जामवंत का पूरा परिवार है जिंदा, शाम ढलते ही मंदिर की आरती में होता है शामिल
नई दिल्ली : देश में माता रानी का एक ऐसा मंदिर है जहां की देख-रेख भालू का पूरा परिवार करता है। यही नहीं भालू के इस परिवार के सदस्य माता की आरती और परिक्रमा तो करता ही है साथ ही माता रानी का प्रसाद भी लेता है। प्रसाद लेने के बाद भालुओं का पूरा परिवार चुपचाप जंगल की ओर लौट जाता है। गांव के निवासी बताते हैं कि भालू कभी भी हिंसक नहीं होते और ना ही आजतक उन्होंने किसी को नुकसान पहुंचाया है। हालांकि कभी-कभी वो नाराजगी का इजहार जरूर करते हैं लेकिन कभी किसी को परेशान नहीं करते। गांववाले उन भालुओं को जामवंत परिवार कहने लगे हैं। हमारे देश में चमत्कारों और आध्यात्मिक शक्तियों की वजह से कई मंदिर प्रसिद्ध हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में चंडी देवी का मंदिर हर रोज होने वाली एक घटना के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में केवल इंसान ही पूजा नहीं करते हैं बल्कि हर रोज भालुओं का भी पूरा परिवार माता के दर्शन के लिए पहुंचता है। मंदिर में हर रोज सैकड़ों भक्त अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं, जब वे भालुओं द्वारा माता की भक्ति का यह नजारा देखते हैं तो उनकी सांसें थम जाती हैं। छत्तीसगढ़ का यह चंडी मंदिर महासमुंद जिले के घूंचापाली गांव में स्थित है। भालुओं की भक्ति देखकर यहां श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं। पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर का इतिहास तकरीबन डेढ़ सौ साल पुराना है। यहां चंडी देवी की प्रतिमा प्राकृतिक रूप से अवस्थित है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु भालुओं को देखने के लिए कई बार घंटों इंतज़ार करते हैं। बताया जाता है कि सालों से माता के मंदिर में शाम ढलते ही इन विशेष भक्तों का आना शुरू हो जाता है। हर शाम आरती के समय भालू का पूरा परिवार माता के दर्शन के लिए पहुंच जाता है। माता का प्रसाद लेता है और फिर वहां से बिना किसी को नुकसान पहुंचाए जंगल में लौट जाता है। जब भालुओं का परिवार आता है तो इनमें से एक भालू मंदिर के बाहर खड़ा रहता है, फिर बाकी के भालू मंदिर में प्रवेश करते हैं। इसके बाद पूरा परिवार माता की प्रतिमा की परिक्रमा करता है। हैरानी की बात यह है कि भालू मंदिर में आकर श्रद्धालुओं के साथ पूरी तरह दोस्ताना व्यवहार करते दिखते हैं जैसे कोई पालतू जानवर हों। वन्यजीव विशेषज्ञ बताते हैं कि माता के मंदिर में भालुओं और इंसानों के बीच होनेवाला आमना-सामना हैरानी की बात है। उनका कहना है कि आमतौर पर जंगल में भालू का किसी इंसान से सामना हो जाए तो हमले की पूरी आशंका रहती है। श्रद्धालुओं से भालू इस तरह से पेश आते हैं जैसे घर का ही कोई सदस्य हों। गांव वाले बताते हैं कि चंडी माता का यह मंदिर पहले तंत्र साधना के लिए मशहूर था, यहां कई साधु-संतों का डेरा लगा रहता था लेकिन अब यहां तंत्र की साधना करने वाले कम ही आते हैं। इसकी जानकारी सामान्य रूप से किसी को नहीं होती है। तंत्र साधना करनेवालों ने पहले यह स्थान गुप्त रखा था लेकिन साल 1950-51 में इसे आम जनता के लिए खोला गया।