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83 साल का बुजुर्ग इसलिए कर रहा है लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार

एजेंसी/mithalal_sindhi_15_05_2016अहमदाबाद। 1947 में हुआ भारत-पाकिस्तान विभाजन केवल सीमाओं को ही नहीं बल्कि बहुत सारी चीजों को बांट गया था। वो दुखभरे पल आज भी कइयों के दिलों में जिंदा हैं। ऐसे ही दर्द को अपने सीने में रखे हुए हैं 83 साल के मिथालाल सिंधी।

मिथालाल बीते 60 सालों से फुटपाथ पर ही जिंदगी गुजार रहे हैं, लेकिन इनके द्वारा किए जा रहे एक काम को सुनकर आप भी दिल की गहराइयों से उनको सलामी देंगे। बीते 60 सालों से वे 550 से ज्यादा लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। ऐसा करने के पीछे उनका कोई मकसद नहीं है बल्कि वे तो केवल मानवता के नाते ऐसा करते हैं। उनकी यह दास्तान एक फेसबुक पेज पर शेयर की गई है। ऐसे ही मानवीय दृष्किकोण रखकर फुटपाथ पर जिंदगी गुजारने वाले मिथालाल की जिंदगी पर डालते हैं एक नजर उनकी ही जुबानी।

‘विभाजन के दौरान मैं पाकिस्तान से बंबई (अब मुंबई) आया। मैं सिर्फ 15 साल का था। भूख और गरीबी से संघर्ष करते हुए मैंने कई जगहों पर नौकरी करनी शुरू की। 1957 में मैं अहमदाबाद चला आया। वहां जाकर मैंने मणिनगर इलाके में फल बेचने शुरू किया। वहां मेरा एक दोस्त बन गया, वो भी सब्जी बेचा करता था। उसका नाम था नयलदास सिंधी। वो मेरे साथ ही खाना खाता और मेरे साथ ही फुटपाथ पर सोता।

लगातार दो साल तक ये सिलसिला चलता रहा, फिर एक दिन सुबह जब मैं उसे उठाने गया तो वो नहीं उठा, वो मर चुका था। इस दुनिया में उसका कोई नहीं था, जो उसका अंतिम संस्कार कर पाए। मैं सब्जी बाजार के मुखिया के पास गया और उसकी मृत्यु के बारे में बताया।

मुखिया ने कहा कि, ‘ये हमारा धंधा नहीं है।’ पूरे बाजार में कोई भी उसका अंतिम संस्कार करने को तैयार नहीं हुआ। अंतत: मैंने ही निर्णय लिया कि मैं अपने दोस्त का अंतिम संस्कार करूंगा।

कैलिको मिल के नजदीक मैंने अपने दोस्त का अंतिम संस्कार किया। मेरे दोस्त की हुई इस आकस्मिक मृत्यु ने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि इस तरह कितने लावारिस लोग प्रतिदिन मरते होंगे और उनका अंतिम संस्कार कौन करता होगा?

इस वाकये के बाद मैंने ये सामाजिक कार्य करने का निर्णय कर लिया। अब तक मैंने लगभग 550 लावारिस लोगों का अंतिम संस्कार किया है। शव चाहे मुस्लिम, सिख, ईसाई और हिंदू किसी भी धर्म के व्यक्ति का हो, लेकिन मैं मानवता को ध्यान में रखते हुए उनका अंतिम संस्कार करता हूं। जब मुझे कोई लावारिस शव मिलता है, तो पहले मैं उसके शरीर में बने किसी निशान को देखता हूं ताकि उसका धर्म जान सकूं। उस धर्मानुसार ही उसका अंतिम संस्कार करता हूं। अगर कोई हिंदू है तो मैं उसे VS Crematorium लेकर जाता हूं और अगर कोई मुस्लिम है तो उसे जमालपुर ले जाता हूं, अगर कोई ईसाई है तो कब्र में दफना देता हूं। रिक्शे पर लाश रखकर मैं शवदाह के लिए ले जाता हूं। उस लावारिस शव का पर्स और मोबाइल के जरिये मैं उसके परिवार का पता लगाने की भी कोशिश करता हूं, लेकिन कई बार लोग अपने परिजनों के शव को देखने के बाद भी साफ मना कर देते हैं। अगर कोई महिला उम्रदराज है, तो मैं उसमें अपनी मां देखता हूं, अगर कोई जवान लड़का है तो वो मुझे अपने बेटे जैसा लगता है। अगर किसी महिला का शव है, तो वो मुझे मेरी छोटी बहन के शव की तरह लगती है। हालांकि मैं अपने पिता का अंतिम संस्कार नहीं कर पाया, लेकिन ये लावारिस भी मेरे अपने ही हैं। मेरा एक बेटा और तीन बेटियां हैं। वो सड़क के किनारे एक फास्ट फूड रेस्टोरेंट चलाते हैं। उनके पास अपना एक घर भी है, लेकिन मैं उनके साथ नहीं रहता। मैं फुटपाथ पर रहता हूं क्योंकि ये एक ऐसी जगह है, जहां लोगों को जब भी जरूरत होगी तो मैं आसानी से मिल जाऊंगा। अपने पूर्वजों की संपत्ति लेने में मुझे कोई रुचि नहीं क्योंकि मैं भौतिकवादी नहीं हूं। मुझे बस मेरा रिक्शा चाहिए। आज एक शव का दाह करने पर 1500 रुपए खर्च होते हैं। ये पैसे मैं एलिस ब्रिज के नजदीक बाजरा बेच कर कमाता हूं और इसी से लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करता हूं। आज मेरी उम्र 83 साल की है। फुटपाथ पर रहते-रहते मुझे 60 साल होने को आए हैं, लेकिन मैं अपने इस जीवन से बहुत संतुष्ट हूं। भगवान ने मुझे धरती पर इस नेक काम के लिए भेजा है। भविष्य में ये शहर किसी भी लावारिस शव के मिलने पर मुझे जरूर याद किया करेगा और ये मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी की बात होगी।’

हरेक शख्स जीवन में संघर्ष करता है, लेकिन कुछ उस संघर्ष को अपने जीवन का हिस्सा बना लेते हैं, तो कुछ आरामपरस्त होते हैं, जो अपने हिस्से का संघर्ष पूरा करने के बाद स्वार्थी बन जाते हैं। मिथालाल सिंधी उन लोगों में से हैं, जो दूसरों का संघर्ष भी स्वयं करने की ठानते हैं।

 
 

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