने से इसको हार का सामना करना पड़ा, इसी विद्रोह में मंगल पांडेय ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या करने की कोशिश भी की थी मगर इसमे वह केवल घायल ही हुए थे, इसके बाद 7 अप्रेल 1957 को मंगल पांडे को फांसी दे दी गई।
लखनऊ (उस समय में अवध के नाम से जाना जाता था) की सीमा पर स्थित सिकंदरा बाग को अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने बनाया था. इसका नाम उन्होंने अपनी बेगम सिकंदर महल बेगम के नाम पर दिया था. 1857 के विद्रोह से यह भी अछूता नहीं रहा था. विद्रोह के दौरान जब लखनऊ की घेराबंदी की गई तो सैकड़ों भारतीय सिपाहियों ने इसी बाग में शरण ली थी. मगर 16 नवंबर 1957 को अग्रेजों ने बाग पर चढ़ाई कर हमला बोल दिया और 2000 सैनिकों को मार दिया, इस दौरान लड़ाई में मारे गए ब्रिटिश सैनिकों को तो गहरे गड्ढे में दफना दिया गया मगर भारतीय सिपाहियों के शवों को यू हीं बाहर फेंक दिया गया, जिसके बाद इस बाग का हाल कुछ यूं हुआ कि यहां केवल कंकाल और खोपड़ियां ही नजर आने लगीं, बाग की दिवारों पर आज भी इस लड़ाई के निशान देखे जा सकते हैं। जब-जब 1857 के विद्रोह का नाम लिया जाता है तो उसमें लखनऊ रेसिडेंसी का नाम भी शामिल होता है। विद्रोह के इतिहास में ये रेजीडेन्सी सबसे महत्वपूर्ण जगहों में से एक है, विद्रोह के दौरान जब लखनऊ में घेराबंदी हुई तब अंग्रेज इस रेजीडेन्सी में 86 दिनों तक छिपे हुए थे, इसके बाद यहां भी विद्रोह का गदर मचा जहां भारी मात्रा में गोलीबारी हुई, इस लड़ाई में लखनऊ रेसिडेंसी का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो गया था, यहां पर एक खंडहर चर्च है, इस चर्च में एक कब्रिस्तान हैं, जहां 2000 अंग्रेज सैनिकों सहित कई औरतों और बच्चों की कब्रें बनी हुई हैं।

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