एजेंसी/ सहारनपुर। भारत में करोड़ों मंदिर हैं, जहां लोग पूरी आस्था से माथा टेकने जाते हैं। वहीं कुछ मंदिर ऐसे हैं, जहां किसी खास काम या खास समस्या के निवारण के लिए जाया जाता है।
उत्तप्रदेश के सहारनपुर का एक हनुमान मंदिर ऐसा ही है। यहां उन युवक-युवतियों को लाया जाता है, जिनके सिर पर प्रेम का भूत चढ़ गया है।
सहारनपुर बस स्टैंड पर स्थित यह मंदिर आठ साल पहले बना था। स्थानीय लोगों के मुताबिक, यहां बालाजी अपने प्रभु महाराज श्रीराम के साथ-साथ श्री काल भैरव और श्री प्रेतराज सरकार के साथ विराजमान हैं।
यहां आने वालों में ऐसे माता-पिता भी होते हैं जिनके बच्चों पर प्यार का भूत सवार हो गया और इसके चलते उनका मन दूसरे किसी काम में नहीं लग रहा है।
आस्था से जुड़ी दो अन्य रोचक खबरें
भगवान का बुखार उतरा, हरारत बनी हुई है उपचार जारी रहेगा
क्या भगवान को भी बुखार आ सकता है भला? भगवान जगन्नाथ के साथ तो ऐसा ही हो रहा है। बीते दिनों भगवान की स्नान यात्रा निकली थी। मान्यता है कि उस दिन भगवान को लू गई थी और उन्हें बुखार आ गया था। इसके बाद से उन्हें मौसमी फलों का ही भोग चढ़ाया जा रहा है और औषधियों का काढ़ा पिलाया जा रहा है। तीन दिन से काढ़ा पीने के बाद खबर है कि प्रभु का बुखार उतर गया है। हालांकि उपचार जारी रहेगा। देशभर के जगन्नाथ मंदिर में ऐसा ही किया जा रहा है। प्रभु अभी दर्शन नहीं दे रहे हैं।
यहां चढ़ाई जाती थी कभी अंग्रेजों की बलि
बात 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम से पहले की है। इससे पहले इस इलाके में जंगल हुआ करता था। यहां से गुर्रा नदी होकर गुजरती थी। इस जंगल में डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह रहा करते थे। नदी के तट पर तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर वह देवी की उपासना किया करते थे। तरकुलहा देवी बाबू बंधू सिंह कि इष्टदेवी कही जाती हैं।
उन दिनों हर भारतीय का खून अंग्रेजों के जुल्म की कहानियां सुनकर खौल उठता था। जब बंधू सिंह बड़े हुए तो उनके दिल में भी अंग्रेजों के खिलाफ आग जलने लगी। बंधू सिंह गुरिल्ला लड़ाई में माहिर थे। इसलिए जब भी कोई अंग्रेज उस जंगल से गुजरता, बंधू सिंह उसको मार कर उसके सर को काटकर देवी मां के चरणों में समर्पित कर देते थे।
पहले तो अंग्रेज यही समझते रहे कि उनके सिपाही जंगल में जाकर लापता हो जा रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें भी पता लग गया कि अंग्रेज सिपाही बंधू सिंह के शिकार हो रहे हैं। अंग्रेजों ने उनकी तलाश में जंगल का कोना-कोना छान मारा, लेकिन बंधू सिंह किसी के हाथ नहीं आए।