गांधीनगर: गुजरात कांग्रेस में कभी चीफ व्हिप रहे बलवंत सिंह राजपूत को भाजपा ने राज्यसभा उम्मीदवार के तौर पर अहमद पटेल के खिलाफ मैदान में उतारा है। बलवंत कभी गुजरात के सिद्धपुर में चाय बेचा करते थे। लेकिन राजनीति में अब उनका कद काफी बढ़ गया है। अब वह पटेल को भाजपा उम्मीदवार के तौर पर सीधी चुनौती दे रहे हैं। गुजरात में राज्यसभा के उम्मीदवार का चुनाव अब कांग्रेस और भाजपा के लिए साख का सवाल बन गया है। राजपूत आज 254 करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक हैं। उनका यहां तक का सफर बेहद दिलचस्प रहा है। अब वह गुजरात में बड़े खाद्य तेल व्यापारियों में से एक हैं।
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गोकुल ग्रुप के मालिक हैं बलवंत
भाजपा ने तीन दिन पहले 28 जुलाई को ही उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया है। बलवंत आज गोकुल ग्रुप के मालिक हैं। लेकिन सिद्धपुर में कभी वह अपने पिता के साथ ठेले पर चाय और सुपारी बेचा करते थे। यहां पर उनका आॅफिस भी है, जहां आज भी वह ठेला उन्हें पुराने दिनों की याद दिलाता है। एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक यह उन्हें याद दिलाता रहता है कि वह कहां से संघर्ष करते हुए यहां तक पहुंचे हैं। उनके पिता ने सिद्धपुर स्थित एक ऑयल मिल से जॉब छूटने के बाद इस धंधे को अपनाया था, जिससे उनके घर का गुजारा चलता था।
मुश्किल हालात में गुजरे दिन
वह बताते हैं कि 1972 में आई बाढ़ के दौरान उनका घर इसमें बह गया था। उस वक्त बलवंत के पास बदलने के लिए कपड़े भी नहीं थे। न उनके सिर पर छत थी और न पढ़ाई का ही कोई ठिकाना था। उस वक्त उनके पिता ने उन्हें गांधीनगर में तत्कालीन मुख्यमंत्री माधवसिंह सौलंकी के पास क्षत्रिय होने के चलते जॉब पाने की उम्मीद से मिलने भेजा था। उस वक्त सौलंकी आम जनता से मिलने के लिए हमेशा तैयार रहते थे और उनके घर के दरवाजे जनता के लिए खुले ही रहते थे। लेकिन बलवंत वहां से निकलकर एक-दूसरे कांग्रेस नेता जिनाभाई दारजी के पास चले गए। वह भी उस समय के बड़े नेता थे। बलवंत बताते हैं कि दारजी ने ही उन्हें एक राशन की दुकान खाेलने की सलाह दी थी। उस वक्त दारजी ने उन्हें इसका लाइसेंस दिलवाने में भी पूरी मदद की थी। उनकी मदद के बाद बलवंत ने अपने दो कमरों के घर में यह दुकान खोली थी।
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चल निकली दुकान और राजनीति में भी पकड़ हुई मजबूत
धीरे-धीरे उनकी दुकान चल निकली। इसके साथ ही वह राजनीति में पकड़ बनाने वालों के करीब आते चले गए। इसमें सुरेंद्र राजपूत भी शामिल थे, जो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। उन्होंने बलवंत को तेल के व्यापार में लगाया और गोकुल ऑयल को तैयार करने में बड़ा योगदान दिया। बलवंत बताते हैं कि वह दिन बड़े मुश्किल के थे। बहन के अस्पताल में होने के चलते वह वहीं पर सोते थे। वह कहते हैं कि उन दिनों को भुला पाना काफी मुश्किल है। धीरे-धीरे उनकी पकड़ राजनीति में मजबूत होती चली गई। इसके अलावा वह आर्थिक रूप से भी काफी संपन्न होते चले गए। गुजरात की राजनीति में उनके बढ़ते कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2002 के चुनाव में जब गुजरात में भाजपा की लहर थी तब भी उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार को सिंद्धपुर से हराया था। 2007 में इस जगह से उनकी हार हुई, लेकिन 2012 में उन्होंने दोबारा धमाकेदार जीत हासिल की। राजनीति में उनके बढ़ते कद की गूंज दिल्ली के हाईकमान ऑफिस तक थी।
अहमद पटेल की भूमिका
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन मोडवाडिया का कहना है कि अहमद पटेल ने उनके राजनीतिक जीवन में काफी अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने ही बलवंत के राजनीतिक करियर को परवान चढाया। कांग्रेस में शुरुआत से लेकर उन्हें चीफ व्हिप बनाने तक में अहमद पटेल का हाथ था। इतना ही नहीं अहमद पटेल ने न सिर्फ उनकी बल्कि समय समय पर उनके परिवार की भी काफी मदद की थी। लेकिन आज वह भाजपा के लिए उन्हीं को चुनौती दे रहे हैं। हालांकि इसके लिए भी वह कहीं न कहीं कांग्रेस को ही जिम्मेदार भी ठहराते हैं।
बर्दास्त के बाहर थी बातें
बलवंत का कहना है कि वह करीब 35 वर्षों तक कांग्रेस में रहे लेकिन बीते एक वर्ष के दौरान चीजें बर्दास्त के बाहर हो गई थीं। कई बार इस बात को पार्टी में रखा गया कि हम सभी को एकजुट होकर भाजपा को टक्कर देनी चाहिए, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। हर रोज एक नई कहानी सामने आती और उन्हें बदनाम करने की कोशिश की जाती, लिहाजा पार्टी से अलग होने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा था।