अद्धयात्मदस्तक-विशेष

कर्मयोगी ऋषिराज सदगुरु दद्दाजी

करूणा और कृपा में अंतर होता है। किसी को- गिरे हुए, व्यथित, दुखी देख कर मन में दया का भाव आना करूणा है, और उस गिरे हुए को हाथ पकड़ के उठा देना उसकी सहायता कर उसे उसके गंतव्य (लक्ष्य) तक पहुँचा देना कृपा है, पूज्य दद्दाजी करूणानिधि ही नहीं कृपासिंधु भी हैं। ये एक ऐसे साधक, संत हैं जो मात्र स्वयं के चैन की तलाश में नहीं बल्कि अपने संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को सुख चैन आनंद उत्साह और उमंग से भरने के लिए उद्धत रहते हैं। परम पूज्य दद्दाजी हमें जीविका निर्वहन की नहीं जीवन निर्वाहन की शिक्षा देते हैं। समस्त चराचर के लिए समभाव और तत्परता के कारण उनके संदर्भ में हमें ये कहने की प्रेरणा मिलती है की ..
“अपने अपने घरन में सब जन को है काम। उनको सबके घरन में धन्य धन्य घनश्याम।।”

आशुतोष राणा

कर्मयोगी, ऋषिराज गृहस्थ संत परम पूज्य गुरुदेव पंडित श्री देव प्रभाकर जी शास्त्री, जिन्हें सम्पूर्ण जगत आदर व प्रेम से ‘दद्दाजी’ कह के सम्बोधित करता है,सच्चे अर्थों में “संकल्प मूर्ति” हैं, पूज्य दद्दाजी को “संकल्प का पर्याय” कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ‘पूज्य दद्दाजी’ ने जहाँ अपने पूज्य गुरुदेव धर्म सम्राट यति चक्रचूड़ा मणि ‘स्वामी करपात्री जी’ के राष्ट्र कल्याण के लिए ग्यारह बार सवा करोड़ पार्थिव शिवलिंग निर्माण महारूद्र यज्ञ के संकल्प को पूरा किया वहीं स्वयं के पैंतालिस बार इस यज्ञ को सम्पन्न करने के संकल्प को ‘चित्रकूट’ की पावन भूमि पर पूर्ण किया। पैंतालिसवें यज्ञ के समापन पर पूज्य दद्दाजी के हम सभी शिष्यों ने उनसे निवेदन किया की पूज्य हम शिष्यगण चाहते हैं कि आपका यह धार्मिक अभियान कम से कम ‘१०८’ की संख्या तक पहुँचे, तब पूज्य दद्दाजी ने अत्यंत करुणा के साथ अपने शिष्यों के शिवसंकल्प को बड़ी सहजता से स्वीकार कर १०८ यज्ञों की घोषणा कर दी और उसे स्वयं का संकल्प बना लिया जिसे उन्होंने 2016 में महाकाल की नगरी ‘उज्जैन’ में हुए महाकुंभ के अवसर पर पूर्ण किया। जो अपने गुरु के संकल्प को पूर्ण करे, स्वयं के संकल्प को पूर्ण करे व अपने शिष्यों के संकल्प को पूर्ण करे वह स्वयं शिव ही हो सकता है। जहाँ धर्म विभिन्न मतमतांतरों के चलते शैव व वैष्णव सम्प्रदाय में बँट चुका है वही पूज्य दद्दाजी ने अपनी अखंड दृष्टि के चलते खंड में बटी हुई आस्थाओं को पुन: अखंड कर दिया। वे एक ही यज्ञ पंडाल में सुबह “हर” ( शिव ) का निर्माण करवाते हैं और संध्याकाल वहीं स्वयं के मुख से “हरी” ( कृष्ण ) की कथा सुनाते हैं, इस नाते पूज्य दद्दाजी “हरिहरात्मक” यज्ञ के अनूठे पुरोधा हैं। करूणा और कृपा में अंतर होता है। किसी को- गिरे हुए, व्यथित, दुखी देख कर मन में दया का भाव आना करूणा है, और उस गिरे हुए को हाथ पकड़ के उठा देना उसकी सहायता कर उसे उसके गंतव्य (लक्ष्य) तक पहुँचा देना कृपा है, पूज्य दद्दाजी करूणानिधि ही नहीं कृपासिंधु भी हैं। ये एक ऐसे साधक, संत हैं जो मात्र स्वयं के चैन की तलाश में नहीं बल्कि अपने संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को सुख चैन आनंद उत्साह और उमंग से भरने के लिए उद्धत रहते हैं। परम पूज्य दद्दाजी हमें जीविका निर्वहन की नहीं जीवन निर्वाहन की शिक्षा देते हैं। समस्त चराचर के लिए समभाव और तत्परता के कारण उनके संदर्भ में हमें ये कहने की प्रेरणा मिलती है की ..
“अपने अपने घरन में सब जन को है काम।
उनको सबके घरन में धन्य धन्य घनश्याम।।”
विश्व कल्याण के लिए परम पूज्य दद्दाजी के द्वारा कराए जाने वाला सवा करोड़ पार्थिव ( मिट्टी से) शिवलिंग निर्माण यज्ञ, योग भी है और सुयोग भी है। पूज्य दद्दाजी सन १९८० से लेकर आज तक, निरंतर ३७ वर्षों से हम सभी को ये सुयोग प्रदान करते आ रहे हैं। पूरे भारतवर्ष में मुंबई, शिर्डी, वाराणसी, कानपुर, इलाहबाद, वृंदावन, भोपाल, इंदौर, उज्जैन, जबलपुर, सागर से लेकर छोटे-छोटे शहरों और गाँवों में पूज्य दद्दाजी ने अभी तक ‘एक सौ बाइस’ बार इस यज्ञ को सफलता पूर्वक सम्पन्न किया है, जिसमें उन्होंने ‘पांच सौ करोड़ शिवलिंगों ( पांच अरब ) का निर्माण’ करवा दिया है, जो भारत की आबादी के अनुपात में ‘चार गुना’ है। परमपूज्य दद्दाजी के द्वारा सम्पन्न किए जाने वाले इस यज्ञ में विभिन्न वर्ग, वर्ण, जाति, आयु, धर्म के श्रृद्धालु सम्मिलित रहते हैं। यज्ञ में लगने वाली समस्त हवन पूजन सामग्री, भोजन भंडारा सातों दिन भक्तों को नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाता है। उपलब्ध शास्त्रों व पुराणों में संकलित सूचनाओं के आधार पर यह एक ऐतिहासिक सत्य स्पष्ट होता है कि सतयुग से लेकर कलयुग तक इस सर्व कल्याणकारी यज्ञ को १२३ बार सफलतापूर्वक सम्पन्न करने का श्रेय परमपूज्य दद्दाजी को ही जाता है।
परमपूज्य दद्दाजी अपने इस धार्मिक उद्यम के कारण ज्ञात और अज्ञात इतिहास में एक मात्र संत हैं, जिन्होंने हमारे पूज्य ऋषियों की गृहस्थ परम्परा का पालन करते हुए, स्वयं सदगृहस्थ रहते हुए इस महानतम शिवसंकल्प को पूरा किया व हर-हर महादेव के इस जयघोष को घर-घर महादेव में रूपांतरित कर दिया।
पूज्य दद्दाजी का यह शिवप्रकल्प मात्र प्रचार के लिए नहीं, जनसामान्य के परिष्कार के लिए होता है, यह मात्र स्वार्थ सिद्धि का ही नहीं, परमार्थ सिद्धि का भी हेतु है। परमपूज्य दद्दाजी का यह शिवयोग हमारे तन को ही नही, मन को भी स्वस्थ रखता है। हम भोगियों को योगीश्वर महादेव व योगेश्वर श्रीकृष्ण के संम्पर्क में लाने वाले, हमारे शवयोग को शिवयोग में रूपान्तरित करने वाले, मृणमय को चिन्मय बनाने वाले शिवस्वरूप ऋषिराज गृहस्थ संत परमपूज्य दद्दाजी ने इस बार ‘रामेश्वरम धाम में’ १६ से १८ नवम्बर २०१७ तक, मात्र तीन दिनों में सवा करोड़ पार्थिव शिवलिंग निर्माण करने का संकल्प लिया है। तीन दिन में सवा करोड़ मिट्टी से महादेव बनाने के संकल्प को पूरा करने का अर्थ है की प्रतिदिन 45 लाख शिवलिंगों का निर्माण किया जाए, जो जनशक्ति, जनश्रृद्धा, जनविश्वास से ही सम्भव हो सकता है।
हमारी वासना को उपासना की ओर मोड़ने वाले, हमें विकल्प से मुक्त करते हुए संकल्प से युक्त करने वाले, हमारी विकार वृत्ति को विचार वृत्ति में परिवर्तित करने वाले, हमारे चिंतन को विषय से हटा कर ब्रह्म से जोड़ने वाले, हमें वैरागी नहीं अनुरागी होने के प्रेरणा देने वाले, जगत में रहते हुए हमारे चिंतन को जगदीश्वर की ओर मोड़ने वाले, ऐसे “श्रीगुरु गृहस्थ संत परमपूज्य दद्दाजी” के श्रीचरणों में दण्डवत प्रणाम सहित उनका शत् शत् वंदन, अभिनंदन, जय श्री कृष्ण, हर हर महादेव घर घर महादेव..
(शिवसंकल्पमस्तु)

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