उत्तराखंडदस्तक-विशेष

पहाड़ के “प्रेमचंद ” से जुड़ी 5 प्रमुख बातें

(उत्तराखंड की महान विभूतियां)

विवेक ओझा

देहरादून: हिंदी साहित्य के महानतम लेखकों में से एक मुंशी प्रेमचंद को भारत में कौन नहीं जानता , कौन नहीं जानता उनके लिखे उपन्यास को जो भारत के ग्रामीण जीवन की सच्चाइयों को जानने का दुर्लभ साहित्यिक खज़ाना है और जिसे भारत ही नही बल्कि विदेशों में भी पढ़ा सुना जाता है। इसी तरह अगर हम यह जानना चाहें कि “उत्तराखंड का प्रेमचंद” का या “पहाड़ का प्रेमचंद ” किसे कहते हैं , तो जो नाम हमारे सामने आता है वो है ” विद्या सागर नौटियाल ।

देवभूमि उत्तराखंड की धरती के हिंदी के जाने-माने उपन्यासकार और कहानीकार विद्यासागर नौटियाल जी को पहाड़ का प्रेमचंद ( Premchand of Pahad) कहते हैं। उन्हें ऐसी उपाधि इसलिए मिली क्योंकि उनकी साहित्यिक रचनाओं में मुंशी प्रेमचंद जैसा भाव , अनुभव , प्रस्तुतिकरण दिखाई देता है। प्रेमचंद ने जहां पूरे भारत को ग्राम समाज की चुनौतियों से वाकिफ़ कराया वहीं विद्यासागर नौटियाल ने उत्तराखंड के पहाड़ों , ग्राम जीवन की व्यथा को अपनी रचनाओं में उतारा ।

 विद्यासागर नौटियाल जी का जन्म 29 सितंबर 1933 को टिहरी के मालीदेवल गांव में हुआ था। स्व. नारायण दत्त नौटियाल व रत्ना नौटियाल के घर जन्मे नौटियाल 13 साल की उम्र में शहीद नागेन्द्र सकलानी से प्रभावित होकर सामंतवाद विरोधी ‘प्रजामंडल’ से जुड़ गए। रियासत ने उन्हें टिहरी के आजाद होने तक जेल में रखा। वे वन आंदोलन, चिपको आंदोलन के साथ टिहरी बांध विरोधी आंदोलन में भी सक्रिय रहे। हाईस्कूल की परीक्षा प्रताप इंटर कॉलेज टिहरी से उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने इंटरमीडिएट, बीए व एलएलबी की शिक्षा डीएवी कॉलेज देहरादून से ली।

बनारस की धरती और विद्यासागर नौटियाल :

वकालत में डिग्री हासिल करने के बाद विद्यासागर नौटियाल ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में वर्ष 1952 में एमए किया था। वे 1953 व 1957 में बीएचयू छात्र संसद के प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए। उन्हें 1958 में सीपीआई के छात्र संगठन एआईएसएफ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। 

देवभूमि उत्तराखंड की धरती पर जन संघर्ष से सच्चा सरोकार रखने वाले विद्यासागर नौटियाल 13 साल की उम्र में ही गढ़वाल में राजशाही और सामंतवाद विरोधी आंदोलन में शामिल हो गए थे और जेल भी गए थे। उनका काफ़ी समय आज़ाद भारत की जेलों में बीता। वो ऑल इंडिया स्टुडेंट्स फ़ेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी चुने गए।
आजीवन सीपीआई से जुड़े रहे नौटियाल 1980 में देवप्रयाग से उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए थे। इफ्को साहित्य सम्मान से भी नवाजा गया था।

उनकी सर्वोत्तम रचनाओं में शामिल हैं :

  • ‘उत्तर बायां है’,
  • ‘यमुना के बागी बेटे’,
  • ‘भीम अकेला’,
  • ‘झुंड से बिछुड़ा’,
  • ‘फट जा पंचधार’,
  • ‘सुच्ची डोर’,
  • ‘बागी टिहरी गाए जा’,
  • ‘सूरज सबका है’

ये सभी उनकी प्रतिनिधि रचनाएं हैं जबकि ’मोहन गाता जाएगा’ उनकी आत्मकथात्मक रचना ( Autobiography) है। पहाड़ के लोकजीवन पर आधारित टिहरी की कहानियां उनका लोकप्रिय कथा संग्रह है।

उनकी पहली कहानी ‘भैंस का कट्या’ 1954 में इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली साहित्यक पत्रिका ‘कल्पना’ में प्रकाशित हुई। इससे पूर्व वे ‘मूक बलिदान’ नामक कहानी लिख चुके थे। उनका पहला उपन्यास ‘उलङो रिश्ते’ था।

विद्यासागर नौटियाल को मिले सम्मान :

उन्हें इफ्को साहित्य सम्मान से भी नवाजा गया था। उन्हें साहित्य के क्षेत्र में पहल सम्मान, मप्र सरकार का वीर सिंह देव सम्मान, पहाड़ सम्मान समेत दर्जन भर से अधिक सम्मान मिले। 18 फरवरी 2012 को उनका निधन हो गया था।

( लेखक दस्तक टाइम्स के उत्तराखंड संपादक हैं )

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